जी हां! ऐसे आएंगे 'अच्छे दिन'
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जी हां! ऐसे आएंगे 'अच्छे दिन'

'एक भारत श्रेष्ठ भारत', 'सब का साथ सब का विकास' और ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम सुशासन’ के बुनियादी सिद्धांतों को लेकर पूर्ण बहुमत में आई मोदी सरकार का पांच साल का एजेंडा क्या होगा, देश में अच्छे दिन कैसे आएंगे का विस्तृत ब्योरा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश के समक्ष रखा।

राष्ट्रपति का यह अभिभाषण काफी अहम होता है क्योंकि जनता ने जिस सरकार के हाथ में देश की बागडोर थमाई है वह आगे पांच साल में क्या करने जा रही है, इसका मोटे तौर पर जवाब इसमें होता है। राष्ट्रपति ने संसद के केंद्रीय कक्ष में दोनों सदनों के संयुक्‍त सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि 16वीं लोकसभा का चुनाव देश की उम्मीदों का चुनाव रहा। यह हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के विकास में एक अहम पड़ाव है। चुनावों में 66 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं की रिकार्ड भागीदारी और लगभग तीन दशक बाद किसी एक पार्टी को मिला स्पष्ट जनादेश लोगों की आकांक्षाओं और उनके भरोसे को दर्शाता है कि इन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया के जरिए ही पूरा किया जा सकता है।

राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद किसी तरह के शक या संदेह की गुंजाइश नहीं बचती कि देश की नवनिर्वाचित मोदी सरकार किसी भी देश व समाज की तरक्की के लिए सकारात्मक विकास का जो सिद्धांत होता है उसे अपनाना चाहती है। आप गौर करें तो विदेशी बैंकों में जमा देश का कालाधन, भ्रष्टाचार, कालाबाजारी और इससे उपजी महंगाई ने देश को तबाह करके रख दिया है। जैसा कि राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा है, 'भ्रष्टाचार, कालाबाजारी और महंगाई से लोगों को निजात दिलाना सरकार की प्राथमिकता होगी और कालाधन को लेकर प्रक्रिया के तहत काम शुरू हो गया है' तो सरकार की यह पहल निश्चित रूप से 'अच्छे दिन' को इंगित करती है।

'सबको रोजगार, महिलाओं की सुरक्षा, हर घर को बिजली, जल सुरक्षा, सबको आशियाना, सोशल मीडिया का सशक्तिकरण, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, स्वास्थ्य सुविधा, हर खेत को पानी, हर घर में शौचालय' ये मानवीय विकास के कुछ ऐसे पहलू हैं जिसमें 'सर्व धर्म सम्भाव' का मूल तत्व छिपा है। विकास के इस मंत्र को साधने में अगर मोदी सरकार सफल रही तो निश्चित रूप से जो काम आजादी के बाद पिछले करीब 6 दशकों में संभव नहीं हो सका है, आगामी पांच से दस साल में पूरा होगा।  

जैसा कि महामहिम ने कहा कि इस चुनाव में मतदाताओं ने जाति, पंथ, क्षेत्र और धर्म की सीमाओं को तोड़ा है और उन्होंने सुशासन एवं विकास के पक्ष में एकजुट होकर निर्णायक मत दिया है। इसीलिए सरकार ने भी देश के विकास का कुछ ऐसा रोडमैप तैयार किया है जिसपर कोई यह नहीं कह सकता है कि सरकार मतदाताओं के निर्णायक मत की अनदेखी कर रही है या किसी जाति, पंथ, क्षेत्र या धर्म विशेष को लेकर सरकार का कोई एजेंडा है।

मोदी सरकार का रोडमैप बताने वाले राष्ट्रपति के अभिभाषण में देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना सरकार के लिए बड़ा उद्देश्य कहा गया। इसमें कहा गया, हम अपनी अर्थव्यवस्था को सतत उच्च विकास पर ले जाने के लिए मिल-जुल कर कार्य करेंगे। महंगाई नियंत्रित करेंगे, निवेश चक्र में तेजी लाएंगे, रोजगार सृजन तेज करेंगे और अपनी अर्थव्यवस्था के प्रति घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय समुदाय का विश्वास बहाल करेंगे। हालांकि देश को आर्थिक बदहाली से उबारना इतना आसान नहीं होगा और इसके लिए संभव है सरकार को कुछ कड़े फैसले लेने पड़ सकते हैं। इस स्थिति में यह भी संभव है कि लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा हो, लेकिन इसके जो दूरगामी परिणाम होंगे वह लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने में निश्चित रूप से सफल होगा। इसमें जनता को थोड़े धैर्य का परिचय देना होगा।

भारत दुनिया का ऐसा देश जिसमें युवाओं की आबादी सबसे अधिक है। नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान भी युवाओं को फोकस किया था। सरकार में आने के बाद आबादी के लाभांश 'यूथ पावर' को शिक्षा, कौशल और अवसरों से सुसज्जित करने की योजना को लेकर मोदी काफी आशान्वित हैं। महामहिम के संबोधन में इस बात पर जोर दिया गया कि नई सरकार केवल ‘युवा विकास’ की संकल्पना की बजाए ‘युवा संचालित’ विकास व्यवस्था प्रदान करेगी। सरकार मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्सेज और वर्च्युअल कक्षाएं तैयार करेगी। स्कूली अध्यापकों और छात्रों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय ई-लाइब्रेरी स्थापित की जाएगी। सरकार ‘हर हाथ को हुनर’ के उद्देश्य से औपचारिक शिक्षा और कौशल विकास के बीच की बाधाओं को दूर करने का प्रयास करेगी और ऐसी व्यवस्था बनाएगी जिसमें व्यावसायिक योग्यताओं को अकादमिक समानता दी जाएगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बात को मजबूती से मानते हैं कि गरीबी का कोई धर्म नहीं होता है, भूख का कोई पंथ नहीं होता है और निराशा का कोई भूगोल नहीं होता। चुनाव प्रचार के दौरान भी मोदी ने बार-बार इस मुद्दे को उठाया। अब जब मोदी के नेतृत्व में देश में नई सरकार का गठन हुआ है तो सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती भारत में गरीबी के अभिशाप को समाप्त करना है। राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में इस बात पर संतोष जताया है कि नई सरकार केवल ‘निर्धनता उपशमन’ से संतुष्ट नहीं होगी बल्कि यह ‘गरीबी का पूर्ण निवारण’ करने के लक्ष्य के प्रति वचनबद्ध है। राष्ट्रपति ने कहा, 'सरकार इस दृढ़ मत के साथ कि विकास पर पहला हक गरीब का है, अपना ध्यान उन पर केन्द्रित करेगी ताकि जीवन की मूलभूत जरूरतों की तुरंत पूर्ति हो सके।'

दरअसल मूलभूत जरूरतों की भी कोई जाति नहीं होती, कोई मजहब नहीं होता। मान लीजिए आपको दिल्ली से पटना जाना है। आमतौर पर 15 दिन या एक महीना पहले भी यात्रा की तारीख तय कर लें तो कन्फर्म टिकट उपलब्ध नहीं होता है। जाना जरूरी हो, ट्रेन में टिकट है नहीं, इतने पैसे हैं नहीं कि हवाई सफर का सहारा ले लें। तो यहां सुशासन की बात करने वाली सरकार को कुछ इस तरह की व्यवस्था बनानी होगी कि आपको जाना है तो ट्रेन में जगह मिलेगी। कहने का मतलब यह कि गरीबी और गरीबों की मूलभूत जरूरतों की बिरादरी एक ही होती है और इनका किसी जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्रीयता से कोई लेना-देना नहीं होता। सरकार अगर इसपर ध्यान देती है तो वाकई सुशासन तेजी से सीढ़ियां चढ़ने लगेगा।

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