पकड़े जाएंगे 26/11 के गुनहगार!

26/11 को मुंबई में जो कुछ भी हुआ था उसे देश कभी भुला नहीं सकेगा लेकिन बड़ा सवाल यह कि हमने इस आतंकी घटना से क्या कोई सबक लिया? यह देश की आर्थिक राजधानी पर आक्रमण था, यह मुंबई को तबाह करने और हमारी सुरक्षा ब्यवस्था को चुनौती देने के लिए हमला था।

ज़ी मीडिया/क्राइम रिपोर्टर
26/11 को मुंबई में जो कुछ भी हुआ था उसे देश कभी भुला नहीं सकेगा लेकिन बड़ा सवाल यह कि हमने इस आतंकी घटना से क्या कोई सबक लिया? यह देश की आर्थिक राजधानी पर आक्रमण था, यह मुंबई को तबाह करने और हमारी सुरक्षा ब्यवस्था को चुनौती देने के लिए हमला था, इस हमले ने देश को हिला कर रख दिया था, देश गुस्से में था, सरकार भी इस घटना पर सख्त थी। उम्मीद की जा रही थी कि इस बार पाक के खिलाफ कोई कठोर कदम उठाया जाएगा, ऐसा होता भी दिखा।
देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्पष्ट कहा था कि अब पाक के साथ बातचीत नहीं होगी। लेकिन मनमोहन सरकार अपनी ही बात से पलट गई। पाकिस्तान के तत्कालीन आंतरिक मामलों के मंत्री रहमान मलिक ने भारत सरकार की खिल्ली उड़ाते हुए कहा था कि भारत सरकार बातचीत के लिए कभी हां तो कभी ना कहती है। पहले हिन्दुस्तान तय कर ले कि बातचीत करनी है या नहीं करनी है तब पाकिस्तान तय करेगा।
हमारे गृह मंत्री ने भी वादा किया था कि दोषियों को बख्सा नहीं जाएगा लेकिन यह देश का दुर्भाग्य ही है कि इस घटना के 5 वर्ष ब्यतीत हो जाने के बाद भी कई आरोपी आतंकी खुलेआम घूम रहे हैं। हालाँकि एक मात्र पकड़े गए आतंकी कसाब को फांसी हो गई है। लेकिन सरकार से जिस सख्ती की उम्मीद देश कर रहा था उसमें सबको निराशा हाथ लगी। बड़ा सवाल यह है कि 5 साल बाद क्या मुम्बई सुरक्षित हो गई है? क्या ऐसे हमलों को रोकने में हमारा सुरक्षा तंत्र सक्षम है? क्या हमारी सरकार यह दावा कर सकती है कि अब देश में इस प्रकार के हमले नहीं होंगे? क्या हम दावे के साथ कह सकते हैं कि हमारी समुद्री सीमा सुरक्षित है? क्या हमारी खुफिया एजेंसियां पहले से ज्यादा सतर्क हैं? अगस्त, 2006 के बाद अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने रॉ और आइबी को कई अलर्ट भेजकर मुंबई के फाइव स्टार होटल पर आतंकी हमले की साजिश की चेतावनी दी थी।
एक अमेरिकी अलर्ट में तो ताज होटल और ट्राइडेंट का जिक्र भी था। क्या हमारी सुरक्षा एजेंसियां और पुलिसबल उस तरह के आतंकवादी हमले से निबटने के लिए तैयार हैं? क्या हमारे राजनेताओं में आतंकवाद से डटकर मुकाबला करने की इच्छाशक्ति बलवती हुई है? ऐसे कई सवाल हैं जो मुंबई हमले के पांच साल बाद भी मुंह बाए खड़े हैं। अभी दो पत्रकार-एड्रियन लेवी और कैथी स्कॉट क्लार्क की मुंबई हमले पर जो किताब आई है, ‘द सीज : दअटैक ऑन द ताज’, इस किताब में एड्रियन और कैथी ने विस्तार से मुंबई हमले की साजिश, हमले की फूलप्रूफ योजना, हमले के दौरान आतंकियों के फोन से अपने आकाओं से संपर्क में रहने, मुंबई पुलिस की अकर्मण्यता,भारतीय नेताओं के निर्णय लेने की अक्षमता आदि पर विस्तार से लिखा है।
मुंबई हमले के बाद खुफिया एजेंसियों के बीच सही तालमेल नहीं होने की बात भी उभर कर सामने आई थी। तब सरकार ने नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड का खूब शोर मचाया था, लेकिन पांच साल बीत जाने के बाद भी अब तक इस ग्रिड को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है। सही बात तो यह है कि तमाम वादों और दावों के बावजूद आज भी मुम्बई उस हद तक सुरक्षित नहीं है जिस हद तक होनी चाहिए। सवाल यह भी है कि मुम्बई के गुनहगार कब तक खुलेआम घूमेंगे?

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