आनंदीबेन पटेल: अनुशासनप्रिय एवं कठोर प्रशासक

गुजरात की अगली मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का स्थान लेने जा रहीं आनंदीबेन पटेल एक अनुशासनप्रिय एवं कठोर प्रशासक समझी जाती हैं जो सार्वजनिक जीवन में शुचिता को अहम मानती हैं और यह उनके पूर्ववर्ती की विशेषता से मेल खाता है। मोदी की 73 वर्षीय वफादार आनंदीबेन, गुजरात की पहली महिला मुख्यमंत्री होंगी।

अहमदाबाद : गुजरात की अगली मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का स्थान लेने जा रहीं आनंदीबेन पटेल एक अनुशासनप्रिय एवं कठोर प्रशासक समझी जाती हैं जो सार्वजनिक जीवन में शुचिता को अहम मानती हैं और यह उनके पूर्ववर्ती की विशेषता से मेल खाता है। मोदी की 73 वर्षीय वफादार आनंदीबेन, गुजरात की पहली महिला मुख्यमंत्री होंगी। वह मोदी की स्वभाविक उत्तराधिकारी के रूप में देखी जा रही थीं क्योंकि उन्होंने मंत्रियों के उस दल की अगुवाई की जिसे मोदी के अपनी पार्टी के पक्ष में व्यस्ततम लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान में लगे रहने के दौरान राज्य के रोजमर्रा के कामकाज की जिम्मेदारी दी गयी थी।
गुजरात में आंनदीबेन और अमित शाही मोदी के ‘बाये’ और ‘दाहिने’ हाथ माने जाते रहे हैं। आनंदीबेन के पास शहरी विकास, राजस्व और आपदा प्रबंधन जैसे अहम विभाग हैं। वह पहले शिक्षा विभाग की भी प्रभारी मंत्री रह चुकी हैं। वह मोदी की कुछ अहम परियोजनाएं सफलतापूर्वक चला रही हैं जिनमें महिला साक्षरता बढ़ाना भी शामिल है।
मुख्यमंत्री पद के लिए आनंदीबेन के चुनाव में भाजपा के सामाजिक समीकरण का भी ध्यान रखा गया है क्योंकि पटेल राज्य में सबसे बड़ी और सर्वाधिक प्रभाव वाली जाति हैं दो दशक से अधिक समय से पटेल पार्टी के मुख्य जनाधार रहे हैं। व्यर्थ की बातों में नहीं उलझने वाली आनंदीबेन राज्य की भाजपा सरकार में सबसे लंबे समय तक मंत्री रहीं। वह 1980 के दशक के उत्तरार्ध में भाजपा से जुड़ी थीं और तब से वह लगातार पार्टी में आगे बढ़ती रहीं।
प्रोफसर मफतभाई पटेल के साथ ब्याही गयीं आनंदीबेन 1990 के दशक के मध्य से अपने परिवार से दूर रह रही हैं। उनके एक पुत्र और एक पुत्री हैं। मफतभाई ने आम आदमी पार्टी (आप) के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ने की अपनी योजना की घोषणा की थी लेकिन उनकी संतानों ने कथित रूप से यह चर्चा खारिज कर दी।
मफतभाई ने अपनी विदेश यात्रा स्थगित कर दी है क्योंकि उन्हें लग रहा था कि वह मुख्यमंत्री नियुक्त की जाएंगी और ऐसे में वह उनके शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा ले पायेंगे। आनंदीबेन को तब पूरे राज्य में शोहरत मिली थी जब 1987 में बतौर स्कूल शिक्षिका वह दो लड़कियों को डूबने से बचाने के लिए सरदार सरोवर जलाशय में कूद गयी थीं।
राज्यपाल से वीरता पुरस्कार मिलने के अलावा आनंदीबेन के इस साहसिक कार्य का संज्ञान भाजपा नेताओं ने भी लिया। चूंकि उस दौर में कुछ भाजपा नेताओं का उनके पति से परिचय था अतएव वह चाहते थे कि ऐसी शिक्षित एवं वीरांगना महिला पार्टी से जुड़े क्योंकि उन दिनों ऐसी महिला नेता बहुत ही दुर्लभ थी। बतौर शिक्षिका भी आनंदीबेन को कई सरकारी पुरस्कार मिले।
आंनदीबेन और मोदी तब से मिलकर काम कर रहे हैं जब वह पार्टी से जुड़ीं और मोदी बतौर आरएसएस प्रचारक प्रदेश के पार्टी नेताओं से मिलते-जुलते रहते थे। दोनों के करियर ग्राफ साथ साथ बढ़ते रहे। वह एक मात्र ऐसी महिला नेता थीं जो 1992 में श्रीनगर के लालचौक पर तिरंगा फहराने के दौरान तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी के साथ थीं। दो साल बाद वह राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुईं।
पार्टी में हमेशा ही प्रतिभाशाली समझी जाने वालीं आंनदीबेन को 1998 में विधानसभा चुनाव लड़ने को कहा गया और वह तत्कालीन केशुभाई पटेल सरकार में मंत्री बनीं। जब मोदी पार्टी की आंतरिक गुटबाजी की वजह से गुजरात से बाहर भेज दिए गए तब भी उन्होंने मोदी के प्रति अपनी निष्ठा को कभी नहीं छिपाया। मोदी ने आनंदीबेन को अहम विभागों की जिम्मेदारी दी और उनका कद बढ़ा एवं वह शीघ्र ही उनकी सबसे विश्वस्त मंत्रिमंडलीय सहयोगी समझी जाने लगीं। बतौर शिक्षा मंत्री आनंदीबेन को शिक्षकों के तबादले और नियुक्ति के लिए संस्थागत प्रणाली लागू करने का श्रेय जाता है। इससे पहले नियुक्ति एवं तबादले की जो तदर्थ व्यवस्था थी उसके बारे में समझा जाता था कि उससे भ्रष्टाचार पनपता है।
आनंदीबेन मितव्ययी जीवन जीती हैं और वह पूरे राज्य में दौरे, सरकारी परियोजनाओं की निगरानी एवं अधिकारियों तथा जनता से संपर्क करती रहती हैं। हालांकि कई पार्टी नेताओं का कहना है कि वह पार्टी नेताओं एवं कार्यकर्ताओं के साथ इतना ज्यादा मित्रवत नहीं रहती। लेकिन उन्होंने ऐसी आलोचना हमेशा यह कहकर खारिज कर दी कि उनका मूल्यांकन चेहरे पर मुस्कान देखकर नहीं ,बल्कि उनके काम से किया जाना चाहिए।
(एजेंसी)

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