फिल्मों के जरिए संदेश नहीं देना चाहतीं अपर्णा सेन
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फिल्मों के जरिए संदेश नहीं देना चाहतीं अपर्णा सेन

प्रशंसित अभिनेत्री-फिल्मकार अपर्णा सेन ने अपनी हालिया फिल्म `गोयनार बाक्शो` में भारतीय समाज में महिलाओं की बदलती भूमिका को बड़ी ही संवेदनशीलता के साथ हल्के फुल्के अंदाज में दर्शाया है। लेकिन अपर्णा का कहना है कि वे समाज को कोई संदेश देने के मकसद से फिल्में नहीं बनाती हैं।

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मुंबई : प्रशंसित अभिनेत्री-फिल्मकार अपर्णा सेन ने अपनी हालिया फिल्म `गोयनार बाक्शो` में भारतीय समाज में महिलाओं की बदलती भूमिका को बड़ी ही संवेदनशीलता के साथ हल्के फुल्के अंदाज में दर्शाया है। लेकिन अपर्णा का कहना है कि वे समाज को कोई संदेश देने के मकसद से फिल्में नहीं बनाती हैं।
अपर्णा ने बताया, "मेरी फिल्मों में संदेश होते हैं, लेकिन वे धीर, गंभीर फिल्में नहीं होतीं। मैं फिल्म को हल्का फुल्का रखना चाहती हूं, किसी संदेश वाली फिल्में मैं नहीं बनाना चाहती।"
अपर्णा को लिंगभेद के मुद्दे पर फिल्में बनाना पसंद है। वह कहती हैं, "समाज को संदेश देनेवाली मैं कौन होती हूं।"
उन्होंने कहा, "ऐसा इसलिए नहीं है कि मैं खुद एक महिला हूं, बल्कि इसलिए कि यह एक मानवीय मुद्दा है। `गोयनार बाक्शो` मेरी तीसरी फिल्म है, जो लिंगभेद के मुद्दे पर आधारित है।" इससे पहले अपर्णा इसी मुद्दे पर 1984 में `पनोरमा` और 2000 में `परोमितर एक दिन` बना चुकी हैं।"
उनकी फिल्म `गोयनार बाक्शो` का प्रदर्शन हाल ही में अबुधाबी फिल्म समारोह में किया गया, जिसमें उनकी बेटी अभिनेत्री कोंकणा सेन शर्मा और अभिनेत्री मौसमी चटर्जी ने काम किया है। (एजेंसी)

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