वोडाफोन ने भारत को दिया मध्यस्थता का नोटिस

दूरसंचार कंपनी वोडाफोन ने 20,000 करोड़ रूपये से अधिक के कर विवाद में भारत सरकार को अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का नया नोटिस दिया है।

नई दिल्ली : दूरसंचार कंपनी वोडाफोन ने 20,000 करोड़ रूपये से अधिक के कर विवाद में भारत सरकार को अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का नया नोटिस दिया है। कंपनी के इस कदम के बाद सरकार इस ब्रितानी कंपनी के साथ कर विवाद में सुलह सफाई की अपनी पेशकश वापस लेगी। सरकार ने कर विवाद के सर्वमान्य समाधान के लिए यह पेशकश की थी।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि वित्त मंत्रालय ने विधि मंत्रालय की राय पहले ही ले ली है और उसने वोडाफोन के साथ गैर-बाध्यकारी सुलह सफाई पेशकश वापस लेने के बारे में कैबिनेट नोट तैयार कर लिया है। वोडाफोन को पिछले साल जून में यह पेशकश की गई थी।
वोडाफोन ने 17 अप्रैल को जारी अपने नोटिस में कहा है कि वह अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता (आर्ब्रिटेशन) के लिए आगे कदम उठाएगी। कंपनी चाहेगी कि यह पंच निर्णय लंदन में हो। यह कर विवाद 2007 में वोडाफोन द्वारा हचिसन एस्सार में हचिसन व्हामपोआ की हिस्सेदारी के अधिग्रहण से जुड़ा है। कंपनी ने इस पर प्रतिक्रिया के लिए दो महीने का समय दिया है। इसका मतलब यह भी हो सकता है कि नयी सरकार को मध्यस्थता की मांग पर फैसला करना पड़े।
वोडाफोन ने आज एक बयान में कहा, `चूंकि वोडाफोन व भारत सरकार इस विवाद को सुलझाने के लिए कोई सौहाद्र्रपूर्ण तरीका नहीं खोज पाई हैं, वोडाफोन ने कोई समाधन हासिल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय निवेश मध्यस्थता की कार्रवाई शुरू करने का फैसला किया है।` इसके अनुसार वोडाफोन इंटरनेशनल होल्डिंग्स बीवी ने भारत सरकार के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय निवेश मध्यस्थता की कार्रवाई शुरू की है। यह कार्रवाई भारत व नीदरलैंड के बीच द्विपक्षीय निवेश संधि के तहत की जा रही है।
कैबिनेट ने 28 फरवरी को आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (आईटीएटी) में वोडाफोन के ट्रांसफर प्राइसिंग मामले के लंबित होने को देखते हुए सुलह पेशकश को वापस लेने के प्रस्ताव को रोके रखने का फैसला किया था। वोडाफोन ने नोटिस में कहा है कि वह 3,700 करोड़ रपये के ट्रांसफर प्राइसिंग मामले में आईटीएटी के फैसले का इंतजार किए बिना मध्यस्थता के लिए आगे बढ़ना चाहती है।
वोडाफोन का केंद्र के साथ दो मामलों को लेकर कर विवाद है। एक विवाद 2007 के अधिग्रहण से जुड़ा है तो दूसरा वोडाफोन इंडिया सर्विसेज से जुड़े ट्रांसफर प्राइसिंग मामले का है। साल 2007 के अधिग्रहण मामले में मूल कर मांग 7,990 करोड़ रुपये की जबकि कुल बकाया 20,000 करोड़ रुपये है जिसमें जुर्माना भी शामिल है। (एजेंसी)

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