त्रिवेदी ने भाड़ा बढ़ाने की कीमत चुकाई
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त्रिवेदी ने भाड़ा बढ़ाने की कीमत चुकाई

दिनेश त्रिवेदी को रेल बजट 2012-13 में यात्री किराये बढ़ाने के अपने साहसिक फैसले की कीमत चुकानी पड़ी।

नई दिल्ली: दिनेश त्रिवेदी को रेल बजट 2012-13 में यात्री किराये बढ़ाने के अपने साहसिक फैसले की कीमत चुकानी पड़ी। यह ऐसा फैसला था जिसके लिए उनके पूर्ववतीं-ममता बनर्जी और लालू यादव ने पिछले आठ साल में करने का साहस नहीं जुटा पाए।

 

विद्वान एवं भद्र पुरूष के रूप में जाने जाने वाले 61 वर्षीय त्रिवेदी तृणमूल कांग्रेस के गठन के समय से ही ममता के साथ थे और उन्हें उनकी निष्ठा का प्रतिफल मंत्रिमंडल में स्थान के रूप में मिला। लेकिन बताया जाता है कि कुछ समय बाद दोनों में मतभेद पनपने लगे।

 

लेकिन बात तब बहुत बिगड़ गयी जब उन्होंने रेलवे के लिए प्रतिवर्ष 4000 करोड़ अतिरिक्त रूपए जुटाने के लिए रेल बजट में यात्री किराये में भारी वृद्धि कर दी। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री के पद से प्रोन्नत कर त्रिवेदी को रेल मंत्री बनाया गया था और उन्होंने ममता बनर्जी का स्थान लिया था ।

 

ममता पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनने से पहले रेल मंत्री थीं। कुछ समय के लिए रेलमंत्रालय प्रधानमंत्री के पास रहा। त्रिवेदी राजनीति में अपराधीकरण के खिलाफ सक्रियता से संघर्ष करते रहे हैं। उन्होंने वोहरा कमेटी समेत कई जनहित याचिकाएं दायर की और सूचना का अधिकार वोहरा समिति पर उनकी याचिका पर परिणाम है। वह उपभोक्ता सुरक्षा आंदोलन से भी जुड़े रहे। जब अन्ना हजारे सशक्त लोकपाल विधेयक के समर्थन में पांच अप्रैल को जंतर मंतर पर बैठे तब उन्होंने पहले ही कुछ घंटों में उन्हें पत्र भेजकर कथित रूप से इस्तीफे की पेशकश की।

 

उन्होंने उनसे कहा कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी लड़ाई को मजबूत करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। वह हजारे एवं अरविंद केजरीवाल से कई वषरें तक जुड़े रहे। दो बार राज्यसभा के लिए निर्वाचित त्रिवेदी ने 2009 के लोकसभा चुनाव में बैरकपुर निर्वाचन क्षेत्र से माकपा के दिग्गज तड़ित तोपदार को हराया था।

 

पूर्व कांग्रेसी त्रिवेदी वी पी सिंह की अगुवाई वाले जनता दल के साथ हो गए थे। उन्होंने कलकत्ता के सेंट जेवियर कॉलेज से बीकॉम किया और टेक्सॉस विश्वविद्यालय से एमबीए किया था। (एजेंसी)

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