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दोहा : जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर दोहा दौर की बातचीत अमीर और गरीब देशों के बीच गंभीर मतभेदों में फंसती नजर आ रही है। इसमें वित्तीय तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर कोई सहमति नहीं बन पा रही है। यह ऐसे मुद्दे हैं जिनसे वार्ता सार्थक या निरर्थक हो सकती है।
बातचीत का मसौदा तैयार करने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। बार-बार संशोधनों के प्रस्ताव आने के बावजूद अमीर और गरीब देशों के बीच दीर्घकालिक सहयोगात्मक कारवाई ‘एलसीए’ पर सहमति नहीं बन पाई। दीर्घकालिक सहयोग के इस मुद्दे की बातचीत को दोहा में ही पूरा करने का कार्यक्रम है। अमेरिका और यूरोपीय संघ जहां एलसीए मुद्दे को जल्द पूरा करने पर जोर दे रहे हैं वहीं भारत और चीन सहित विकासशील देशों का तर्क है कि इसमें वित्तीय तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों का समुचित हल नहीं हो पाया है।
पिछले कुछ दिनों से ऐसा लगता रहा है कि विकसित देश उन मुद्दों को दरकिनार कर एलसीए ट्रैक पर चलने वाली बातचीत को बंद करना चाहते हैं जो गरीब देशों के लिए महत्वपूर्ण हैं। भारत और अन्य विकासशील देशों का कहना है कि एलसीए ट्रैक को सफलतापूर्वक बंद करने के लिए उसके तहत आने वाले सभी मुद्दों को संयुक्त राष्ट्र के ढांचे में एक अन्य प्रक्रिया के तहत लाए जाने की जरूरत है।
वार्ताकारों की बातचीत पूरी रात चली लेकिन कोई प्रगति नहीं हुई और सुबह चार बजे घोषणा की गई कि नतीजों तथा एलसीए ट्रैक को बंद करने के बारे में घोषणा स्थानीय समयानुसार सुबह सात बज कर तीस मिनट पर की जाएगी। सुबह साढ़े सात बजे होने वाली यह बैठक पहले रात को होने वाली थी। अचानक की गई घोषणा से स्पष्ट हो गया कि बातचीत में कोई प्रगति नहीं हुई।
जानकार सूत्रों का कहना है कि अमेरिका इस मुद्दे पर तैयार किये जा रहे मसौदे से विकासशील देश की चिंताओं वाले कई क्षेत्रों को हटाने पर जोर दे रहा है जिससे कि यह समझौता होना नामुमकिन होता जा रहा है। वार्ता कल खत्म होने वाली थी लेकिन पूरी रात तथा तड़के तक खिंचती चली गई।
इस साल की जलवायु वार्ता की एक और बड़ी बात यह रही कि गरीब देशों ने जलवायु परिवर्तन से प्रभावित गरीब देशों की मदद के लिए कोई वित्तीय प्रतिबद्धता नहीं जताई। खुद अमेरिका भी बातचीत में नुकसान और क्षति के मुद्दे के हल के लिए उत्सुक नहीं दिखा। (एजेंसी)