नया एजेंडा और नए विचारों की इबारत
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नया एजेंडा और नए विचारों की इबारत

देश के 68वें स्‍वाधीनता दिवस के मौके पर योजना आयोग को समाप्त करने का ऐलान किया गया। बीते मई महीने में नरेंद्र मोदी सरकार के गठन के बाद से ही इस बात की चर्चा होने लगी थी कि योजना आयोग के दिन अब लद गए। हाल के वर्षों में कई दफा विवादों में घिरा रहा 64 साल पुराना योजना आयोग अब जल्द ही इतिहास बन जाएगा।

देश के 68वें स्‍वाधीनता दिवस के मौके पर योजना आयोग को समाप्त करने का ऐलान किया गया। बीते मई महीने में नरेंद्र मोदी सरकार के गठन के बाद से ही इस बात की चर्चा होने लगी थी कि योजना आयोग के दिन अब लद गए। हाल के वर्षों में कई दफा विवादों में घिरा रहा 64 साल पुराना योजना आयोग अब जल्द ही इतिहास बन जाएगा।

लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र के नाम अपने पहले संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योजना आयोग को समाप्‍त करने की घोषणा की। इसी के साथ समाजवादी विकास के समय की विरासत रहा योजना आयोग का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। केंद्रीय नियोजन वाली सोवियत व्यवस्था की तर्ज पर देश में स्थापित आयोग को खत्म करके अब इसकी जगह ज्यादा प्रासंगिक संस्थान की स्थापना की जाएगी।
अब ऐसी उम्‍मीद की जानी चाहिए कि योजना आयोग के स्थान पर नए संस्थान की स्थापना होने के बाद इसमें देश और विदेश के बदले हुए आर्थिक हालात को ध्यान में रखा जाएगा। वैसे भी बदलते परिवेश और परिदृश्‍य में देश की आर्थिक आवश्यकताओं और संघीय ढांचे को मजबूत करने की चुनौती है। संभव है कि नई व्‍यवस्‍था के तहत उन चुनौतियों और तमाम लक्ष्यों को बेहतर तरीके से पूरा किया जा सके।

जिक्र योग्‍य है कि नरेंद्र मोदी ने विकास और अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए नए विचारों की इबारत लिखते हुए कहा कि भारत को वैश्विक निर्माण का आधार बनना चाहिए। संभवत: इसके पीछे यह संदेश छिपा है कि वैश्विक पटल पर देश को आगे ले जाने की दिशा में योजना आयोग अब इतना कारगर नहीं रहा। वैसे देखें तो योजना आयोग की प्रासंगिकता नब्‍बे के दशक में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के बाद से खत्म होती चली गई। लाइसेंस राज खत्म होने के बाद यह बिना किसी प्रभावी अधिकार के सलाहकार संस्था के तौर पर काम करती रही। इसी का नतीजा है कि मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस समारोह के भाषण में कहा कि जल्द ही योजना आयोग की जगह एक नए संस्थान की स्थापना की जाएगी। वैसे भी देश की आंतरिक स्थिति बदल गई है, वैश्विक हालात बदल गए हैं। ऐसे में रचनात्मक सोच और युवाओं की क्षमता का अधिकतम उपयोग करने वाला संस्थान बनाने की जरूरत है।

यह कहने में अब कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि योजना आयोग की अवधारणा अब पुरानी हो गई है और नए युग के साथ तालमेल बिठकार अब इसके आधुनिकीकरण की जरूरत है। निश्चित ही इसमें बदलाव की जरूरत थी।

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले योजना आयोग का गठन 15 मार्च 1950 को एक प्रस्ताव के जरिये हुआ था। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने देश की आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने के लिए योजना आयोग की स्थापना की थी। कैबिनेट के प्रस्ताव के बाद बनी इस आयोग के पास अब तक असीम अधिकार हैं। इसका महत्वपूर्ण काम क्षेत्रवार वृद्धि का लक्ष्य तय करना और इसे प्राप्त करने के लिए संसाधन आवंटित करना हैं। इसका उद्देश्य कृषि और औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने के लिए संसाधनों का आकलन, केंद्रीयकृत पंचवर्षीय योजनाएं बनाना और फंड आवंटित करना था। बीते कुछ सालों में आयोग के कामकाज की आलोचना होती रही है। कई राज्‍यों ने अपने साथ भेदभाव किए जाने की बात भी उठाई और कई तरह के वाल उठे। इसके बावजूद आयोग की कार्यशैली पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

बीते सालों में कुछ राज्यों ने डगमगाती अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान की। इस तथ्‍य को देखें तो अब योजना आयोग की केंद्रीयकृत भूमिका की जरूरत नहीं रह गई है। यूपीए सरकार के शासनकाल में कई बार योजना आयोग केंद्र और राज्यों के साथ विवाद का आधार बना। इसकी वजह यह थी कि कुछ राज्‍य बजट के आवंटन को लेकर भेदभाव का मसला उठाते थे।

जिस समय योजना आयोग का गठन हुआ था, उस समय तात्कालिक जरूरतों को मद्देनजर रख इसे अमलीजामा पहनाया गया था। समय के अंतराल के साथ आयोग ने देश के विकास में अपना योगदान दिया, इसे कहने से गुरेज नहीं है। मगर अब आंतरिक हालात और बाह्य स्थिति पूरी तरह बदल गई है। वैश्विक वातावरण में भी काफी बदलाव आया है। अब यदि इसकी जगह नए सिरे से किसी सशक्‍त संस्‍था को जन्‍म दिया जाएगा तो आगामी कई दशकों तक यह देश के विकास और अर्थव्‍यवस्‍था को गति देने में सक्षम हो पाएगा।

पीएम के शब्‍दों में भारत को आगे बढ़ाने के लिए राज्यों का विकास जरूरी है और संघीय ढांचे को मजबूत करने की जरूरत पहले से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई। इस सोच को ध्‍यान में रखकर नई व्‍यवस्‍था के अमल में लाने के प्रयासों से केंद्र और राज्‍यों के बीच भी एक मजबूत कड़ी स्‍थापित होगी जोकि देश के सर्वांगीण विकास के लिए आने वाले समय में काफी कारगर साबित होगा। संभवत: यही कारण है कि शासन सत्‍ता ने योजना आयोग में बदलाव की जरूरत महसूस की और इसकी जगह अधिक रचनात्मक संस्था बनाने की रूपरेखा तैयार की। संभव है कि नई संस्था में राज्यों की भूमिका बढ़ाई जा सकती है। वैसे भी समुचित विकास के लिए केंद्र और राज्यों को मिलकर ही चलना होगा ताकि जन-जन के लिए दीर्घकालिक जनकल्‍याणकारी योजनाएं बन सके।

वैसे भी नरेंद्र मोदी कई मौकों पर देश में विकास और अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए नए विचार और नए एजेंडे को अमल में लाने का जिक्र कर चुके हैं। निश्चित ही इसके पीछे भारत को वैश्विक निर्माण का आधार बनाने की बात प्रबल और मुख्‍य केंद्र में है। देश और विदेश के बदले हुए आर्थिक हालात को यदि ध्यान में रखा जाए तो यहां आर्थिक मोर्चे पर आज बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। आर्थिक मजबूती कोई एक-दो दिन में नहीं आ जाएगी। इसके लिए जरूरत है ठोस योजनागत चीजें हों और उसे समयबद्ध तरीके से क्रियान्वित किया जाए। नई संस्था से यह उम्‍मीद होगी कि मौजूदा आर्थिक चुनौतियों से निपटने, युवाओं की क्षमता के बेहतर इस्‍तेमाल, संघीय ढांचे की मजबूती और केंद्र व राज्‍यों के बीच संबंध बेहतर बनाने का काम जरूर होगा।

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