लोकसभा चुनाव: लेफ्ट के सामने खुद को साबित करने की चुनौती
Advertisement

लोकसभा चुनाव: लेफ्ट के सामने खुद को साबित करने की चुनौती

दलबदल, बगावत और संगठन संबंधी समस्याओं से परेशान वाम मोर्चा को उम्मीद है कि बुरा समय बीत चुका है और पश्चिम बंगाल में वह अपनी प्रासंगिकता साबित करने के लिए आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है।

कोलकाता : दलबदल, बगावत और संगठन संबंधी समस्याओं से परेशान वाम मोर्चा को उम्मीद है कि बुरा समय बीत चुका है और पश्चिम बंगाल में वह अपनी प्रासंगिकता साबित करने के लिए आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है। बहरहाल, वाम मोर्चा को यह भी उम्मीद है कि वाम विरोधी मतों का विभाजन कांग्रेस, भाजपा और सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के बीच होने से फायदा उसे ही होगा।
फारवर्ड ब्लॉक के महासचिव देवव्रत बिस्वास ने बताया इन लोकसभा चुनावों में हमारी लड़ाई पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा की प्रासंगिकता साबित करने की है। बिस्वास को लगता है कि तृणमूल कांग्रेस, भाजपा और कांग्रेस तीनों ही अपने अपने दम पर चुनाव लड़ रहे हैं, उनमें कोई गठबंधन नहीं है और इसका फायदा वाम को मिलेगा।
माकपा नेता मोहम्मद सलीम ने कहा, माकपा और वाम के लिए 2009 के लोकसभा चुनाव और 2011 के विधानसभा चुनावों के नतीजे बहुत खराब थे। अब यह समय बीत चुका है। इस बार बंगाल में वाम बेहतर परिणामों के साथ आएगा। पश्चिम बंगाल में 1977 से करीब 34 साल तक निर्बाध शासन करने वाले माकपा नीत वाम मोर्चा को ममता बनर्जी नीत तृणमूल कांग्रेस और इसकी तत्कालीन सहयोगी कांग्रेस से वर्ष 2011 के विधानसभा चुनावों में करारी शिकस्त मिली थी।
मतदाता वाम दलों से जबरन भूमि अधिग्रहण के कारण दूर हुए थे। यह मुद्दा अब भी मतदाताओं के दिमाग में है और एक बार फिर असर डाल सकता है। वाम मोर्चा को पहला बड़ा झटका 2009 के लोकसभा चुनावों में लगा जब उसे अपनी आधे से अधिक सीटें बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस गठबंधन के हाथों गंवानी पड़ीं। इन चुनावों में तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस गठबंधन को 26 सीटें और वाम मोर्चा को मात्र 15 सीटें मिलीं। वर्ष 2011 में विधानसभा चुनावों में वाम मतों में और कमी आई तथा वाम का गढ़ ढह गया।
वाम ने, खास कर माकपा ने पराजय के कारणों के तौर पर सत्ता के अंहकार, संगठन में खामियों आदि को बताया तथा इन्हें दुरूस्त करने की कवायद शुरू की। लेकिन इससे जमीनी कार्यकर्ताओं का मनोबल नहीं बढ़ा। इसके बाद पार्टी की सदस्यता में तेजी से कमी आई। खासकर युवा और महिला शाखा में यह कमी देखी गई।
युवा शाखा की सदस्यता जहां 2010 में 84 लाख थी जो 2011 में घट कर 58 लाख रह गई। इसी तरह महिला शाखा की सदस्यता 2010 में 57 लाख थी जो 2011 में घट कर 41 लाख रह गई। पश्चिम बंगाल में 1977 के बाद से पहली बार विपरीत हालात का सामना कर रहे वाम को अब उम्मीद है कि सत्ता विरोधी मतों का बंटवारा तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस, भाजपा के बीच होने से उसे फायदा होगा। माकपा की केंद्रीय समिति के सदस्य श्यामल चक्रवर्ती ने बताया अगर आपके शत्रु बंटे हों तो राजनीति में बहुत फायदा होता है। (एजेंसी)

Trending news