टीम इंडिया के आ गए अच्छे दिन
वनडे की विश्व विजेता टीम टेस्ट में विदेशी सरजमीं पर तीन वर्षों से लगातार फ्लॉप होती आ रही थी, लेकिन 21 जुलाई 2014 को धोनी की सेना ने ऐतिहासिक लॉर्ड्स मैदान पर न सिर्फ तीन साल के सूखे को खत्म किया बल्कि लॉर्ड्स पर 28 साल बाद भारत को पहली जीत दिलाई। इस मैच में टीम इंडिया ने बॉलिंग, बैटिंग और फिल्डिंग तीनों क्षेत्रों में बेहतरीन प्रदर्शन किया। इससे यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि टीम इंडिया के अच्छे दिन आ गए हैं।
रामानुज सिंह
वनडे की विश्व विजेता टीम टेस्ट में विदेशी सरजमीं पर तीन वर्षों से लगातार फ्लॉप होती आ रही थी, लेकिन 21 जुलाई 2014 को धोनी की सेना ने ऐतिहासिक लॉर्ड्स मैदान पर न सिर्फ तीन साल के सूखे को खत्म किया बल्कि लॉर्ड्स पर 28 साल बाद भारत को पहली जीत दिलाई। इस मैच में टीम इंडिया ने बॉलिंग, बैटिंग और फिल्डिंग तीनों क्षेत्रों में बेहतरीन प्रदर्शन किया। इससे यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि टीम इंडिया के अच्छे दिन आ गए हैं।
लॉर्ड्स पर टीम इंडिया ने इंग्लिश टीम को जिस तरह से पटखनी दी, उसे देखते हुए लगता है कि अगले साल ऑस्ट्रेलिया में होने वाले वर्ल्ड कप पर एक बार फिर भारत का कब्जा होगा। टीम इंडिया के प्रत्येक खिलाड़ी ने इस मैच के जरिए अपनी मंशा जाहिर कर दी है।
टीम इंडिया की जीत के सूत्रधार रहे तेज गेंदबाज ईशांत शर्मा ने 74 रन पर 7 विकेट लेकर न केवल अपने करियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया बल्कि इस मैदान में किसी भारतीय गेंदबाज के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन का 78 साल पुराना रिकॉर्ड भी ध्वस्त कर दिया। इससे पहले अमर सिंह ने 1936 में लॉर्ड्स में 35 रन पर 6 विकेट लिए थे। यह पहला मौका है जब दो भारतीय गेंदबाजों ने एक ही टेस्ट में 6 या उससे ज्यादा विकेट लिए। भुवनेश्वर कुमार ने जहां पहली पारी में 6 विकेट झटके वहीं ईशांत शर्मा ने दूसरी पारी में 7 विकेट चटकाए।
बल्लेबाजी में भी कई खिलाड़ियों का अहम योगदान रहा। पहली पारी में अजिंक्य रहाणे ने शतक जड़कर टीम इंडिया को सम्मानजनक स्कोर (295) तक पहुंचाया तो दूसरी पारी में मुरली विजय ने लड़खड़ाती बल्लेबाजी को संभाला और महत्वपूर्ण 95 रन जोड़े। जडेजा 69 और भुवनेश्वर ने 52 रन की पारी खेलकर भारत को 300 के पार पहुंचाया। टीम इंडिया के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि जिन बल्लेबाजों पर अब तक भरोसा नहीं था उसने इस जीत में अहम योगदान दिया। इसलिए यह टीम टेस्ट में भी दुनिया की सबसे शक्तिशाली टीम बन गई है। इसके अलावे धोनी की कप्तानी भी लाजवाब रही, उनके सभी फैसले कारगर साबित हुए।
क्रिकेट के मक्का 'लॉर्ड्स' में एक पीढ़ी बाद भारत को जीत नसीब हुई। दिलचस्प बात यह है कि इस टीम में 9 ऐसे खिलाड़ी हैं जो पहली बार लॉर्ड्स में टेस्ट मैच खेले, जबकि 10 खिलाड़ी तो ऐसे हैं जो 1986 के बाद पैदा हुए हैं। 1986 यानी वो साल जब टीम इंडिया ने लॉर्ड्स पर पहला टेस्ट मैच जीता था। रोजर बिन्नी 1986 की उस विजयी टीम का हिस्सा थे और इस टीम में उनके बेटे स्टुअर्ट बिन्नी हैं।
धोनी ने यह टेस्ट जीतकर कर कपिल देव के रिकॉर्ड की बराबरी की। लॉर्ड्स के 82 साल के इतिहास में टीम इंडिया की इस मैदान पर ये सिर्फ दूसरी जीत है। इससे पहले कपिल देव की कप्तानी में भारत ने 5 जून 1986 को लॉर्ड्स पर इकलौता टेस्ट मैच जीता था। उस टेस्ट में दिलीप वेंगसरकर ने शतक जड़ा था। सभी गेंदबाजों ने भी बेहतरीन प्रदर्शन किया था तब टीम इंडिया ने मैच 5 विकेट से जीता था। दूसरी पारी में 4 विकेट लेने और नाबाद 23 रनों की विजयी पारी खेलने वाले कप्तान कपिल देव को मैन ऑफ द मैच चुना गया था। इस बार दूसरी पारी 74 रन देकर 7 विकेट लेने वाले ईशांत शर्मा को मैन ऑफ द मैच चुना गया।
इसके अलावे लॉर्ड्स पर एक और रिकॉर्ड बने। इस सीरीज में रविंद्र जडेजा के अलावे भुवनेश्वर कुमार ने ऑलराउंडर की तरह खेला। भुवनेश्वर ने न सिर्फ गेंद से कमाल दिखाया बल्कि किसी टेस्ट सीरीज में 9वें नंबर पर बल्लेबाजी करते हुए 3 हाफ सेंचुरी जड़ने वाले दुनिया के पहले बल्लेबाज बन गए। उन्होंने यह रिकॉर्ड इंग्लैंड के खिलाफ लॉर्ड्स टेस्ट के चौथे दिन 52 रन की पारी खेलकर बनाया।
लॉर्ड्स पर टीम इंडिया के प्रदर्शन की बात करें तो अब तक लॉर्ड्स में खेले गए 16 टेस्ट मैचों में भारत को 11 में हार मिली है जबकि 4 मैच ड्रॉ हुए हैं। लॉर्ड्स में भारतीय टीम पहली बार 1932 में उतरी थी, लेकिन 152 रनों से हारी थी। और जहां तक इंग्लैंड की बात है तो लॉर्ड्स पर वो 18 साल बाद किसी एशियाई टीम से हारी है।
भारतीय टीम ने विदेशी सरजमीं पर इससे पहले आखिरी जीत जून 2011 में वेस्टइंडीज के खिलाफ किंग्सटन में दर्ज की थी। धोनी ने मैच के बाद कहा, यह हमारे लिए यादगार जीत है। हमारे अधिकतर खिलाड़ियों को इंग्लैंड में खेलने का अनुभव नहीं था लेकिन उनको रवैया शानदार था। यह बेहतरीन प्रदर्शन था। उन्होंने कहा, हमने 2011 की टेस्ट सीरीज में 4-0 की हार से सबक सीखा। तीसरे दिन तक मैच में बने रहना महत्वपूर्ण था क्योंकि इसके बाद हमारे स्पिनरों की भूमिका अहम हो जाती। हमें 2011 में ऐसा करने की जरूरत थी लेकिन तब हम ऐसा नहीं कर पाए थे।