श्रीलंका नाकाम रहा तो हम करेंगे अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग : कैमरन
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श्रीलंका नाकाम रहा तो हम करेंगे अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग : कैमरन

जाफना की यात्रा के बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने श्रीलंका को एक स्वतंत्र जांच आयोग गठित करने के लिए मार्च तक का समय दिया और कहा कि ऐसा न होने पर वह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग से लिट्टे से युद्ध के अंतिम चरण में मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन के आरोपों की अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग करेंगे।

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कोलंबो : जाफना की यात्रा के बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने श्रीलंका को एक स्वतंत्र जांच आयोग गठित करने के लिए मार्च तक का समय दिया और कहा कि ऐसा न होने पर वह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग से लिट्टे से युद्ध के अंतिम चरण में मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन के आरोपों की अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग करेंगे।
बहरहाल, श्रीलंका ने कैमरन की मांग तत्काल खारिज कर दी। श्रीलंका सरकार ने किसी ‘दबाव’ में जांच करने या स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय जांच की अनुमति देने से साफ इंकार कर दिया।
युद्ध से जर्जर जाफना के ऐतिहासिक दौरे से लौटने के बाद कैमरन ने बीती रात श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे से मुलाकात की। श्रीलंका के 1948 में ब्रिटेन से स्वतंत्र होने के बाद से कैमरन जाफना की यात्रा करने वाले पहले शासन अध्यक्ष हैं।
कैमरन ने कहा कि निष्पक्ष और विश्वसनीय जांच तथा तमिलों के साथ सुलह सहमति और उनके पुनर्वास के सहित सभी मुद्दों पर दोनों नेताओं के बीच ‘खुली’ बातचीत हुई।
कैमरन ने यहां चोगम सम्मेलन से अलग एक संवाददाता सम्मेलन में कहा ‘‘मैंने राष्ट्रपति राजपक्षे से कह कि (लिट्टे के खिलाफ) युद्ध के आखिर में हुए घटनाक्रम की मार्च के अंत तक विश्वसनीय, पारदर्शी और स्वतंत्र आंतरिक जांच जरूरत है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो मैं अपने पद का उपयोग संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग जाने और एक स्वतंत्र जांच के लिए अधिकार आयुक्त के साथ काम करने के लिए करूंगा।’’
उन्होंने कहा कि यह उत्तरी प्रांत के प्रभावित तमिलों के साथ श्रीलंका की सुलह सहमति और युद्ध की वजह से विस्थापित लोगों के पुनर्वास के बारे में है। यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें स्वतंत्र जांच के लिए मार्च तक इंतजार करना चाहिए, कैमरन ने बताया कि राष्ट्रपति ने उनसे कहा कि उन्हें कुछ समय चाहिए क्योंकि वे लोग अभी भी युद्ध के प्रभाव से उबर रहे हैं।
ब्रिटिश राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने इस बात को स्वीकार कर लिया कि श्रीलंका को सुलह सहमति के लिए समय की जरूरत है। उन्होंने कहा ‘‘मैं समझता हूं कि इसमें समय की जरूरत होती है।’’
उन्होंने कहा ‘‘जो भाग ‘नो वार जोन’ था वहां जो कुछ हुआ उसकी स्वतंत्र जांच की जरूरत है।’’ कैमरन के अनुसार, उन्होंने राजपक्षे से कहा कि उत्तरी आयरलैंड इस बात का उदाहरण है कि जब ब्रिटेन बरसों तक आतंकवाद से पीड़ित था और किस तरह ब्रिटेन ने उनके साथ सुलह सहमति के लिए कदम उठाए।
उन्हें उस बयान की याद दिलाई गई जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें राष्ट्रपति से कुछ सवाल पूछने हैं। उनसे पूछा गया कि क्या उन्होंने सभी सवाल राष्ट्रपति से पूछे। इस पर कैमरन ने कहा कि उन्होंने खुली चर्चा की लेकिन उन्होंने यह भी माना कि राजपक्षे ने उनकी कही सभी बातों को नहीं माना।
कैमरन के अनुसार, उन्होंने राष्ट्रपति से मानवाधिकारों के मुद्दों के समधान, पत्रकारिता की स्वतंत्रता के मुद्दे का समाधान करने और यह सुनिश्चित करने को कहा कि तमिल लोग पूरे सम्मान और गौरव के साथ जीवन जी सकें। उन्होंने कहा कि इन सबके लिए जरूरत है कि श्रीलंका सही रास्ता अपनाए।
ब्रिटिश राष्ट्रपति ने कहा कि आखिरकार यह सुलह सहमति का सवाल है। उन्होंने कहा कि घावों को भरने की जरूरत है और यह तब ही होगा ‘‘जब हम इस मुद्दे का समाधान करें तथा इसकी उपेक्षा न करें।’’ उन्होंने कहा कि जाफना, किलिनोच्चि और मुल्लैतीवु के लोगों का पुनर्वास बहुत ज्यादा जरूरी है जहां चैनल 4 नेटवर्क ने ‘‘स्तब्ध कर देने वाले कुछ घटनाक्रम’’ दिखाए हैं।
उन्होंने कहा कि उन्होंने इन सभी मुद्दों पर राजपक्षे से चर्चा की और उनका अपना एजेंडा है। उन्होंने उनसे कहा कि उनके पास सुलह सहमति का एक मौका है।
कैमरन ने भारत, कनाडा और मॉरीशस सहित कुछ देशों के प्रधानमंत्रियों द्वारा चोगम सम्मेलन के बहिष्कार का प्रत्यक्ष संदर्भ देते हुए कहा ‘‘यहां आना और इन बिंदुओं को उठाना महत्वपूर्ण है।’’
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने कहा कि कुछ अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रतिष्ठानों के पत्रकारों के साथ जाफना की यात्रा करने का उनका उद्देश्य ‘‘स्तब्ध कर देने वाले कुछ घटनाक्रम’’ पर रोशनी डालना था और राष्ट्रमंडल परिवार के सदस्य के तौर पर उन्होंने इस दौरे को सुगम बनाने के लिए श्रीलंका सरकार को धन्यवाद दिया।
तमिल दैनिक ‘‘उदयम’’ ने विपरीत परिस्थितियों में भी प्रकाशन जारी रखा था। इस अखबार के कार्यालय के दौरे का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि पत्रकारिता की स्वतंत्रता की जरूरत है और उम्मीद है कि श्रीलंका इसकी अनुमति देगा। (एजेंसी)

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