‘चुनावी ट्रस्ट’ कंपनियों के गठन का रास्ता साफ
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‘चुनावी ट्रस्ट’ कंपनियों के गठन का रास्ता साफ

कंपनियों के राजनीतिक चंदे की व्यवस्था में अधिक पारदर्शिता लाने के लिए सरकार ने ‘चुनावी ट्रस्ट कंपनियों’ के गठन का रास्ता साफ कर दिया है।

नई दिल्ली : कंपनियों के राजनीतिक चंदे की व्यवस्था में अधिक पारदर्शिता लाने के लिए सरकार ने ‘चुनावी ट्रस्ट कंपनियों’ के गठन का रास्ता साफ कर दिया है। ऐसी कंपनियों को विभिन्न राजनीतिक दलों को दिए गए धन या चंदे पर कर लाभ मिलेगा।
इस नए कदम के तहत इकाइयों को गैर लाभकारी कंपनियों को अपने नाम के तहत ‘निर्वाचक ट्रस्ट’ के रूप में पंजीकृत कराने की अनुमति होगी। इससे अन्य व्यवसायों में लगी कंपनियों के साथ इनका अंतर होगा। कंपनी मामलांे के मंत्रालय ने कंपनियांे के लिए नाम उपलब्धता दिशानिर्देशों में संशोधन किया है जिससे उनके लिए ऐसी इकाइयों का पंजीकरण आसान हो जाएगा।
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) की अधिसूचना के अनुसार, कंपनी कानून, 1956 की धारा 25 के तहत ‘निर्वाचक ट्रस्ट’ के साथ ऐसी कंपनी के पंजीकरण की अनुमति दी जाएगी। यह व्यवस्था ‘निर्वाचक ट्रस्ट स्कीम, 2013’ के तहत की जा रही है।
मंत्रालय ने कहा है कि इस तरह की कंपनी नई इकाई होगी। नाम के लिए आवेदन के साथ यह शपथपत्र भी देना होगा कि यह नाम सिर्फ सीबीडीटी की निर्वाचक ट्रस्ट योजना के तहत कंपनी का पंजीकरण कराने के लिए हासिल किया जा रहा है।
सरकार ने इसी साल निर्वाचक ट्रस्ट योजना-2013 को अधिसूचित कर दिया है। इसका मकसद कंपनियों द्वारा राजनीतिक दलों को उनके चुनावी खर्च के लिए दिए जाने वाले चंदे की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना है। योजना के तहत सिर्फ उन्हीं कंपनियों को यह कर लाभ मिलेगा जो किसी वित्त वर्ष में मिले कुल अंशदान का 95 प्रतिशत उसी साल पंजीकृत दलों को वितरित करेगी।
इसके अलावा वे कोई भी योगदान नकद में प्राप्त नहीं कर सकती। उन्हें योगदान देने वाले देश में रहने वाले लोगों का स्थायी खाता संख्या (पैन) लेना होगा। वहीं प्रवासी भारतीयों से चंदा लेते समय उनका पासपोर्ट नंबर लेना होगा। इन निर्वाचन ट्रस्ट कंपनियों को विदेशी नागरिकों या कंपनियों से योगदान लेने की अनुमति नहीं होगी।
पूर्व में कई उद्योग घराने मसलन टाटा, आदित्य बिड़ला समूह तथा भारती समूह अपने ट्रस्टों के माध्यम से राजनीतिक दलों को धन देते रहे हैं। हालांकि, इस तरह की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता की कमी को लेकर चिंता जताई जाती रही है। इसी के मद्देनजर सरकार इस बारे में कुछ अधिक स्पष्ट नियमन लेकर आई है। (एजेंसी)

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