डीजी वंजारा ने छोड़ी नौकरी, मोदी और शाह पर साधा निशाना
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डीजी वंजारा ने छोड़ी नौकरी, मोदी और शाह पर साधा निशाना

फर्जी मुठभेड़ मामलों में अपनी संलिप्तता पर जांच का सामना कर रहे गुजरात के निलंबित आईपीएस अधिकारी डीजी वंजारा ने मंगलवार को इस्तीफा दे दिया। वंजारा ने इन मामलों का पूरा ठीकरा राज्य के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्य के पूर्व गृह मंत्री अमित शाह के सिर फोड़ा है।

अहमदाबाद : फर्जी मुठभेड़ों के मामले में निलंबित हुए और जेल में बंद विवादास्पद आईपीएस अधिकारी डी जी वंजारा ने पुलिस सेवा से इस्तीफा दे दिया तथा नरेंद्र मोदी सरकार पर ‘पाकिस्तान द्वारा प्रेरित आतंकवाद’ से लड़ने वाले पुलिस अधिकारियों की सुरक्षा करने में नाकाम रहने का आरोप लगाया है।
वंजारा 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी थे और मोदी के करीबियों में गिने जाते थे।

उन्होंने अपने त्यागपत्र में कहा कि कथित फर्जी मुठभेड़ों में शामिल पुलिस अधिकारियों ने सरकार की ‘सोची समझी नीति’ का कार्यान्वयन किया और ऐसे में उसका (सरकार) स्थान ‘नवी मुंबई स्थित तालोजा केंद्रीय कारागार’ अथवा ‘अहमदाबाद स्थित साबरमती कारागार’ में होना चाहिए।
साबरमती केंद्रीय कारागार में बंद वंजारा ने 10 पृष्ठों के त्यागपत्र में राज्य सरकार, ,खासकर पूर्व गृह मंत्री अमित शाह पर उन्हें और 32 अधिकारियों को धोखा देने का आरोप लगाया है। उन्होंने अपना त्यागपत्र राज्य के गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को भेजा है।
वंजारा ने कहा कि वह मोदी को भगवान की तरह पूजते थे, लेकिन गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी शाह के ‘दुष्प्रभाव’ के कारण मौका पड़ने पर सामने नहीं आए। शाह भी सोहराबुद्दीन शेख और तुलसी प्रजापति मुठभेड़ मामलों में आरोपी हैं।
उन्होंने अपने और दूसरे पुलिस अधिकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई के लिए नरेंद्र मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि सभी अधिकारी गुजरात सरकार की नीति का पालन कर रहे थे।
वंजारा ने कहा, ‘गुजरात सीआईडी और सीबीआई ने मुझे एवं दूसरे अधिकारियों को कथित फर्जी मुठभेड़ों के मामलों में गिरफ्तार किया है।’ उन्होंने कहा, ‘अगर सच्चाई है तो अधिकारियों की जांच कर रही सीबीआई को नीति बनाने वालों को गिरफ्तार करना होगा। हम लोगों ने सिर्फ इस नीति का कार्यान्वयन किया।’
वंजारा ने कहा, ‘मेरी राय है कि इस सरकार को गांधीनगर में होने की बजाय तालोजा केंद्रीय कारागार अथवा साबरमती केंद्रीय कारागार में होना चाहिए।’ वंजारा के त्यागपत्र में वस्तुत: इस बात को स्वीकार किया गया है कि मोदी के कार्यकाल में फर्जी मुठभेड़ें हुईं तथा ये गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा चुनाव अभियान समिति के प्रमुख के लिए आगामी चुनाव से पहले समस्याएं खड़ी कर सकती हैं।
उन्होंने इस बात का हवाला दिया कि इन हत्याओं ने किस तरह से राज्य की भाजपा सरकार को ‘अच्छा खासा राजनीतिक फायदा’ पहुंचाया।
वंजारा ने कहा, ‘इससे सभी अवगत है कि यह सरकार बीते 12 वर्षों से मुठभेड़ के मामलों के जीवंत रहने से बहुत अधिक राजनीतिक लाभ ले रही है, अन्यथा इसको बहुत अधिक तवज्जो नहीं मिलती।’
उन्होंने कहा, ‘वक्त गुजरने के साथ मैंने पाया कि यह सरकार न केवल हमारी सुरक्षा नहीं कर रही है, बल्कि मुझे और मेरे अधिकारियों को जेल में रखने के लिए पूरा प्रयास कर रही है ताकि सीबीआई से अपने को बचा सके एवं राजनीतिक लाभ भी ले सके।’
सोहराबुद्दीन मुठभेड़ मामले में सबसे पहले वंजारा को 24 अप्रैल, 2007 को गिरफ्तार किया गया था और इसके बाद से ही वह साबरमती केंद्रीय कारागार में बंद हैं।
पिछले छह वर्षों के दौरान उन्हें तुलसी प्रजापति, सादिक जमाल, मुंबई की छात्रा इशरत जहां, जावेद शेख तथा दो कथित पाकिस्तानी नागरिकों अमजद अली राणा एवं जीशान जौहर की कथित फर्जी मुठभेड़ों के मामले में मुख्य आरोपी बनाया गया है।
अमित शाह पर सीधा हमला बोलने के साथ वंजारा ने मोदी के खिलाफ सख्त अलफाजों के इस्तेमाल से परहेज किया है। उन्होंने कहा कि वह मोदी को भगवान की तरह पूजा करते थे। उन्होंने कहा, ‘मैं इतने लंबे समय तक सिर्फ चुप रहा क्योंकि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर मुझे बहुत अधिक विश्वास और सम्मान है। मैं उनकी कभी भगवान की तरह पूजा करता था।’
मोदी के प्रति भी उन्होंने अपनी नाराजगी जताते हुए कहा, ‘मुझे यह कहते हुए दुख होता है कि अमित शाह के बुरे प्रभाव के कारण मेरा भगवान मौका पड़ने पर मेरे साथ खड़ा नहीं हुआ। अमित शाह बीते 12 वषरें से मोदी को गुमराह करते रहे।’
उन्होंने कहा, ‘गुजरात के मुख्यमंत्री भारत मां का कर्ज चुकाने की बात बड़े अच्छे ढंग से करते रहे हैं, परंतु उन्हें यह याद दिलाना प्रसंग से हटकर नहीं होगा कि दिल्ली की ओर कूच करने की जल्दबाजी में वह जेल में बंद अधिकारियों का कर्ज चुकाना नहीं भूले। इन अधिकारियों ने उन्हें एक साहसी मुख्यमंत्री का तमगा दिलवाया और इनकी वजह से ही वह मुख्यमंत्रियों की आकाशगंगा में चमकने लगे।’
वंजारा ने सोहराबुद्दीन और तुलसी प्रजापति फर्जी मुठभेड़ मामलों के गुजरात से बाहर स्थानांतरण के लिए शाह को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने शाह पर ‘बांटों और राज करो’ की ब्रिटिश नीति पर चलने और अपनी विश्वसनीयता खो देने का आरोप लगाया।
फर्जी मुठभेड़ के चार मामलों में गुजरात और राजस्थान के छह आईपीएस अधिकारियों सहित 32 पुलिसकर्मी सीबीआई जांच के घेरे में हैं। वंजारा ने गुजरात सरकार पर जेल में बंद पुलिसकर्मियों के परिवार की देखभाल नहीं करने का भी आरोप लगाया।
उन्होंने महात्मा गांधी के एक कथन का हवाला देते हुए कहा, ‘मेरा मानना है कि महात्मा गांधी ने पूरी तरह सही कहा था कि राज्य निष्प्राण मशीन हैं.. सरकारों के पास कोई विवेक नहीं होता है।’
साल 2002 के दंगों के बाद की स्थिति का उल्लेख करते हुए वंजारा ने कहा, ‘लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और दाउद इब्राहिम गिरोह जैसे पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों ने इस दंगे को गुजरात को दूसरा कश्मीर बनाने के लिए इस्तेमाल किया।’
उन्होंने कहा, ‘गुजरात की पाकिस्तान के साथ बहुत लंबी तटीय सीमा है और यह वस्तुत: दूसरा कश्मीर बनने की राह पर था। इसी संदर्भ में गुजरात सरकार के उच्च स्तर पर आतंकवाद को लेकर शून्य सहिष्णुता की नीति अपनाई गई।’
वंजारा ने कहा, ‘मैं यह गर्व के साथ कह सकता हूं कि मेरे अधिकारियों और लोगों ने न सिर्फ गुजरात को दूसरा कश्मीर बनने से रोका, बल्कि राज्य में स्थायी शांति का माहौल तैयार करने में भी सहायक रहे। मेरे और मेरे अधिकारियों के बलिदान के बगैर गुजरात का विकास मॉडल संभव नहीं हो पाता जिसे आज यह सरकार राष्ट्रीय स्तर पर पेश कर रही है।’
उन्होंने कहा, ‘यह सरकार निरर्थक साबित हुई है और अपने उन वफादार सिपाहियों की रक्षा करने में नाकाम रही है जिन्होंने उसकी ओर से सीमा पार आतंकवाद से लड़ाई लड़ी।’ (एजेंसी)

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