नवाज शरीफ : पाकिस्तान में गरजा पंजाब का शेर

पाकिस्तान में तीसरी बार वजीरे आजम का ताज पहनने जा रहे नवाज शरीफ को ‘पंजाब का शेर’ कहा जाता है, जिन्होंने भारत के साथ अमन का दौर वापस लाने का वादा किया है और जिन्हें देश की छिली कटी अर्थव्यवस्था पर मरहम लगाने वाले हाथ के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन उन्हें तालिबान के प्रति नरम भी माना जाता है।

इस्लामाबाद : पाकिस्तान में तीसरी बार वजीरे आजम का ताज पहनने जा रहे नवाज शरीफ को ‘पंजाब का शेर’ कहा जाता है, जिन्होंने भारत के साथ अमन का दौर वापस लाने का वादा किया है और जिन्हें देश की छिली कटी अर्थव्यवस्था पर मरहम लगाने वाले हाथ के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन उन्हें तालिबान के प्रति नरम भी माना जाता है।
इस्पात कारोबारी नवाज फौलादी हौंसले के साथ पाकिस्तान की सत्ता की ओर पेशकदमी कर रहे हैं। 1999 में बगावत के बाद सत्ता से बेदखल किए जाने और फिर जेल और निष्कासन का दुख झेलने वाले शख्स के लिए इतने तूफानी तरीके से सियासत की चोटी पर पहुंचना आसान नहीं था। शनिवार को हुए ऐतिहासिक आम चुनाव के वोटों की गिनती का काम अभी चल रहा है। शरीफ ने अपनी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-एन के मुख्यालय से जीत का ऐलान कर दिया है।
पाकिस्तान टेलीविजन के अनुमान के अनुसार नवाज की पार्टी 130 सीटों पर बढ़त के साथ सत्ता की ओर बड़े मजबूत कदमों से बढ़ती दिखाई दे रही है।
ऐसा लग रहा था कि इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी इन चुनाव में बाकी सब पर भारी पड़ेगी, लेकिन यह अनुमान गलत साबित हुए और इमरान को 37 सीटें मिलने का अंदाजा लगाया जा रहा है।
63 वर्षीय नवाज शरीफ ने देश की बदहाल अर्थव्यवस्था को नयी राह दिखाने, सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार कम करने, लाहौर से कराची तक मोटरवे बनाने और बुलेट ट्रेन चलाने का वादा किया है।
प्रधानमंत्री के तौर पर शरीफ का कार्यकाल 1999 में खत्म हुआ, जब सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने रक्तहीन बगावत के दम पर उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया। उसके बाद के नाटकीय घटनाक्रम में नवाज अर्श से फर्श पर आन गिरे और उन्हें जेल में डाल दिया गया। उनपर मुशर्रफ को ला रहे विमान को उतरने से रोकने का प्रयास करने के आरोप लगे और लगा जैसे इस बंदे पर उपर वाले की ‘नवाजिश’ अब नहीं रही।
इसके बाद के आठ बरस नवाज सउदी अरब में निर्वासन में रहे और फिर 2007 में वापस लौटे और पीपीपी के साथ मिलकर मुशर्रफ को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने का इंतजाम किया।
इसे इत्तफाक ही कहेंगे कि एक वक्त नवाज की जो हालत थी आज मुशर्रफ का वही हाल है। वह चुनाव में भाग लेने के लिए स्व निर्वासन से वापस पाकिस्तान लौटे और यहां कई तरह के इल्जामात में धर लिए गए।
शरीफ हालांकि कह चुके हैं कि मुशर्रफ से उनकी कोई रंजिश नहीं है, लेकिन उन्होंने साफ शब्दों में यह ऐलान भी किया कि अगर वह सत्ता में वापस लौटे तो पूर्व सैनिक शासक पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाएगा।
अपने प्रचार के दौरान शरीफ ने भारत के साथ शांति प्रक्रिया बहाल करने की हिमायत की। उन्होंने कहा, ‘‘हमें बातचीत के सिरे को वहीं से उठाना है, जहां हमने 1999 में छोड़ा था। वह ऐतिहासिक मौका था और मैं वहीं से उस रास्ते पर आगे जाना चाहूंगा..हम सब इस बात पर राजी हैं कि हमें तमाम समस्याओं को हल करना होगा, हम शांतिपूर्ण तरीके से बातचीत के जरिए तमाम मुश्किलें सुलझाएंगे।’’
शरीफ ने कहा था, ‘‘हम उस वक्त को फिर वापस लाना चाहते हैं और उसी मुकाम से अपना सफर दोबारा शुरू करेंगे।’’ उन्होंने अपने चुनाव प्रचार में अर्थव्यवस्था पर भी खासा जोर दिया गया। संयुक्त राष्ट्र के मानव विकास सूचकांक में पाकिस्तान को 186 देशों में 146वां स्थान दिया गया है। यह सूचकांक देश के लोगों के रहन सहन, स्वास्थ्य और शिक्षा के आधार पर उसका स्थान निर्धारित करता है।
शरीफ ने ‘‘मजबूत अर्थव्यवस्था-मजबूत पाकिस्तान’’ का नारा देकर जैसे अपने मुल्क के लोगों की दुखती रग पर हाथ रख दिया और देश की आवाम उन्हें अर्थव्यवस्था को बदहाली से निकालने में अहम किरदार निभाते देखना चाहती है। शरीफ ने 1990 के दशक में अपने कार्यकाल के दौरान अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के कदम उठाए थे।
आर्थिक मोर्चे पर नवाज शरीफ की उपलब्धियां जहां लोगों में उम्मीद की किरण जगाती हैं, वहीं पाकिस्तानी तालिबान के लिए उनके दिल में मुलायम कोना है उससे ला्रेग चिंतित भी हैं। वह तालिबान के सैन्य नरसंहार की बजाय उन्हें बातचीत के जरिए मुख्य धारा में लाने के हामी हैं।
लाहौर के एक धनी मानी परिवार में 1949 में जन्मे नवाज शरीफ ने प्राइवेट स्कूलों से शुरूआती शिक्षा ग्रहण करने के बाद पंजाब विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री ली और उसके बाद अपने पिता की स्टील कंपनी में काम करने लगे। 1970 के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के शासनकाल में राष्ट्रीयकृत निजी उद्योगों के राष्ट्रीयकरण से इनके परिवार को बहुत नुकसान उठाना पड़ा और नवाज शरीफ के कदम सियासत की ओर मुड़ गए।
जिया-उल-हक की रहनुमाई में शरीफ पहले वित्त मंत्री बने और फिर 1985 में पंजाब के मुख्य मंत्री के ओहदे तक पहुंचे। वह 1990 में प्रधानमंत्री बनने तक इस ओहदे पर बने रहे। उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते सत्ता छोड़ देनी पड़ी और उनकी परंपरागत प्रतिद्वंद्वी बेनजीर भुट्टो ने उनकी जगह ले ली। (एजेंसी)

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