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नई दिल्ली : नसरूद्दीन शाह ने रिचर्ड एटनबरो की फिल्म ‘गांधी’ में प्रमुख किरदार के लिए ऑडिशन दिया था, लेकिन प्रतिष्ठित किरदार को निभाने के लिए नहीं चुने जाने का उन्हें अफसोस नहीं है।
शाह को एटनबरो की प्रस्तावित फिल्म के बारे में जब पता चला तो उन्होंने भूमिका निभाने की संभावना पर बहुत ज्यादा नहीं सोचा था, क्योंकि उस वक्त वह 14 साल के थे, लेकिन 1970 के दशक के अंत में जब प्रतिष्ठित ब्रिटिश निर्देशक मुंबई की यात्रा पर आए तो शाह ने सोचा कि इस बार संभावनाएं ज्यादा हैं।
64 वर्षीय शाह ने कहा, मेरा मकसद गांधी की भूमिका निभाना नहीं था। मैं सिर्फ अंतरराष्ट्रीय फिल्म में अभिनय करना चाहता था। ज़ोरो की भूमिका निभाना मेरा सपना था। इसलिए मुझे गांधी की भूमिका नहीं निभाने का कोई अफसोस नहीं है, जो अंत में बेन किंग्सले को दी गई थी। उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा, मुझे अफसोस है कि मैं बेन किंग्सले जैसा अंतरराष्ट्रीय स्टार नहीं बन सका। तब अगर मुझे भूमिका मिल जाती तो मैं बेन किग्ंसले बन जाता। उनका मानना है कि बेन ने जिस तरह से किरदार को निभाया था उस वक्त उनके पास बेन जैसा कौशल नहीं था।
अभिनेता की हाल में आई पुस्तक उनकी लगभग चार दशकों की जिंदगी का ब्योरा है और पुस्तक को जैसी प्रतिक्रिया मिली है उसने उन्हें हैरान कर दिया है। उन्होंने कहा, मैंने ऐसी जबरदस्त प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं की थी। लेखन क्षेत्र ने मुझे अपना लिया है और इससे बहुत अच्छा महसूस होता है।