सियासी यात्राओं में बिसरता आम आदमी
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सियासी यात्राओं में बिसरता आम आदमी

अगर वर्ष 2011 को भारत का 'सियासी यात्रा वर्ष' घोषित कर दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मुझे लगता है कि सियासी यात्राओं के इतिहास में एक वर्ष में इतनी यात्राएं कभी नहीं हुई होंगी।

प्रवीण कुमार

भारतवर्ष में यात्रा का इतिहास काफी पुराना है। लेकिन हम यहां सियासी यात्रा की बात कर रहे हैं। देश में इस समय एक दर्जन से अधिक सियासी यात्राएं चल रही हैं। कुछ यात्राएं तथाकथित संत भी कर रहे हैं, लेकिन उनकी यात्रा भी पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित है। मसलन बाबा रामदेव की भारत स्वाभिमान यात्रा और श्रीश्री रविशंकर की भ्रष्टाचार के खिलाफ यात्रा। कुल मिलाकर अगर वर्ष 2011 को भारत का 'सियासी यात्रा वर्ष' घोषित कर दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मुझे लगता है कि सियासी यात्राओं के इतिहास में एक वर्ष में इतनी यात्राएं कभी नहीं हुई होंगी।

 

इस परिदृश्य के बीच बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि संत, महात्मा और नेता यात्राएं क्यों करते हैं? सवाल जितना आसान दिखता है, जवाब उतना ही दुरुह। क्योंकि यात्राओं की अवधारणा में भी समय के साथ बदलाव आया है। जहां तक मैं समझता हूं और बहुत हद तक सही भी है कि यात्राओं के मकसद को समय के साथ बदला नहीं जा सकता है। यात्राएं हमेशा 'आम आदमी' की भलाई के लिए ही की जाती हैं। लेकिन आज के सियासी यात्राओं का 'आम आदमी की भलाई' का दर्शन कुछ अलग तरीके का हो गया है। शायद इसीलिए आज की सियासी यात्राओं में आम आदमी बिसर रहा है। ऐसा नहीं होना चाहिए, इसलिए यहां यह जानना जरूरी होगा कि सदियों से चली आ रही यात्राएं किस तरह से आम आदमी के लिए प्रतिफलित होती रही हैं।

 

भारतीय सभ्यता के हजारों वर्षों के इतिहास में यात्राओं की एक लंबी परंपरा रही है। इस परंपरा के एक छोर पर महात्मा बुद्ध खड़े हैं तो दूसरे छोर पर महात्मा गांधी और फिर स्वतंत्र भारत की अन्य यात्राएं जिसमें जयप्रकाश नारायण, विश्वनाथ प्रताप सिंह और लालकृष्ण आडवाणी की देशव्यापी यात्राएं शामिल हैं। यहां इन यात्राओं को आजादी से पहले और आजादी के बाद दो भागों में बांटकर तब और अब में फर्क महसूस करना जरूरी होगा।

 

बुद्ध यानी गौतम बुद्ध की यात्रा राजमहल और राजधानियों से झोपड़ी और गांवों तक की यात्रा थी। नितांत मानवीय और प्रगतिशील। बुद्ध ने धर्म और दर्शन को मानवीय दुखों एवं सामाजिक असमानताओं को समाप्त करने का माध्यम बनाया। बुद्ध के दर्शन और यात्राओं से प्रभावित होकर मौर्य शासक अशोक ने एक लंबा समय यात्राओं में व्यतीत किया। इससे वह आम आदमी के संपर्क में आ सका और शासन को मानवीय शक्ल देने में सफल हुआ। मध्यकालीन भारत में शंकराचार्य एक महान धार्मिक व्यक्तित्व के रूप में सामने आए। उन्होंने यात्रा और शास्त्रार्थ के माध्यम से धर्म के कर्मकांडीय स्वरूप पर गहरी चोट की। व्यक्ति की आत्मा और परमात्मा में सहज संबंध स्थापित करके शंकर ने धार्मिक संप्रदायों के विभेद को मिटाने का प्रयास किया और समाज को एकजुट किया।

 

आधुनिक काल में भारत ने दासता की जंजीरों के साथ प्रवेश किया। 20वीं सदी के प्रारंभ से ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विरुद्ध भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में सबसे प्रखर व्यक्तित्व महात्मा गांधी के रूप में सामने आए। अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध एक प्रबल जनान्दोलन खड़ा करने के लिए गांधी ने पूरे भारत में लंबी यात्राएं की। जनमानस की शक्ति और कमजोरियों की जांच पड़ताल की। और फिर इस जननायक ने सहज ही देश की आम जनता अर्थात किसानों, मजदूरों, युवाओं और स्त्रियों को राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्य शक्ति बना दिया।

 

1920-21 में असहयोग आंदोलन के दौरान अली भाइयों के साथ पूरे देश की यात्रा की। इसी प्रकार 1930 में अहमदाबाद से दांडी तक की 240 मील की यात्रा संपन्न हुई। दांडी मार्च स्वतंत्रता संग्राम का वह मोड़ सिद्ध हुआ, जहां से देश ने स्वतंत्रता मिलने तक पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1932 में गांधी जी ने वर्धा आश्रम से हरिजन यात्रा प्रारंभ की और नौ महीनों तक पूरे देश में छुआछूत उन्मूलन के लिए जबरदस्त प्रचार किया। अंत में स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर बंगाल और बिहार के दंगाग्रस्त इलाकों में शांति की अपील करती हुई गांधीजी की यात्राएं इतिहास की अविस्मरणीय निधि बन गई।

 

आजादी के बाद सर्वोदय से अलग होकर जयप्रकाश नारायण ने सत्तर के दशक में संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया। भ्रष्टाचार और कुशासन के विरूद्ध युवाओं का यह आंदोलन 1973 में गुजरात से प्रारंभ होकर सन् 74 में बिहार पहुंचा और फिर पूरे देश में छा गया। इस बीच जयप्रकाश ने तुफानी यात्राएं की। यद्यपि अपने परिणामों में यह आंदोलन लक्ष्यहीन और अल्पजीवी सिद्ध हुआ। फिर भी इसने वैकल्पिक सरकार की संकल्पना को जरूर साकार किया। 1989-90 में वी.पी. सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार का गठन इसी आंदोलन के नक्शे कदम पर ही संपन्न हुआ। यहीं से यात्राओं का स्वरूप बदला और यह आम आदमी की भलाई से दलगत राजनीति की भलाई में परिवर्तित हो गया।

 

भारतीय राजनीति में 90 के दशक का प्रारंभ कई मायनों में निर्णायक सिद्ध हुआ। सन् 1989 के लोकसभा चुनावों में भाजपा एक प्रमुख दल के रूप में उभरी और राष्ट्रीय मोर्चा सरकार को बाहर से समर्थन दिया। इसी समय भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन को केन्द्र में रखकर सोमनाथ से अयोध्या तक की अपनी रथयात्रा की घोषणा की। भारतीय राजनीति की दशा और दिशा पर इस यात्रा का गहरा प्रभाव पड़ा। जैसे-जैसे यह यात्रा आगे बढ़ती गई देश का राजनीतिक तापमान बढ़ता गया। बिहार में इस रथयात्रा को रोके जाने तक भाजपा की लोकप्रियता और जनाधार में कई गुना इजाफा हो चुका था।

 

अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा न सिर्फ प्रमुख विपक्षी दल के रूप में उभरी, बल्कि जनमानस में इसने स्वयं को कांग्रेस के विकल्प के रूप में स्थापित कर लिया। इसके बाद से लेकर अभी तक आडवाणी ही एक ऐसे राजनीतिक यात्री रहे जिन्होंने भाजपा की बरकत कहिए या फिर अपने ऊपर से 'पीएम इन वेटिंग' का तमगा हटाने के लिए समय-समय पर देशव्यापी यात्राओं पर निकलते रहे। इन दिनों भी आडवाणी देश में भ्रष्टाचार मिटाने के लिए जनचेतना यात्रा पर निकले हुए हैं और घूम-घूमकर जनता को बता रहे हैं कि देश में सुशासन भाजपा के राज में ही संभव है।

 

आडवाणी की जनचेतना यात्रा आम आदमी के पैमाने में कितना फिट बैठता है, बताने की शायद जरूरत नहीं क्योंकि इसे आप हर दिन न्यूज चैनल पर देख रहे होंगे। मैं यहां वर्ष 2011 में 12 सियासी यात्राओं का उल्लेख कर रहा हूं जिसका तुलनात्मक आंकलन कर निष्कर्ष पर पहुंचना आप पर है कि ये तमाम यात्राएं आम आदमी के लिए है या फिर यात्री खुद का भविष्य संवारने के लिए जनता के पैसे से लाव-लश्कर के साथ निकले हैं।

 

लालकृष्ण आडवाणी : 11 अक्तूबर को आडवाणी ने अपनी छठी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत जयप्रकाश नारायण की जन्मस्थली सिताबदियारा से की है। आडवाणी इससे पहले पांच यात्राएं-1990 में राम रथ यात्रा, 1993 में जनादेश यात्रा, 1997 में स्वर्ण जयंती यात्रा, 2004 में भारत उदय यात्रा और 2006 में भारत सुरक्षा यात्रा कर चुके हैं।

 

नीतीश कुमार : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 9 नवंबर से अपनी छठी यात्रा ‘सेवा यात्रा’ महात्मा गांधी के सत्याग्रह की धरती चंपारण से शुरू कर चुके हैं। नीतीश चार माह में बिहार के सभी 38 जिलों की यात्रा कर अपनी सेवा का अहसास कराएंगे। नीतीश कुमार भी न्याय यात्रा, विकास यात्रा, धन्यवाद यात्रा, प्रवास यात्रा, विश्वास यात्रा नाम की पांच राजनीतिक यात्रा कर चुके हैं।

 

बाबा रामदेव : योग गुरु बाबा रामदेव ने अपनी 10 हजार किलोमीटर की भारत स्वाभिमान यात्रा झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की कर्मभूमि से 20 सितंबर से शुरू की है। बाबा रामदेव देश से बाहर जमा काला धन वापस लाने के अपने प्रण को बार-बार दोहरा रहे हैं। यह प्रयाग (उत्तरप्रदेश) में खत्म होगी।

 

श्रीश्री रविशंकर : आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर भ्रष्टाचार के खिलाफ सात नवंबर से उस उत्तर प्रदेश की यात्रा पर हैं जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। 11 नवंबर तक जारी रहने वाले इस दौरे में वह जौनपुर, चंदौली, सोनभद्र मिर्जापुर और सुल्तानपुर में आयोजित कार्यक्रमों में न सिर्फ आम लोगों के साथ सत्संग करेंगे बल्कि उन्हें घूस न लेने, दहेज न लेने, भ्रष्टाचार के खिलाफ ल़डने और शिक्षा का उजियारा फैलाने की शपथ भी दिलाएंगे।

 

राहुल गांधी : कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी टीम अन्ना को जवाब देने के लिए उत्तर प्रदेश में चुनावी यात्रा करेंगे। राहुल गांधी 14 नवम्बर से व्यापक जन संपर्क यात्रा करेंगे। ये यात्रा दस दिनों की होगी।

 

अन्ना हजारे : सुप्रसिद्ध गांधीवादी अन्ना हजारे एक मजबूत जनलोकपाल कानून के लिए जल्द ही देशव्यापी यात्रा पर निकलने वाले हैं। शायद अन्ना संसद के शीतकालीन सत्र का इंतजार करेंगे और उसके बाद यात्रा की कोई तारीख तय होगी।

 

नरेंद्र मोदी : 17-19 सितंबर को तीन दिवसीय सद्भावना उपवास के बाद गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी प्रदेश में लगातार सद्भावना यात्रा कर रहे हैं। जल्द ही वह देशव्यापी यात्रा भी करेंगे और अपनी राष्ट्रीय छवि बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। उनकी नजर दिल्ली की गद्दी पर है। शायद वह आडवाणी की यात्रा के समाप्त होने का इंतजार कर रहे हैं।

 

राजनाथ सिंह : उत्तर प्रदेश को विकासयुक्त और भ्रष्टाचारमुक्त बनाने के नारे के साथ 'जन स्वाभिमान यात्रा' दो चरणों में पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह के नेतृत्व में मथुरा से 13 अक्टूबर को शुरू हुई। राजनाथ पूर्वी यूपी के 34 जिलों की यात्रा करेंगे।

 

कलराज मिश्रा : राजनाथ की तर्ज पर वाराणसी से शुरू हुई यात्रा की अगुवाई उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ भाजपा नेता कलराज मिश्रा ने किया। लक्ष्य इनका भी माया सरकार को हिलाना है ना कि प्रदेश को विकास की पटरी पर लाना। कलराज 27 जनपदों की यात्रा करेंगे।

 

उमा भारती : भाजपा नेता उमा भारती ने गाजियाबाद जिले के गढ़मुक्तेश्वर से गंगा बचाओ अभियान की शुरुआत की। उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल में जिन जगहों से गंगा गुज़रती है, उमा भारती उसी से लगे रास्ते से गुज़रेंगी और सभाओं को संबोधित करेंगी।

 

अखिलेश यादव : जनता को पार्टी की नीतियों से जोड़कर आगामी चुनाव में जीत के इरादे को आधार देने के लिए सपा के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बसपा के खिलाफ क्रांति रथयात्रा निकाली। 12 सितंबर से शुरू हुई यह यात्रा 24 सितंबर को समाप्त हुई।

 

अमर सिंह : लोकमंच पार्टी सुप्रीमो अमर सिंह ने सोमवार को उत्तर प्रदेश के बलिया से पूर्वांचल स्वाभिमान यात्रा के दूसरे चरण की शुरुआत की। यह पदयात्रा 17 जनवरी 2011 को बलिया से शुरू हुई जो 1 फरवरी को चंदौली में समाप्त हुई।

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