<b>CRIME FILES में मानव तस्करी का भंडाफोड़</b>

भागदौड़ भरी ज़िंदगी में पहले न्यूक्लियर फैमिलीज़ का कंसेप्ट आया और अब हालात ये हैं कि पति-पत्नी दोनों नौकरी पर जाते हैं, ऐसे में आज के वक्त में महानगरों में खाने-पीने से लेकर बच्चों को संभालने तक के लिए डोमेस्टिक हेल्प सबसे बड़ी ज़रूरत बन चुकी है।

ज़ी मीडिया ब्यूरो
नई दिल्ली : भागदौड़ भरी ज़िंदगी में पहले न्यूक्लियर फैमिलीज़ का कंसेप्ट आया और अब हालात ये हैं कि पति-पत्नी दोनों नौकरी पर जाते हैं, ऐसे में आज के वक्त में महानगरों में खाने-पीने से लेकर बच्चों को संभालने तक के लिए डोमेस्टिक हेल्प सबसे बड़ी ज़रूरत बन चुकी है। इस काम के लिए ज़्यादातर लोग कम से कम पैसों में मेड की तलाश करते हैं और इसी वजह से महानगरों में मेड सप्लाई करने का धंधा खूब फल-फूल रहा है। लेकिन इन प्लेसमेंट एजेंसीज़ के बाज़ार में कई ऐसे भी लोग शामिल हो चुके हैं जो ह्यूमन ट्रैफिकिंग के शातिर अपराधी हैं। ऐसे लोग चंद रुपयों में ग़रीब आदिवासी लड़कियों को खरीदते हैं और फिर उनको लोगों के घर काम पर भेजकर उनकी मेहनताने पर ऐश करते हैं। लड़कियों को डराया-धमकाया जाता है ताकि वो उन लोगों के सामने मुंह न खोलें जिनके यहां उन्हें काम करने के लिए भेजा जाता है।
क्राइम फाइल्स की टीम को भी इस बात की जानकारी लगी और फिर शुरू हुआ डोमेस्टिक हेल्प और ह्यूमन ट्रैफिकिंग के सच को जानने का मिशन। ऑपरेशन डोमेस्टिक हेल्प की शुरुआती तफ्तीश में हमारी टीम को जानकारी मिली कि ज़्यादातर लड़कियां झारखंड, छत्तीसगढ़, बंगाल और पूर्वोत्तर के राज्यों के उन इलाकों से लाई जाती हैं जहां ग़रीबी चरम पर है। इसी तलाश में हमारी टीम को छत्तीसगढ़ के जशपुर इलाके में कुछ दलालों की मौजूदगी की जानकारी मिली। हमारी टीम जशपुर पहुंची तो वहां दिनेश भगत नाम के दलाल से मुलाक़ात हुई जिसने 10-15 हजार रुपए में लड़कियां सप्लाई करने की बात कही। पेश है लड़कियों की सप्लाई करने वाले एक दलाल से बातचीत के मुख्य अंश-
रिपोर्टर- हम लोगों ने काम शुरू किया है, प्लेसमेंट एजेंसी कराई है, मतलब काफी ऐसी भोली-भाली लड़कियां चाहिएं जो काम करें। मतलब सिलाई-कढ़ाई जानती हों, घर का काम करती हों, घर में काम करने वाली लड़कियां चाहिएं।
दलाल- हां, मिल जाएंगी, अभी पहली मुलाकात है आपसे और...।
रिपोर्टर- कोई कार्ड वगैरह है।
शुरुआत में उस दलाल ने हमपर भी शक जताया, उसे आशंका थी कि हम किसी एनजीओ या मीडिया से जुड़े हो सकते हैं लेकिन उससे ह्यूमन ट्रैफिकिंग का सच उगलवाने के लिए हम भी कमर कस चुके थे और आखिरकार उस दलाल ने हमें लड़कियों के कारोबार को लेकर असल सच्चाई बता ही दी, वो नहीं जानता था कि उसकी सारी बातें कैमरे में क़ैद हो रही हैं।
दलाल- मिल जाएंगी पर, थोड़ा खर्च करना पड़ेगा।
रिपोर्टर- कितने चाहिएं? हमें भी तो रिक्वायरमेंट है। कभी पांच चाहे, कभी छह, हमारा ऑफिस दिल्ली में है, मुंबई में है और अहमदाबाद में है। किस उम्र की लड़कियां मिलेंगी?
दलाल- यहां तो अब जैसे कोई भी आता है हमारे पास की हमें काम चाहिए, तो 10 साल का आता है, 16 साल का आता है, कोई 22 साल, कोई 25 साल।
रिपोर्टर- कभी दिल्ली वगैरह आप लड़कियां भिजवाए हो?
दलाल- कई बार गए हैं।
इस दलाल ने हमें बताया कि इन इलाकों में ग़रीबी ज़्यादा है और यहां पर लड़कियों के पैदा होने के बाद से ही उनपर नज़र रखनी शुरू कर दी जाती है क्योंकि बड़े शहरों में घर में कामकाज के अलावा बच्चों को संभालने के लिए 13 से 15 साल की लड़कियों की ख़ासी डिमांड रहती है। लेकिन सवाल था कि आखिर लड़कियों की खरीद-फरोख़्त में रुपए पैसे का लेन-देन कैसे होता है, उसके राज भी हमने उससे उगलवाने शुरू कर दिए।
दलाल- पैसा जो है न एजेंसी देती है, हां जिसके पास जाते हैं वो तो एजेंसी को देते हैं।
रिपोर्टर- तुम्हारा कैसा हुआ इसमें ?
दलाल- आपको पांच चाहिए ना।
रिपोर्टर- 5 हां, पांच की रिक्वार्यमेंट अभी हाल-फिलहाल में ही होगी।
दलाल- तब कुछ एडवांस वगैरह।
रिपोर्टर- एडवांस तब न जब हमें पता चले की जिस आदमी से मिल रहे हैं वो...।
दलाल- आपके ऊपर दरअसल मैं ट्रस्ट कर रहा हूं तो थोड़ा ट्रस्ट आप मुझपर भी तो करिए।
रिपोर्टर- ठीक है अभी तो है। बाकी कब तक लड़कियां मिल जाएंगी।
दलाल- 3-4 दिन लगेंगे।
इस दलाल ने हमें चंद रुपयों के बदले लड़कियां सौंपने ही नहीं, दिल्ली तक पहुंचाने का वादा कर दिया, इसके बाद हमारी टीम ने जशपुर के लोखण्डी गांव में एक और दलाल से बात की जो कि खुद भी एक महिला ही थी।
रिपोर्टर- लड़कियां कब तक भेज दोगे आप और ज़्यादा अगर ज़रूरत हुई तो?
महिला दलाल- 1-2 का इंतज़ाम तो तुरंत हो जाएगा, यहां से ज़्यादा नहीं दे पाएंगे।
रिपोर्टर- तुम भी लड़कियों को छोड़ने जाती हो ?
महिला- हां, आनंद विहार छोड़ने जाती हूं।
इस महिला दलाल ने दावा किया कि वो दिल्ली के आनंद विहार तक लड़कियों को छोडऩे के लिए जाती है, उसने ये भी बताया कि कालेखां इलाके में भी उसकी कोई जान पहचान की महिला रहती है जो कि उसके दलाली के धंधे में मदद करती है। इस महिला दलाल इसे लड़कियों की सप्लाई का ठिकाना बता रही है, उसने ये भी दावा किया कि वो कभी भी, कहीं भी लड़कियां सप्लाई कर सकती है, बस पैसा वक्त पर मिलना चाहिए।
रिपोर्टर- एक लड़की भेजते हो तो कितना मिलता है ?
महिला दलाल- 10 हजार रुपए।
रिपोर्टर- लड़कियां चाहिए होंगी तो कब तक भेजोगे ?
महिला दलाल- जैसा मिलेगा वैसे करा दूंगी।
रिपोर्टर-एक-दो अगर ज़्यादा की ज़रूरत हुई, कब तक हो जाएगा?
महिला दलाल- असम से दिलवा देंगे। 2-3 के लिए कोई दिक्कत नहीं है।
रिपोर्टर- पुलिस के रिकॉर्ड में तो कोई नाम नहीं?
महिला दलाल- हां, मेरे को एक बार अंदर कर दिए थे फिर बात करके छूट गई।
रिपोर्टर- पुलिस रिकॉर्ड में नाम तो नहीं है क्योंकि जिनका नाम होता है उनपर नज़र रहती है।
महिला दलाल- नहीं-नहीं, कोई नाम नहीं है, पुलिस लोग मिलने पर नमस्कार करते हैं मेरो को। सब जानते हैं मेरो को, क्योंकि इतना मेहनत करती हूं।
इस महिला दलाल ने पुलिस से सांठगांठ होने का भी दावा किया, पुलिस भी मानती है कि छत्तीसगढ़ में ह्यूमन ट्रैफिकिंग के मामले जोरों पर हैं, जशपुर के एसपी मनीष शर्मा बताते हैं कि ऐसे मामलों में सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि इन मामलों के अदालत पहुंचने पर कई बार लड़कियां ही बयान से पलट जाती हैं क्योंकि अक्सर दलाली कोई और नहीं परिवार से जुड़े लोग ही करते हैं।
वहीं, बचपन बचाओ आंदोलन के कैलाश सत्यार्थी का भी दावा है कि दिल्ली-एनसीआर ह्यूमन ट्रैफिकिंग का हब बन चुका है। दिल्ली पुलिस के एडिशनल कमिशनर रविन्द्र यादव भी मानते हैं कि प्लेसमेंट एजेंसीज़ वाले लोग लड़कियों को ग़रीबी से दूर निकालने का झांसा देकर आदिवासी इलाकों से यहां ले आते हैं और फिर लड़कियां इस मायाजाल में फंस जाती हैं।
क्राइम फाइल्स की तफ्तीश भी बताती है कि देश में हजारों ऐसी लड़कियां हैं जो दलालों और प्लेसमेंट एजेंसीज़ के जाल में फंस जाती हैं और फिर वो इस गर्त में डूबती चली जाती हैं। छत्तीसगढ़ के जसपुर में ही हमारी टीम कई ऐसी लड़कियों से भी मिली जिन्हें पुलिस ने दलालों और प्लेसमेंट एजेंसीज़ के चक्र से बचाया। 21 साल की लक्ष्मी बताती है कि उसे पहले छत्तीसगढ़ में ही बेचा गया और फिर राजधानी में उसकी क़ीमत 45 हजार रुपए लगाई गई। इस कीमत को चुकाने के बाद प्लेसमेंट एजेंसी वाले दलाल ने उसे नौकरानी बनाकर लोगों के घर भेजा और उसके बदले हर महीने तनख्वाह खुद रख लेता था। लक्ष्मी ने दलाल के चंगुल से बचने के लिए पास ही के एक ड्राइवर से अपना दर्द बांटा जिसका ख़ामियाज़ा वो आज भी भुगत रही है। लक्ष्मी 1 साल के बच्चे की बिन ब्याही मां बन चुकी है।
क्राइम फाइल्स की तफ्तीश बताती है कि ह्यूमन ट्रैफिकिंग के जाल में ग़रीब आदिवासी लड़कियां ही नहीं, मध्यवर्गीय परिवार भी फंस रहे हैं क्योंकि अक्सर उन्हें इस बात का पता ही नहीं चलता कि जो नौकरानी उनके घर काम कर रही है वो दरअसल ह्यूमन ट्रैफिकिंग की शिकार है। इसलिए, आप भी सावधान रहिए क्योंकि आपकी सावधानी ही ह्यूमन ट्रैफिकिंग के इस घिनौने ज़ुर्म को रोकने में मददगार साबित हो सकती है।
(नवीन कुमार, एडीटर, क्राइम एंड इनवेस्टिगेशन, ज़ी मीडिया ग्रुप)

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