मंझे हुए महारथी मुलायम
लोकसभा चुनाव में भले ही मुलायम सिंह यादव का जादू नहीं चला था लेकिन महज 100 दिनों के अंतराल में मुलायम ने अपना करिश्मे का ऐसा नजारा दिखाया है कि बीजेपी के सूरमा कांप उठे हैं।
वासिंद्र मिश्र
एडिटर (न्यूज़ ऑपरेशंस), ज़ी मीडिया
लोकसभा चुनाव में भले ही मुलायम सिंह यादव का जादू नहीं चला था लेकिन महज 100 दिनों के अंतराल में मुलायम ने अपना करिश्मे का ऐसा नजारा दिखाया है कि बीजेपी के सूरमा कांप उठे हैं...उपचुनावों में समाजवादी पार्टी की जोरदार जीत ने ये साबित कर दिया है कि मुलायम सिंह यादव अभी सियासी बिसात पर चूके हुए खिलाड़ी नहीं बल्कि मंझे हुए महारथी हैं....जो पासा कभी पलट सकते हैं...प्रदेश की 11 लोकसभा सीटों में समाजवादी पार्टी ने बीजेपी से 8 सीटें छीनने में कामयाबी पाई है.. इन 11 सीटों पर 2012 में प्रदेश में समाजवादी पार्टी की लहर के बावजूद बीजेपी ने कामयाबी हासिल की थी।
लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में भले ही मुलायम सिंह यादव का जादू नहीं चला हो लेकिन उपचुनावों के परिणाम पर नज़र डालें तो एक बार फिर ऐसा लगता है कि प्रदेश में धार्मिक ध्रुवीकरण के मुकाबले जातीय समीकरण कामयाब रहा है... इस उपचुनावों में प्रदेश की 11 विधानसभा सीटों में समाजवादी पार्टी ने बीजेपी से 8 सीटें छीनने में कामयाबी पाई है।
लोकसभा में मिली शिकस्त के बाद मुलायम सिंह यादव ने सीधे तौर पर कार्यकर्ताओं और पार्टी नेताओं से राब्ता कायम किया है... उपचुनाव की एक-एक सीटों पर जाति और संप्रदाय के स्थानीय समीकरण पर खासतौर से ध्यान दिया... इन्हीं स्थानीय मुद्दों को ध्यान में रखते हुए ही मुलायम सिंह यादव ने प्रत्याशियों का चयन भी किया।
दूसरी तरफ लोकसभा चुनावों में मिली शानदार कामयाबी से बेअंदाज हुई बीजेपी और उसके नेता जमीनी स्तर पर मेहनत करने के बजाय जज्बाती और सांप्रदायिक मुद्दों को उछाल कर ही एक बार फिर चुनाव जीतना चाहते थे... इस उपचुनाव में केंद्रीय नेतृत्व की उदासीनता का आलम ये था कि मथुरा में हुई राज्य कार्यकारिणी में कोई बड़ा नेता नहीं आया... राजनाथ सिंह से लेकर अमित शाह तक ने इस बैठक से दूरी बनाए रखी... बीजेपी नेताओं को शायद इस बात का अंदाजा नहीं था कि अब देश में उनकी 100 दिन पुरानी सरकार है और केंद्र सरकार के कामकाज और उनकी उपलब्धियों को भी मतदाता कसौटी पर कसने के बाद ही वोट देंगे।
लोकसभा चुनावों में बीजेपी की कामयाबी पार्टी नेताओं के करिश्माई नेतृत्व के साथ-साथ मनमोहन सरकार की नाकामयाबियों का नतीजा था... अगर हम उत्तर प्रदेश की बात करें तो सांप्रदायिक और धार्मिक ध्रुवीकरण के साथ-साथ गैर बीजेपी दलों के बहुकोणीय मुकाबले का भी सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को मिला था लेकिन इन उपचुनावों में राजनैतिक हालात काफी बदले हुए थे... बीएसपी ने इन उपचुनावों में हिस्सा नहीं लिया... बीएसपी का वोटबैंक सांप्रदायिक और धार्मिक ध्रुवीकरण की बजाय इसके उलट विचारधारा वाले प्रत्याशियों को ज्यादा तरजीह दिया है... शायद यही कारण रहा कि भारतीय जनता पार्टी को 100 दिन के अंदर ही एक बार फिर मुलायम सिंह यादव शिकस्त देने में कामयाब रहे।
बीजेपी की इस शर्मनाक हार के पीछे जहां एक तरफ पार्टी के बड़े नेताओं का उदासीन रवैया रहा वहीं दूसरी तरफ मुलायम सिंह यादव का बूथ लेवल का मैनेजमेंट था.... बीजेपी की तरफ से इन चुनावों के लिए जिन छुटभैये नेताओं को स्टार प्रचारक पेश किया गया उनकी पकड़ प्रदेश की जनता में इसके पहले भी कभी देखने को नहीं मिली थी... इन उपचुनावों में बीजेपी को भरसक किसी चमत्कार का ही इंतजार था।
लोकसभा चुनावों में मुलायम सिंह य़ादव भले ही 56 इंच की छाती दिखाने में नाकामयाब रहे हों लेकिन इन उपचुनाव के नतीजों ने एक बार फिर ये साबित कर दिया है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति और उसकी पैंतरेबाजी मुलायम सिंह यादव बखूबी समझते हैं।