पाक में चुनाव प्रचार में कश्मीर मुद्दे का जिक्र नहीं
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पाक में चुनाव प्रचार में कश्मीर मुद्दे का जिक्र नहीं

पाकिस्तान की विदेश नीति में कश्मीर की भले ही खास जगह हो और यहां के सुरक्षा प्रतिष्ठान तथा उग्रवादियों के लिए यह मुद्दा दीवानगी बना हुआ है लेकिन अगले माह होने जा रहे राष्ट्रीय असेंबली के चुनाव के लिए प्रचार के दौरान कश्मीर मुद्दे का जिक्र बिल्कुल नहीं के बराबर ही हो रहा है।

इस्लामाबाद/लाहौर : पाकिस्तान की विदेश नीति में कश्मीर की भले ही खास जगह हो और यहां के सुरक्षा प्रतिष्ठान तथा उग्रवादियों के लिए यह मुद्दा दीवानगी बना हुआ है लेकिन अगले माह होने जा रहे राष्ट्रीय असेंबली के चुनाव के लिए प्रचार के दौरान कश्मीर मुद्दे का जिक्र बिल्कुल नहीं के बराबर ही हो रहा है।
अटकलें लगाई जा रही हैं कि इन चुनावों में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलेगा। राजनीतिक दलों के प्रत्याशी उग्रवादियों की धमकियों में उलझे हुए हैं और चुनाव प्रचार में भारत का कहीं जिक्र नहीं हो रहा है।
पाकिस्तान की 342 सदस्यीय असेंबली के लिए 11 मई को होने जा रहे चुनाव में 272 प्रतिनिधियों को निर्वाचित किया जाएगा। शेष सीटें विभिन्न कोटा के जरिये भरी जाएंगी। राष्ट्रीय चुनावों में आठ करोड़ से अधिक मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे। प्रांतीय असेंबलियों के लिए भी चुनाव हो रहे हैं।
पाकिस्तान के इतिहास में पहले लोकतांत्रिक बदलाव के प्रयास चल रहे हैं लेकिन देश के चुनावी परिदृश्य पर राष्ट्रीय मुद्दों का अभाव साफ जाहिर है। पीपीपी नीत सरकार को छोड़ कर पाकिस्तान में किर्सी भी निर्वाचित सरकार ने अब तक अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है।
पिछले चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला था जिसके बाद पीपीपी और पीएमएल-एन गठबंधन सरकार बनाने के लिए करीब आए थे।
राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और दिवंगत बेनजीर भुट्टो के 24 वर्षीय पुत्र बिलावल भुट्टो पीपीपी के प्रमुख हैं और पीएमएल-एन की अगुवाई पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ कर रहे हैं। बाद में दोनों दल अलग हो गए लेकिन अन्य दलों के समर्थन के चलते सरकार बची रही। दिलचस्प बात यह है कि भारत और कश्मीर मुद्दा राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों में शामिल होने के बावजूद चुनाव प्रचार से नदारद है।
पीएमएल-एन के घोषणापत्र में पाकिस्तान को ऊर्जा बहुल मध्य एशिया और ईरान के बीच तथा ऊर्जा संकट वाले चीन और भारत जैसे देशों के बीच एक पुल बनाने की बात कही गई है। घोषणापत्र में भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया से जोड़ने तथा ईरान से भारत को एक भूमिमार्ग मुहैया कराने की भी बात है।
पीएमएल-एन ने आगे कहा है कि वह संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों और 1999 के लाहौर समझौते के मुताबिक कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए विशेष प्रयास करेगी। पीपीपी का अपने घोषणापत्र में कहना है कि वह कश्मीर के मुख्य मुद्दे सहित भारत के साथ सभी महत्वपूर्ण मुद्दों के हल के लिए काम करेगी।
सत्ता में रहते हुए पीपीपी की भारत से बातचीत जारी रही और द्विपक्षीय व्यापार संबंध भी सामान्य रहे। पार्टी के घोषणापत्र में कहा गया है, ‘हम एक एजेंडे पर प्रगति के अभाव को अन्य पर प्रगति में बाधक नहीं बनने देंगे।’
इमरान खान की पार्टी को सत्तारूढ़ सुरक्षा प्रतिष्ठान का करीबी समझा जाता है। उसने अपने घोषणापत्र में कहा है कि कश्मीर विवाद का समाधान पाकिस्तान के व्यापक राष्ट्रीय हितों में से एक है।
उसने आगे कहा है कि अगर भारत के साथ, संघर्ष के समाधान पर केंद्रित बातचीत में प्रगति हो तो दोनों देशों को फायदा होगा। साथ ही इमरान की पार्टी भारत के साथ द्विपक्षीय रणनीतिक वार्ता में सामरिक परमाणु प्रतिरोध के सभी पहलुओं को शामिल करने की बात करती है।

इमरान को कभी अगले प्रधानमंत्री के तौर पर देखा जाता था और उन्हें सुरक्षा प्रतिष्ठान का भी समर्थन रहा लेकिन वह इस दौड़ में आगे प्रतीत नहीं होते। विश्लेषकों को लगता है कि इमरान की पार्टी पंजाब और सिंध में कमजोर है जिससे उसका प्रदर्शन राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माने जाने वाले इन दो प्रांतों में प्रभावित हो सकता है।
पीपीपी के वरिष्ठ नेता लतीफ खोसा चुनाव प्रचार में भारत पर ध्यान केंद्रित न करने का कारण बताते हैं कि प्रत्याशी उन कामों पर ही जोर दे रहे हैं जो उन्होंने मतदाताओं के लिए किया है।
उन्होंने कहा ‘स्थानीय योजनाओं में हमारे प्रत्याशी मतदाताओं को वही बता रहे हैं जो उन्होंने किया है और जो वह भविष्य में करेंगे। इसमें कश्मीर या भारत का मुद्दा कैसे आएगा। लेकिन अगर आप विज्ञापन देखें तो आपको कश्मीर जरूर मिलेगा।’ खोसा और राष्ट्रपति जरदारी ने हाल ही में कश्मीर मुद्दा उठाया था। उन्होंने कहा था ‘हम इसे लेकर चिंतित हैं।’
पीएमएल-एन प्रवक्ता परवेज राशिद ने कहा कि टीवी पर उनकी पार्टी के विज्ञापनों में परमाणु परीक्षण करने के नवाज शरीफ के हिम्मत भरे कदम का और सियाचिन में हमारे सैनिकों की कार्रवाई का जिक्र है।
उन्होंने कहा ‘हम लोगों को याद दिला रहे हैं कि पीएमएल-एन नेतृत्व ही भारत के साथ बातचीत कर कश्मीर मुद्दे को हल कर सकता है। हम भारत के साथ शांतिपूर्ण संबंध चाहते हैं और यह हम पहले भी कई बार कह चुके हैं।’ स्तंभकार और टीवी टाक शो के प्रस्तोता फारूक पिताफी ने कहा कि चुनाव प्रचार में विदेश नीति से जुड़े मुद्दे हाशिये पर चले गए हैं।
उन्होंने कहा कि ज्यादातर दल भ्रष्टाचार, बेहतर प्रशासन और ऊर्जा संकट जैसे घरेलू मुद्दों पर ध्यान दे रहे हैं।
पीएमएल-एन, मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट तथा पाकिस्तान तहरीक ए इन्साफ जैसी सभी राजनीतिक पार्टियों के शीर्ष नेताओं ने गिनीचुनी रैलियों को ही संबोधित किया है जबकि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और अवामी नेशनल पार्टी प्रचार में नजर ही नहीं आ रही हैं। प्रतिबंधित पाकिस्तानी तालिबान ने पिछली सरकार का हिस्सा रहीं पीपीपी, एमक्यूएम और एएनपी की रैलियां और उनके नेताओं को निशाना बनाने की धमकी दी है जिसका असर इन दलों के प्रचार पर साफ नजर आ रहा है।
देश के पश्चिमोत्तर भाग में धर्मनिरपेक्ष एएनपी को निशाना बना कर किए गए आत्मघाती हमले में करीब 20 लोग मारे गए हैं। तालिबान ने भी सिंध प्रांत में एमक्यूएम के एक प्रत्याशी को मार डाला।
देश में सर्वाधिक आबादी वाले प्रांत पंजाब में भी चुनाव प्रचार फीका सा ही है। यह राज्य नेशनल असेंबली या संसद के निचले सदन में खास महत्व रखता है। हालिया रैलियों में पीएमएल-एन प्रमुख नवाज शरीफ 1990 के दशक की अपनी उपलब्धियों का और पीपीपी नीत गठबंधन के कमजोर प्रशासन का जिक्र करते हैं। यह चर्चा तेज है कि शरीफ अगले प्रधानमंत्री बनेंगे।
भ्रष्टाचार को खत्म करने और आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका नीत युद्ध से पाकिस्तान को बाहर निकालने के लिए नयी विदेश नीति बनाने के 60 वर्षीय इमरान खान के वादे ने पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ को युवाओं और शहरी क्षेत्र में लोकप्रिय बना दिया है।
वर्ष 2008 से 2013 तक पाकिस्तान में सत्ता में रही पीपीपी उन कार्यक्रमों पर जोर दे रही है जो उसने सत्ता में रहते हुए शुरू किये थे। इनमें ‘बेनजीर इनकम सपोर्ट प्रोग्राम’ भी है जिसके तहत हजारों परिवारों को एक माह में 1,000 रुपए दिए जाते हैं।
पीएमएल-एन जहां लाहौर में मेट्रो बस सेवा जैसी परियोजनाओं का गुणगान कर रही है वहीं इमरान खान का प्रचार अभियान ‘नया पाकिस्तान’ बनाने का संदेश दे रहा है। न्यायपालिका ने राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी पर चुनाव प्रचार करने से रोक लगा रखी है और पार्टी के लिए आशा का केंद्र उनके 24 वर्षीय पुत्र बिलावल ही हैं।
बहरहाल, बिलावल ने सिंध में पीपीपी कार्यकर्ताओं की छोटी सी सभा को ही संबोधित किया है। उन्हें सिर्फ टीवी स्पॉट्स में और अखबारों के विज्ञापनों में ही देखा जा सकता है जिसमें उनकी दिवंगत मां बेनजीर और नाना जुल्फिकार अली भुट्टो की तस्वीरें भी होती हैं। (एजेंसी)

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