रायसीना हिल्स में प्रणब मुखर्जी के मायने

देश के 13वें राष्ट्रपति के रूप में प्रणब मुखर्जी रायसीना हिल्स में विराजमान हो चुके हैं और इसके साथ ही शुरू हो गई है उनकी ‘गुरु’ परीक्षा भी। गुरु परीक्षा इसलिए कि प्रणब मुखर्जी को अब तक कांग्रेस पार्टी का संकटमोचक माना जाता था। लेकिन अब प्रणब मुखर्जी को महामहिम के रूप में कांग्रेस नहीं, बल्कि एक अखंड राष्ट्र में संकटमोचक की भूमिका निभानी है।

प्रवीण कुमार
देश के 13वें राष्ट्रपति के रूप में प्रणब मुखर्जी रायसीना हिल्स में विराजमान हो चुके हैं और इसके साथ ही शुरू हो गई है उनकी ‘गुरु’ परीक्षा भी। गुरु परीक्षा इसलिए कि प्रणब मुखर्जी को अब तक कांग्रेस पार्टी का संकटमोचक माना जाता था। लेकिन अब प्रणब मुखर्जी को महामहिम के रूप में कांग्रेस नहीं, बल्कि एक अखंड राष्ट्र में संकटमोचक की भूमिका निभानी है। क्योंकि इस अखंड राष्ट्र के अखंड बने रहने पर सवालिया निशान जो लग रहे हैं। भ्रष्टाचार, आतंकवाद और महंगाई ये तीन ऐसे कारक हैं जो देश की अखंडता को बनाए रखने में रोड़ा अटका रहे हैं। ऐसे समय में प्रणब मुखर्जी का महामहिम के पद को सुशोभित करना निश्चित रूप से मायने रखता है। जब भी देश में कोई नया राष्ट्रपति चुना जाता है तो जनता की उससे कुछ उम्मीदें होती हैं सो नवनियुक्त राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से भी भारतीय गणतंत्र की कुछ उम्मीदें हैं, कुछ अनसुलझे सवाल हैं। महामहिम को जनता की इन उम्मीदों पर खड़ा उतरना होगा साथ ही अनसुलझे सवालों को सुलझाना होगा। तभी प्रणब मुखर्जी की यह उक्ति कि वह सबका राष्ट्रपति बनेंगे, सार्थक हो पाएगी।
महामहिम से जन अपेक्षाएं
भारत के राष्ट्रपति से यह अपेक्षा रहती है कि वह मन, कर्म और वचन से दलगत राजनीति से ऊपर उठकर जनहित तथा राष्ट्रहित में निर्णय लेने की क्षमता, साहस तथा निर्भीकता से देश को नई दिशा दे सके। अपने संवैधानिक दायित्वों के निर्वाह में जरूरत पड़ने पर अपनी सरकार को दिशा-निर्देश दे सके। संविधान विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि संविधान राष्ट्रपति को विस्तृत अधिकार तथा उत्तरदायित्व देता है। लेकिन इनमें समन्वय बनाना राष्ट्रपति की कर्मठता, विश्लेषण क्षमता तथा ज्ञान संपदा पर निर्भर करता है। देश को उम्मीद है कि जनता से जुड़ाव के मामले में प्रणब मुखर्जी उतने ही सफल सिद्ध होंगे जितने देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ. शंकरदयाल शर्मा और एपीजे अब्दुल कलाम सरीखे राष्ट्रपति हुए। राजेंद्र प्रसाद ने 26 जनवरी 1950 से 13 मई 1962 तक भारत के राष्ट्रपति पद पर विराजमान रहे। शुरू में लोग इस गरिमापूर्ण पद के बारे में ज्यादा नहीं जानते या समझते थे। लेकिन धीरे-धीरे लोगों ने जाना कि राष्ट्रपति पद क्या होता है, उसकी गरिमा क्या होती है और डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे प्रखर तथा प्रतिभावान एवं यशस्वी व्यक्ति को उसके लिए क्यों चुना गया? इतिहास इस बात का गवाह है कि पद से मुक्त होकर राजेंद्र प्रसाद दिल्ली से पटना एक विशेष रेलगाड़ी से गए थे। स्वतंत्रता आदोलन में सर्वस्व अर्पण करने वाले राजेंद्र बाबू के पास न तो अपना कोई बंगला था और न ही कोई क्रय शक्ति। वह पटना में कांग्रेस पार्टी के कार्यालय सदाकत आश्रम में जाकर रहे और अंत तक वहीं रहे। राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष भी रह चुके थे। सदाकत आश्रम में एक कमरा, न कोई पेंशन, न कोई बचत! जो गरिमा वह राष्ट्रपति पद को दे गए, उम्मीद है प्रणब मुखर्जी उस पद को फिर से जीवंत करेंगे।
क्या होगा अफजल गुरु का?
अफजल गुरु संसद पर आतंकी हमले की साजिश रचने का दोषी है। उसे सात साल पहले फांसी की सजा मिली थी, लेकिन वह अभी तक जेल में राष्ट्रपति के फैसले का इंतजार कर रहा है। करीब 11 साल होने को हैं, लेकिन संसद पर आतंकी हमले का दोषी अफजल गुरु आज भी जिंदा है। उसकी फांसी का मामला राष्ट्रपति के पास लंबित है। पद पर रहते राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील ने भी फांसी के इस मामले से दूरी बनाकर रखी। एक राजनेता के रूप में, प्रणब मुखर्जी संसद पर हुए हमले के प्रत्यक्ष गवाह रहे हैं। सूचना के अधिकार के तहत मिली एक जानकारी के मुताबिक, राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील ने 39 दया याचिकाओं पर अपना फैसला दिया लेकिन अफजल गुरु के केस को छुआ तक नहीं। कहने का मतलब यह कि अफजल गुरु की दया याचिका का केस नए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास आएगा। खास बात ये है कि राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए की लाइन से अलग हटकर जिस शिवसेना ने प्रणब मुखर्जी को वोट किया उसके सुप्रीमो बाल ठाकरे और खुद प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी ने इस मामले में महामहिम से फैसला लेने की गुजारिश की है। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने अपने मुखपत्र `सामना` में प्रणब मुखर्जी को जीत की बधाई देते हुए लिखा कि अफजल गुरु की दया याचिका को प्रणब मुखर्जी खारिज करें और उसे फांसी की सजा दें। मालूम हो कि इस मामले में कांग्रेस के रुख को भांपते हुए गृह मंत्रालय ने अफजल गुरु की फांसी की सजा माफ करने की अपील राष्ट्रपति से कर रखी है। जाहिर है कि पूर्व में यूपीए सरकार के संकटमोचक रहे प्रणब मुखर्जी महामहिम बनने के बाद इस संकट से निपटने के लिए कौन सी संजीवनी बूटी लाएंगे इस पर पूरे देश की निगाह रहेगी।
गांधी परिवार बनाम प्रणब मुखर्जी
जहां तक प्रणब मुखर्जी का गांधी परिवार से संबंधों का सवाल है तो इस बात को उन्होंने महामहिम बनने से ठीक पहले कई साक्षात्कार में खुद ही उजागर कर दिया है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उनकी राजनीतिक गुरु थीं। दरअसल कांग्रेस पार्टी हमेशा किसी ऐसे शख्स को राष्ट्रपति भवन में विराजने की जुगत में रहती है जो उसके नीतिगत फैसलों में बाधक न बने। इतिहास में इस तरह के कई वाकये सामने आते रहे हैं। इस बार भी प्रणब मुखर्जी के रायसीना हिल्स अगर भेजा गया है तो इसके पीछे निश्चित रूप से 10 जनपथ की कोई रणनीति जरूर होगी। वरना कोई पार्टी प्रणब मुखर्जी जैसा नेता क्यों खोना चाहेगा। इसकी पुष्टि लंदन से प्रकाशित होने वाले एक अखबार ने भी की है। पिछले दिनों ब्रिटेन में प्रकाशित होने वाले प्रतिष्ठित अख़बार `द टाइम्स` ने उजागर किया है कि क्या प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति भवन में राहुल गांधी की राह आसान बनाने के लिए भेजा गया है? टाइम्स ने प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति निर्वाचित होने की खबर की हेडलाइन कुछ यूं लगाई – ‘नए राष्ट्रपति ने अगली गांधी पीढ़ी का रास्ता खोला’। अखबार लिखता है कि भारत के राजनेताओं ने एक अत्यंत दक्ष ‘फिक्सर’ को राष्ट्राध्यक्ष बनाकर, सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी के लिए गांधी की पांचवीं पीढ़ी को चुनाव में मतदाताओं के सामने उतारने का रास्ता साफ कर दिया। टाइम्स ने प्रणब मुखर्जी की जीत को इन शब्दों में बयान किया है – `एक पावर ब्रोकर और पूर्व कांग्रेसी वित्तमंत्री, 76 वर्षीय प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति बनवाया गया, चतुराई से की गई जोड़-तोड़ से।` निश्चित रूप से देश की निगाहें इस ओर रहेंगी कि रायसीना हिल्स में बैठकर महामहिम प्रणब मुखर्जी गांधी परिवार के लिए किस तरह से काम आएंगे।
सशक्त राजनीतिक व्यक्तित्व
कई मंत्रालयों का कार्यभार संभाल चुके 76 वर्षीय प्रणब मुखर्जी राजनीति में चार दशक से अधिक समय बिता चुके हैं। फरवरी 1973 में पहली बार केंद्रीय मंत्री बनने के बाद दादा ने पिछले 40 साल में कांग्रेस की या उसके नेतृत्व वाली सभी सरकारों में मंत्री पद संभाला है। वे जुलाई 1969 में पहली बार राज्य सभा में चुनकर आए। वर्ष 1996 से लेकर 2004 तक केंद्र में गैर-कांग्रेसी सरकार रही लेकिन 2004 में यूपीए के सत्ता में आने के बाद से प्रणब मुखर्जी केंद्र सरकार और कांग्रेस पार्टी के संकटमोचक के तौर पर काम करते रहे। कांग्रेस से अलग होकर इस कांग्रेसी दिग्गज ने 1984 में इंदिरा गांधी की मौत के बाद पार्टी को छोड़ भी दिया था। दरअसल बात यह थी कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके पुत्र राजीव गांधी की सरकार में प्रणब मुखर्जी को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया था। इससे नाराज प्रणब मुखर्जी ने कांग्रेस छोड़कर राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस नाम से एक अलग पार्टी का गठन किया था। बाद में पी.वी. नरसिम्हा राव ने उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाकर कांग्रेस की मुख्य धारा में एक बार फिर से शामिल कर लिया था। प्रणब मुखर्जी का जन्म 11 दिसंबर 1935 को पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में हुआ था। उन्होंने इतिहास और राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की है। उनके पिता कामदा किंकर मुखर्जी स्वतंत्रता सेनानी थे जो करीब एक दशक से भी अधिक समय तक जेल में रहे। उन्होंने 1920 से लेकर सभी कांग्रेसी आंदोलनों में हिस्सा लिया था। वह अखिल भारतीय कांग्रेस समिति और पश्चिम बंगाल विधान परिषद (1952- 64) के सदस्य‍ व जिला कांग्रेस समिति, वीरभूम (पश्चिम बंगाल) के अध्यक्ष रहे।
बहरहाल, प्रणब मुखर्जी देश के 13वें राष्ट्रपति के रूप में रायसीना हिल्स में विराजमान हो चुके हैं और जैसा कि उन्होंने कहा है कि जैसी परिस्थितियां होगी उसके अनुसार वह कदम उठाएंगे। लेकिन इतना तय है कि चूंकि महामहिम प्रणब मुखर्जी रायसीना हिल्स में पहुंचने से पहले एक दिग्गज राजनेता रहे हैं और लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की उनकी समझ का कोई मुकाबला नहीं है। अब देखने वाली बात यह होगी कि महामहिम प्रणब मुखर्जी रायसीना हिल्स में बैठकर राष्ट्रपति पद की नई परिभाषा गढ़ेंगे या फिर राष्ट्रपति पर पर परंपरा का निर्वाह करेंगे।

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