सुप्रीम कोर्ट का निर्देश-स्‍वामी नित्‍यानंद को करवाना ही होगा पोटेंसी टेस्‍ट
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सुप्रीम कोर्ट का निर्देश-स्‍वामी नित्‍यानंद को करवाना ही होगा पोटेंसी टेस्‍ट

विवादास्पद धर्मगुरू नित्यानंद को वर्ष 2010 में हुए बलात्कार के एक मामले की जांच के सिलसिले में पौरूष परीक्षण करवाना होगा क्योंकि इस परीक्षण के कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ उनकी अपील उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को खारिज कर दी।

सुप्रीम कोर्ट का निर्देश-स्‍वामी नित्‍यानंद को करवाना ही होगा पोटेंसी टेस्‍ट

ज़ी मीडिया ब्‍यूरो

नई दिल्‍ली : विवादास्पद धर्मगुरू नित्यानंद को वर्ष 2010 में हुए बलात्कार के एक मामले की जांच के सिलसिले में पौरूष परीक्षण करवाना होगा क्योंकि इस परीक्षण के कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ उनकी अपील उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को खारिज कर दी।

न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की अगुवाई वाली पीठ ने नित्यानंद को कोई भी राहत देने से इंकार कर दिया। पीठ ने 20 अगस्त को इस मामले की सुनवाई करते हुए विवादित धर्मगुरु की यह परीक्षण करवाने के प्रति अनिच्छा को लेकर सवाल उठाते हुए कहा था कि बलात्कार के मामलों में दिन पर दिन हो रही वृद्धि को देखते हुए ऐसे परीक्षण आवश्यक हो रहे हैं।

साथ ही पीठ ने यह भी कहा था कि इस बात का कोई कारण नहीं है कि बलात्कार के मामले में आरोपी को पौरूष परीक्षण क्यों नहीं करवाना चाहिए। उन्होंने वर्ष 2010 में हुए बलात्कार के मामले में पौरूष परीक्षण करवाने में विलंब के लिए पुलिस पर भी सवाल उठाया था। नित्यानंद की अपील पर उच्चतम न्यायालय ने 21 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में नित्यानंद तथा उनके चार अनुयाइयों के खिलाफ रामनगरम अदालत द्वारा जारी गैर जमानती गिरफ्तारी वारंट पर कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक अगस्त को रोक लगा दी थी।

उच्च न्यायालय ने नित्यानंद को निर्देश दिए थे कि वह चिकित्सीय परीक्षण के लिए जांच अधिकारी के समक्ष पेश हो और 18 अगस्त को रामनगरम के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष भी पेश हो। उसने नित्यानंद और उसके अनुयाइयों की ओर से मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के 28 जुलाई वाले निर्णय पर सवाल उठाते हुए दायर की गई याचिकाओं पर आदेश जारी किए थे। इन लोगों ने दावा किया था कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा इन लोगों के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी करना न्यायसंगत नहीं है क्योंकि उच्च न्यायालय ने 16 जुलाई के अपने आदेश में 28 जुलाई को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश होने के निर्देश नहीं दिए थे। वह तो चार साल से लंबित बलात्कार के मामले की सुनवाई निचली अदालत में करवाने के लिए दी गई तारीख थी।

16 जुलाई को अपने आदेश में उच्च न्यायालय ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा वर्ष 2012 में जारी किए गए निर्देश को बरकरार रखा था। उस निर्देश में आपराधिक जांच विभाग की ओर से नित्यानंद के चिकित्सीय परीक्षण के लिए लगाई गई याचिका को मंजूर किया गया था। विभाग ने इस परीक्षण की मांग इसलिए की थी ताकि पता लगाया जा सके कि नित्यानंद यौन संबंध बनाने के लायक है या नहीं और साथ ही उसके रक्त एवं आवाज के नमूने लिए जा सकें। नित्यानंद को मिली नियमित जमानत को देखते हुए उच्च न्यायालय ने 16 जुलाई को जारी आदेश में यह स्पष्ट किया था कि यदि नित्यानंद अपनी मर्जी से जांच अधिकारी के समक्ष पेश नहीं होता है तो उसे सिर्फ चिकित्सीय परीक्षण करवाने और उसके रक्त एवं आवाज के नमूने एकत्र करने के लिए सीमित समय के लिए हिरासत में लिया जाना चाहिए। (एजेंसी इनपुट के साथ)

 

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