‘अफगान तालिबान के लिए क्वेटा बना सुरक्षित ठिकाना’
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‘अफगान तालिबान के लिए क्वेटा बना सुरक्षित ठिकाना’

अफगान तालिबान और उनसे सहानुभूति रखने वाले पाकिस्तानी लोगों ने बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा के दक्षिण पश्चिमी बाहरी इलाके खरताबाद को सुरक्षित पनाहगार बना लिया है।

इस्‍लामाबाद : अफगान तालिबान और उनसे सहानुभूति रखने वाले पाकिस्तानी लोगों ने बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा के दक्षिण पश्चिमी बाहरी इलाके खरताबाद को सुरक्षित पनाहगार बना लिया है, जिसके चलते लोगों के मन में अमेरिकी ड्रोन हमलों का खौफ पैदा हो गया है।

 

एक अंग्रेजी दैनिक ‘द एक्‍सप्रेस ट्रिब्‍यून’ ने सोमवार को अपनी खबर में कहा है कि तालिबान लड़ाके हर चार महीने में अफगानिस्तान के संघर्ष वाले इलाकों से खरताबाद में किराए पर लिए हुए दर्जनों घरों में तरोताजा होने के लिए आते हैं। पाकिस्तान सरकार क्वेटा में अफगान तालिबान की मौजूदगी की खबरों से लगातार इनकार करती रही है, हालांकि पश्चिमी खुफिया एजेंसियों को संदेह है कि क्वेटा शूरा सहित तालिबान नेतृत्व इस इलाके में पैठ बनाये हुए है। अखबार का कहना है कि तालिबान की मौजूदगी आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए चिंता का विषय बन गई है क्योंकि उन्हें डर है कि वे कभी भी अमेरिकी विमानों के मिसाइल हमलों का निशाना बनाए जा सकते हैं।

 

अखबार के अनुसार, खरताबाद स्थित मदरसों में इन आतंकियों को निशुल्क ठहराया जा रहा है और वे वहां आजादी से घूमते हैं क्योंकि उन्हें यह अहसास है कि यह जगह उनके लिए सुरक्षित पनाहगाह है। यह इलाका और यहां स्थित मदरसे तालिबान के लिए बड़ा भर्ती केंद्र बन गए हैं, जहां हर माह अफगानिस्तान के लिए छह से आठ न्‍ए लड़ाकों को शामिल किया जाता है। भर्ती होने वाले नए लड़ाकों को एकदम नई 75सीसी मोटरबाइक दी जाती है ताकि वे जिहाद प्रशिक्षण केंद्रों तक जा सकें। उन्हें गोपनीय रास्तों के नक्शे मुहैया कराए जाते हैं ताकि वे चौकियों पर तैनात सुरक्षाकर्मियों की नजरों से बचकर कुचलक से होते हुए पाक-अफगान सीमा पर स्थित कमर दीन कारेज कस्बे तक पहुंच सकें। इन लड़ाकों को समूहों में यात्रा करने से मना किया जाता है। आमतौर पर एक बाइक पर दो ही लड़ाके सवार होते हैं और ईंधन के लिए पर्याप्त धन के अलावा दोनों को पांच-पांच हजार रुपये दिए जाते हैं।

 

अखबार ने कहा कि इनमें से अधिकांश लड़के अपने माता-पिता की सहमति से तालिबान में शामिल होते हैं जबकि कई ऐसे भी होते हैं जो अपने अभिभावकों की जानकारी के बिना ही इस ‘जिहादी अभियान’ में शामिल हो जाते हैं।

(एजेंसी)

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