मेमो विवाद मामले में हक्कानी दोषी
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मेमो विवाद मामले में हक्कानी दोषी

पाकिस्तान के न्यायिक आयोग ने कहा है कि अमेरिका में देश के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी का हाथ रहस्यमयी मेमो के पीछे था जिसमें पाकिस्तान को तख्तापलट से बचाने के लिए अमेरिकी सहयोग की मांग की गई थी।

इस्लामाबाद : पाकिस्तान के न्यायिक आयोग ने कहा है कि अमेरिका में देश के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी का हाथ रहस्यमयी मेमो के पीछे था जिसमें पाकिस्तान को तख्तापलट से बचाने के लिए अमेरिकी सहयोग की मांग की गई थी। आयोग ने कहा कि राजदूत के तौर पर वह देश के प्रति ‘‘वफादार नहीं’’ थे।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त आयोग ने अपनी जांच को सार्वजनिक किया है और प्रधान न्यायाधीश इफ्तिखार चौधरी के नेतृत्व वाले नौ सदस्यीय पीठ ने आज सुबह पैनल की रिपोर्ट पर गौर करना शुरू किया। पीठ के समक्ष सील रिपोर्ट पेश होने के बाद प्रधान न्यायाधीश ने अटार्नी जनरल इरफान कादिर से कहा कि वह अनुशंसाओं को पढ़ें।
रिपोर्ट में कहा गया कि अमेरिका में राजदूत के तौर पर काम करते हुए हक्कानी पाकिस्तान के प्रति ‘‘वफादार नहीं’’ रहे और और देश के परमाणु हथियारों, सुरक्षा बलों, इंटर सर्विसेज इंटेलीजेंस और संविधान को कमतर आंका ।
पैनल ने कहा कि कथित मेमो विश्वसनीय था और हक्कानी के निर्देश पर तैयार किया गया था। इसमें कहा गया कि मेमो के माध्यम से हक्कानी ने अमेरिका से सहयोग मांगा और वह नये राष्ट्रीय सुरक्षा ढांचे का प्रमुख बनना चाहते थे। पैनल ने कहा कि वाशिंगटन में पाकिस्तानी दूतावास द्वारा एक गुप्त कोष से करीब बीस लाख डॉलर के खर्च का हक्कानी ने हिसाब नहीं दिया था ।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले को दो हफ्ते के लिए स्थगित कर दिया और हक्कानी को निर्देश दिया कि अगली सुनवाई पर वह स्वयं उपस्थित हों। इसने मामले में शामिल सभी पक्षों को नोटिस जारी किया। पीठ ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि न्यायिक आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए।हक्कानी को पिछले वर्ष तब पद से हटना पड़ा था जब पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी व्यवसायी मंसूर एजाज ने मेमो को सार्वजनिक कर दिया था। हक्कानी फिलहाल अमेरिका में हैं।
एजाज ने मेमो को तत्कालीन अमेरिकी सेना के प्रमुख एडमिरल माइक मुलेन को दिया था। इसमें पिछले वर्ष दो मई को पाकिस्तानी धरती पर ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद संभावित तख्तापलट से पाकिस्तान को बचाने में सहयोग मांगा गया था।
मेमो में कहा गया था कि अधिकारी 2008 के मुंबई हमलों के जिम्मेदार सहित अन्य आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे और एक नये राष्ट्रीय सुरक्षा दल का गठन करेंगे जो अमेरिका के साथ काम करेगा। सरकार और हक्कानी ने मेमो को फर्जी बताकर खारिज किया था।
इस मुद्दे पर विपक्ष के नेता पीएमएल एन के प्रमुख नवाज शरीफ के विरोध के बाद उच्चतम न्यायालय ने जांच शुरू की। अदालत ने मामले की जांच और संबंधित लोगों से पूछताछ के लिए तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया। एजाज ने लंदन से वीडियो लिंक के माध्यम से गवाही दी लेकिन अपने दावे के पक्ष में कोई सामग्री मुहैया नहीं करा सके। हक्कानी अपने हृदय से संबंधित विकार के इलाज के लिए अमेरिका चले गए और आयोग के समक्ष पेशी से इंकार कर दिया और उन्हें वीडियो लिंक से गवाही की अनुमति नहीं मिली।
ट्विटर पर आज जारी संदेश में हक्कानी ने कहा कि उनके वकील आयोग की एकतरफा कार्यवाही का विरोध करेंगे जिसने मेरा पक्ष नहीं सुना। उन्होंने कहा, मेमो आयोग की रिपोर्ट का उपयोग अन्य लज्जाजनक मुद्दों से ध्यान हटाना है। इसके दावे राजनीतिक हैं न कि कानूनी। हक्कानी ने ट्विट किया, आयोग ‘‘कोई अदालत नहीं’’ है और जो लोग यह दावा कर रहे हैं कि ‘‘इसने दोष या निर्दोष तय किया है तो वे गलत हैं।
ट्विटर पर उन्होंने लिखा, देशभक्ति वे लोग तय नहीं कर सकते जो आरोप लगाने वाले विदेशियों पर निर्भर हैं और पाकिस्तानी नागरिक की बात नहीं सुनते। जिन लोगों ने सेना के तानाशाहों का समर्थन किया और उन्हें संविधान में संशोधन की अनुमति दी वे मेरी या किसी और की देशभक्ति का आकलन नहीं कर सकते। (एजेंसी)

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