उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि लंबे समय तक जीवन साथी को यौन संसर्ग करने की अनुमति नहीं देना मानसिक क्रूरता है और यह तलाक का आधार हो सकता है।
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नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि लंबे समय तक जीवन साथी को यौन संसर्ग करने की अनुमति नहीं देना मानसिक क्रूरता है और यह तलाक का आधार हो सकता है।
न्यायमूर्ति एस जे मुखोपाध्याय की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा, ‘नि:संदेह, जीवन साथी को पर्याप्त कारणों के बगैर ही लंबे समय तक यौन संसर्ग नहीं करने देना मानसिक क्रूरता जैसा है।’ न्यायालय ने इस व्यवस्था के साथ ही मद्रास उच्च न्यायालय का फैसला सही ठहराया जिसने एक व्यक्ति को सिर्फ इसी आधार पर विवाह विच्छेद की अनुमति दे दी थी। इस व्यक्ति ने आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी यौन संसर्ग से इंकार करने सहित कई तरीकों से उसके साथ क्रूरता कर रही है।
शीर्ष अदालत ने पत्नी की इस गवाही को तवज्जो देने से इंकार कर दिया कि चूंकि वह संतान नहीं चाहती थी, इसलिए उसने शारीरिक संबंध बनाने से इंकार कर दिया था।
न्यायालय ने लंदन में रह रहे पति को निर्देश दिया कि वह अपनी पत्नी को एकमुश्त 40 लाख रूपए बतौर निर्वाह खर्च दे। उच्च न्यायालय ने शारीरिक संबंध स्थापित नहीं करने के बारे में पत्नी के स्पष्टीकरण को भी अस्वीकार कर दिया था। न्यायालय ने कहा था कि पति पत्नी दोनों ही शिक्षित हैं और ऐसे अनेक गर्भनिरोधक उपाय हैं जिनका उपयोग करके यदि वे चाहते तो गर्भधारण करने से बचा जा सकता था।