आज की पीढ़ी भी किशोर दा की आवाज की है दीवानी

गायक, संगीतकार, अभिनेता, निर्माता, लेखक यानी बहुमुखी प्रतिभा के धनी किशोर कुमार का आज (4 अगस्त) जन्म दिवस है। ऐसे में कोई भी संगीत प्रेमी किशोर दा को याद न करे हो ही नहीं सकता। इतना ही नहीं, दुनिया का नंबर वन सर्च इंजन गूगल ने भी आज अपना गूगल डूडल किशोर कुमार को समर्पित किया है।

आज की पीढ़ी भी किशोर दा की आवाज की है दीवानी

ज़ी मीडिया ब्यूरो
नई दिल्ली: गायक, संगीतकार, अभिनेता, निर्माता, लेखक यानी बहुमुखी प्रतिभा के धनी किशोर कुमार का आज (4 अगस्त) जन्म दिवस है। ऐसे में कोई भी संगीत प्रेमी किशोर दा को याद न करे हो ही नहीं सकता। इतना ही नहीं, दुनिया का नंबर वन सर्च इंजन गूगल ने भी आज अपना गूगल डूडल किशोर कुमार को समर्पित किया है। इस गूगल डूडल में अक्षर 'एल' के स्थान पर किशोर कुमार की तस्वीर लगाई है, और चार कोनों में छोटे-छोटे प्रतीक चित्र उन्हें याद किया है। अपनी मधुर आवाज में गाए गीतों के जरिए किशोर कुमार आज भी हमारे आसपास मौजूद हैं।

पुरानी के साथ-साथ नई पीढ़ी भी किशोर दा की आवाज की दीवानी है। राहुल देव बर्मन (पंचम डा) ने अपनी फिल्म 'अमर प्रेम' में 'चिंगारी' गाने का मौका दिया, और किशोर ने साबित करके दिखाया। उसके बाद वे रूके नहीं एक से बढ़कर एक हिट गाने गाए। 'ज़िंदगी का सफर' (सफर), 'दिल ऐसा.' (अमानुष), 'ज़िंदगी के सफर में' (आप की कसम), 'जब दर्द नहीं था' (अनुरोध), 'बड़ी सूनी-सूनी' (मिली), 'ओ साथी रे' (मुक़द्दर का सिकंदर), 'मेरे नैना' (महबूबा) उनके गाए कुछ ऐसे गीत हैं, जो कभी पुराने नहीं हो पाएंगे। इसके अलावे वे कई रोमांटिक गाने भी गाए।

किशोर जितने उम्दा कलाकार थे, उतने ही रोचक इंसान। वे कब क्या कर बैठे, यह कोई नहीं जानता था। उनके कई किस्से बॉलीवुड में प्रचलित हैं। याद करते हैं उनकी कुछ खास बातें। अटपटी बातों को अपने चटपटे अंदाज में कहना किशोर कुमार का फितूर था। खासकर गीतों की पंक्ति को दाएं से बाएं गाने में उन्होंने महारत हासिल कर ली थी। नाम पूछने पर कहते थे- रशोकि रमाकु। किशोर कुमार ने हिन्दी सिनेमा के तीन नायकों को महानायक का दर्जा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। उनकी आवाज के जादू से देवआनंद सदाबहार हीरो कहलाए। राजेश खन्ना को सुपर सितारा कहा जाने लगा और अमिताभ बच्चन महानायक हो गए।

बारह साल की उम्र तक किशोर ने गीत-संगीत में महारत हासिल कर ली। वे रेडियो पर गाने सुनकर उनकी धुन पर थिरकते थे। फिल्मी गानों की किताब जमा कर उन्हें कंठस्थ कर गाते थे। घर आने वाले मेहमानों को अभिनय सहित गाने सुनाते तो 'मनोरंजन-कर' के रूप में कुछ इनाम भी मांग लेते थे।

एक दिन अशोक कुमार के घर अचानक संगीतकार सचिन देव बर्मन पहुंच गए। बैठक में उन्होंने गाने की आवाज सुनी तो दादा मुनि से पूछा, 'कौन गा रहा है?' अशोक कुमार ने जवाब दिया-'मेरा छोटा भाई है। जब तक गाना नहीं गाता, उसका नहाना पूरा नहीं होता।' सचिन-दा ने बाद में किशोर कुमार को जीनियस गायक बना दिया।

मोहम्मद रफी ने पहली बार किशोर कुमार को अपनी आवाज फिल्म 'रागिनी' में उधार दी। गीत हैं- 'मन मोरा बावरा।' दूसरी बार शंकर-जयकिशन की फिल्म 'शरारत' में रफी से गवाया था किशोर के लिए-'अजब है दास्ताँ तेरी ये जिंदगी।' फिल्म 'प्यार किए जा' में कॉमेडियन मेहमूद ने किशोर कुमार, शशि कपूर और ओमप्रकाश से ज्यादा पैसे वसूले थे। किशोर को यह बात अखर गई। इसका बदला उन्होंने मेहमूद से फिल्म 'पड़ोसन' में लिया- डबल पैसा लेकर।

किशोर कुमार ने जब-जब स्टेज-शो किए, हमेशा हाथ जोड़कर सबसे पहले संबोधन करते थे-'मेरे दादा-दादियों।' मेरे नाना-नानियों। मेरे भाई-बहनों, तुम सबको खंडवे वाले किशोर कुमार का राम-राम। नमस्कार। किशोर ने अपनी दूसरी बीवी मधुबाला से शादी के बाद मजाक में कहा था-'मैं दर्जनभर बच्चे पैदा कर खंडवा की सड़कों पर उनके साथ घूमना चाहता हूँ।'

आज ही के दिन 4 अगस्त 1929 को मध्यप्रदेश के खंडवा में एक वकील के जन्मे किशोर कुमार मशहूर अभिनेता अशोक कुमार के छोटे भाई थे। अक्सर अपने कॉलेज की कैंटीन में बैठकर गाने वाले किशोर कुमार ने अपने गायकी करियर का आगाज देवानंद की फिल्म जिद्दी से किया। इसके बाद किशोर कुमार की कई फिल्में आई और चली गई परन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली। इसी दौरान वर्ष 1957 में आई फिल्म फंटूश में दुखी मन मेरे गीत गाने का अवसर मिला जिसने किशोर कुमार को पहचान दी। इसके बाद कि शोर कुमार ने देवानंद सहित कई अभिनेताओं के लिए पाश्र्वगायन किया।

किशोर कुमार के भाग्य का सितारा 1969 में आई फिल्म आराधना से चमका। इसमें गाए गीत रूप तेरा मस्ताना के लिए उन्हें पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड भी दिया गया। किशोर न केवल गायक ही थे बल्कि बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने कई फिल्मों में अपनी बेहतरीन अभिनय प्रतिभा से भी लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने फिल्मों का निर्माण, निर्देशन तथा संगीत निर्देशन भी किया और सभी में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।

किशोर कुमार को आठ बार फिल्मफेयर अवॉर्ड से नवाजा गया। किशोर कुमार अपने सनक व्यवहार के लिए भी प्रसिद्ध रहे। अक्सर निर्माता-निर्देशकों तथा पत्रकारों को उनके सनकीपन का शिकार होना पड़ता था। वर्ष 1986 में उन्हें पहला हार्ट अटैक का दौरा पड़ा हालांकि समय रहते चिकित्सा सहायता मिलने से किशोर कुमार बच गए। परन्तु वर्ष 1987 में दुबारा हार्ट अटैक आने के कारण 18 अक्टूबर 1987 को 58 वर्ष की उम्र में उनका देहावसान हो गया।

किशोर कुमार का बचपन तो खंडवा में बीता, लेकिन जब वे किशोर हुए तो इंदौर के क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ने आए। हर सोमवार सुबह खंडवा से मीटरगेज की छुक-छुक रेलगाड़ी में इंदौर आते और शनिवार शाम लौट जाते। सफर में वे हर स्टेशन पर डिब्बा बदल लेते और मुसाफिरों को नए-नए गाने सुनाकर मनोरंजन करते थे।

किशोर कुमार जिंदगीभर कस्बाई चरित्र के भोले मानस बने रहे। मुंबई की भीड़-भाड़, पार्टियां और ग्लैमर के चेहरों में वे कभी शामिल नहीं हो पाए। इसलिए उनकी आखिरी इच्छा थी कि खंडवा में ही उनका अंतिम संस्कार किया जाए। इस इच्छा को पूरा किया गया, वे कहा करते थे-'फिल्मों से संन्यास लेने के बाद वे खंडवा में ही बस जाएंगे और रोजाना दूध-जलेबी खाएंगे।

 

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