मकर संक्रांति पर नरेंद्र मोदी ने लिखी कविता `उत्सव`

मोदी ने मंगलवार को अपने टि्वटर अकाउंट पर मकर सक्रांति पर लिखी एक कविता उत्सव पोस्ट की। । इस कविता में मोदी ने पतंग की महिमा को भगवान शिव, कैलाश पर्वत से जोड़ा है।

ज़ी मीडिया ब्यूरो
नई दिल्ली: मोदी ने मंगलवार को अपने टि्वटर अकाउंट पर मकर सक्रांति पर लिखी एक कविता उत्सव पोस्ट की। । इस कविता में मोदी ने पतंग की महिमा को भगवान शिव, कैलाश पर्वत से जोड़ा है।
यह पहला मौका है जब मोदी ने अपने द्वारा लिखी किसी कविता को साझा किया है। गौर हो कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी उनकी कविताओं के लिए जाना जाता है।
ट्विटर पर नरेंद्र मोदी ने उत्तरायण की शुभकामनाएं देते हुए कहा है कि आज (सोमवार को यानी 14 जनवरी) आकाश रंग-बिरंगी पतंगों से भरा होगा। इस अवसर पर मैं अपनी एक कविता शेयर कर रहा हूं। थोड़ी देर बाद अगले ट्वीट में उन्होंने बताया कि कई लोग पूछ रहे हैं कि मैंने यह कविता कब लिखी है। मैंने यह कविता 80 के दशक में लिखी थी।
पेश है मोदी की लिखी कविता।
उत्सव
पतंग
मेरे लिए उर्ध्वगति का उत्सव
मेरा सूर्य की ओर प्रयाण।
पतंग
मेरे जन्म-जन्मांतर का वैभव,
मेरी डोर मेरे हाथ में
पदचिह्न पृथ्वी पर,
आकाश में विहंगम दृश्य।
मेरी पतंग
अनेक पतंगों के बीच...
मेरी पतंग उलझती नहीं,
वृक्षों की डालियों में फंसती नहीं।
पतंग
मानो मेरा गायत्री मंत्र।
धनवान हो या रंक,
सभी को कटी पतंग एकत्र करने में आनंद आता है,
बहुत ही अनोखा आनंद।
कटी पतंग के पास
आकाश का अनुभव है,
हवा की गति और दिशा का ज्ञान है।
स्वयं एक बार ऊंचाई तक गई है,
वहां कुछ क्षण रुकी है।
पतंग
मेरा सूर्य की ओर प्रयाण,
पतंग का जीवन उसकी डोर में है।
पतंग का आराध्य(शिव) व्योम(आकाश) में,
पतंग की डोर मेरे हाथ में,
मेरी डोर शिव जी के हाथ में।
जीवन रूपी पतंग के लिए(हवा के लिए)
शिव जी हिमालय में बैठे हैं।
पतंग के सपने(जीवन के सपने)
मानव से ऊंचे।
पतंग उड़ती है,
शिव जी के आसपास,
मनुष्य जीवन में बैठा-बैठा,
उसकी डोर को सुलझाने में लगा रहता है।

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