राहुल की हार, मोदी की जीत की वजह: अमर सिंह


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समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता और राज्यसभा सांसद अमर सिंह ने  'सियासत की बात' कार्यक्रम में कई मुद्दों पर बेबाक राय रखी। इस दौरान उन्होंने ज़ी मीडिया के एडिटर (न्यूज़ ऑपरेशंस) वासिंद्र मिश्र के साथ खास बातचीत में राजनीति समेत कई मुद्दों से जुड़े सवालों के बेबाकी से जवाब दिए। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश:



वासिंद्र मिश्र: आज हमारे खास मेहमान है अमर सिंह जी। अमर सिंह जी को महारत हासिल है इंडस्ट्री के बारे में, पॉलीटिक्स के बारे में। बॉलीवुड के बारे में। आज देश में जो चर्चा चल रही है डेवलपमेंट को लेकर किस तरह संतुलन बनाया जाए। डेवलपमेंट, पर्यावरण और आम जनता के बीच में। इन सब मसलों पर अमर सिंह जी से विस्तार से बात करेंगे।
 
हम बातचीत की शुरुआत करते हैं डेवलपमेंट से। यूपीए-1,यूपीए-2 लगभग 10 साल मनमोहन जी की सरकार रही और माना जाता है नई आर्थिक नीति, उदारीकरण की सबसे ज्यादा पोषक मनमोहन सरकार थी लेकिन जब चुनाव आया देश में और जिस तरह से नाराजगी और प्रतिक्रिया देखने को मिली तो कोई भी वर्ग,उनकी सरकार से, उनकी नीतियों से खुश नहीं था। शायद यही कारण है कि इतनी शर्मनाक हार हुई कांग्रेस पार्टी की। आद्यौगिक घराने नाराज थे, आम जनता नाराज थी ,बॉलीवुड भी नाराज था। अभी नई सरकार आई है। ये भी डेवलपमेंट के नाम पर आई है। आपकी नजर में कौन सा ऐसा मीसिंग लिंक था जो कि मनमोहन सरकार नहीं कर पाई और मौजूदा सरकार के कामकाज में वो सारी चीजे अभी दिख रही हैं जिससे आपको लगे कि कहीं ना कहीं संतुलन है।


अमर सिंह: देखिए मैं स्पष्ट अप्रिय सत्य, जिसके लिए शास्त्रों में भी लिखा है कि सत्य जो कटु हो वो नहीं बोलना चाहिए लेकिन मेरी अब आदत हो गई है वो आदत मेरी पहचान हो गई है। मैं खरा और कटु सत्य बोल देता हूं, मैं आज भी मानता हूं डॉ मनमोहन सिंह आज सत्ता में नहीं हैं या उनके प्रधानमंत्रित्व के काल में। पराजय हुई है ये तो बहुत आसान सी बात है कि उनके ऊपर आक्रमण करके उनके बारे में कुछ भी कह देना, लेकिन सच तो ये है कि मैंने बहुत प्रधानमंत्रियों को करीब से देखा और जाना है। उसमें से एक मनमोहन सिंह जी भी थे। इस देश की अर्थव्यवस्था इतनी लचर हो गई थी कि हमें अपने कोष का सोना गरवी रखना पड़ा था और उस जगह से डॉलर का जो भंडारण हुआ वो मनमोहन सिंह की नीतियों के कारण हुआ। वो हिम्मत स्वर्गीय राजीव गांधी जी भी नहीं कर पाए। ये विश्वनाथ प्रताप सिंह के वित्त नेतृत्व में और आदरणीय राजीव गांधी के प्रंधानमंत्रित्व में संभव नहीं हुआ। देखा जाए जिस व्यक्तिव को इसका श्रेय मिलना चाहिए कि गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांव बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए तो मनमोहन सिंह को चिन्हित किसने किया। खोज के निकाला किसने।  हालांकि नटवर जी ने लिखा है अपनी किताब में कि वो पब्लिक सर्विस कमीशन में थे नहीं ।  चंद्रशेखर जी द्वारा संभवत मनमोहन जी को इस पद पर रखा गया था। वो यूजीसी के अध्यक्ष थे और चंद्रशेखर जी ने उन्हें बनाया था। जहां तक मेरी स्मृति में है ,मैं चंद्रशेखर जी से बहुत निकट था और मुझे याद है कि चंद्रशेखर जी से मिलने। हम लोग बैठे रहते थे। उस वक्त डॉ मनमोहन सिंह जी देश में जाना माना नाम नहीं था और मनमोहन सिंह जी,  यूजीसी के अध्यक्ष थे। उन्हें खोजकर देश का अर्थ मंत्री नरसिंह राव जी ने बनाया था तो लोगों ने कहा ये कौन हैं भाई ,किस पिटारे से किस भंडारे से ये सरदार निकला और किसी को ये विश्वास नहीं था कि वो भारत जिसकी अर्थव्यवस्था इतनी लचर हो गई कि सोना तक गिरवी रखना पड़ा। उसका इतना बड़ा भंडारण हो जाएगा। मुझे आज भी याद है जब उदारीकरण की प्रक्रिया चली तो आपने सुना होगा श्रमिक अपना ट्रेड यूनियन बनाते हैं। देश के बड़े घरानों ने अपना ट्रेड यूनियन बनाया जिसे बॉम्बे क्लब कहा जाने लगा जिसमें स्थापित उद्योगपति उस समय देश के थे जो अब रफूचक्कर हो गए देश के औद्योगिक मानचित्र से। उन सबने बॉम्बे क्लब बनाकर इसका विरोध भी किया था क्योंकि पहले आपको अच्छा लगे या ना लगे एंबेस्डर में ही चढिए। अच्छा लगे या ना लगे 7-8 साल तक फीएट गाड़ी के  आवंटन के इंतजार में रहिए। अब तो ये हाल है जीरो इंटरेस्ट पर गाड़ी वाले आपके पीछे घूम रहे हैं कि ले ले भाइया ले मेरी गाड़ी ले ले। ये सब औद्योगीकरण के कारण हुआ है। बॉम्बे क्लब के, संगठन के उग्र विरोध के बावजूद हुआ है और इसका पूरा का पूरा श्रेय डॉ मनमोहन सिंह को देना पड़ेगा। भले लहर उनके विरोध में हो जनमत उनके विरोध में हो। मेरी समझ से इस चुनाव में चुनाव ही नहीं हुआ है। नरेंद्र मोदी जी की प्रखर ओजस्वी वाणी। मैंने पहले भी कहा था, फिर कह रहा हूं अटल बिहारी वाजपेयी जी की प्रखरता,स्वर्गीय प्रमोद महाजन के प्रबंध कौशल की असीमित क्षमता, और आडवाणी जी की राजनीतिक दृढ़ संकल्पता जो 3 व्यक्तिवों में भारतीय जनता पार्टी के अलग-अलग 3 पुरोधाओं में दिखाई देती थी। उस सबका समन्वय अकेले एक आदमी मे दिखाई दिया। निश्चित रूप से ये मत भारतीय जनता पार्टी को कम और नरेंद्र मोदी के प्रचार-प्रसार और कौशल को ज्यादा मिला है।


वासिंद्र मिश्र: तो अब आज जो नीतियां बन रही हैं जिस तरह से निजीकरण किया है मोदी जी विकास के सवाल को, किसानों के सवाल को ।आपको लग रहा है अब जो नीतियां बन रहीं हैं .इसमें और मनमोहन सिंह की जो नीतियां थी, उसमे कोई बेसिक फंडामेंटल फर्क है।


अमर सिंह: कोई अंतर नहीं है। अंतर सिर्फ परिस्थिॉतयों का है। एक तो नरेंद्र मोदी जी इस बात को जानते हैं कि वोट उन्हें मिला है। ये वोट पार्टी को नहीं मिला है। इसलिए उत्तरप्रदेश में कलराज भाई या हमारे बड़े भाई आदरणीय राजनाथ जी को उत्तर प्रदेश की विजय का सेहरा पार्टी अध्यक्ष होने पर भी नहीं दिया गया। वो सेहरा अमित शाह उठा कर ले गए और उसके लिए पुरस्कृत भी कर दिए गए तो अब पार्टी की सत्ता के केंद्र बिंदु में सिर्फ 3 लोग दिखाई देते हैं। नरेंद्र मोदी जी, अरुण जेटली और अमित शाह जी और द्वितीय पंक्ति के नेताओं में पीयूष गोयल और स्मृति ईरानी। सत्ता के गलियारों में उनका नाम सुनाई देता है और बाकी सब टेलीफोन पर देखते रहते हैं। जरा सी आहट होती है। तो दिल कहता है कहीं ये वो तो नहीं सवेरे पहुंच जाते हैं। ये मैं किसी व्यंग से नहीं कह रहा हूं। एकाधिपत्य का अपना लाभ भी है नुकसान भी है। इंदिरा जी का एकाधिपत्य था। तो इंदिरा जी के सहयोगी आर के धवन के फोन पर बड़े-बड़े अधिकारी और मंत्री खड़े हो जाया करते थे। मुख्यमंत्री भी तो जो एकाधिपत्य का विरोधी कहेंगे ये निरंकुशता का दौर भी आ गया है। मुझे लगता है देश की जनता ने जानबूझ कर ये दौर लाया है। वो अनिर्णय की जो स्थिति थी। देखिए मनमोहन सिंह जी लंका जाना चाहते थे। ये मैं जानता हूं लेकिन चिदंबरम से लेकर कांग्रेस के अध्यक्ष तमिलनाडु के और जयललिता। इन लोगों ने इतना विरोध किया कि विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद को श्रीलंका जाना पड़ा। वो जाना चाहते थे। अंतिम क्षण तक उन्हें मालूम था कि श्रीलंका ना जाना एक अच्छी बात नहीं है।


वासिंद्र मिश्र:  ये जो गठबंधन की मजबूरी है मोदी के सामने ऐसी कोई मजबूरी नहीं है।


अमर सिंह:  देखिए ना वाइको भले ही एक सीट ना पाए हों लेकिन एनडीए के, संगठन के एक सदस्य हैं और वाइको कोई छोटा नाम नहीं है। चुनाव में जीत-हार होती रहती है।इंदिरा गांधी भी हारीं ,अटल जी हारे माधव राव सिंधिया जी से। चंद्रशेखर जगन्नाथ चौधरी जी से हारे और बहुगुणा जैसे व्यक्ति अमिताभ बच्चन से हारे तो हार से और जीत से कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। आदरणीय मुलायम सिंह जी बलराम सिंह से एक बार हार गए तो मुलायम सिंह जी खत्म हो गए कि अटल जी खत्म हो गए। जीत से बड़ा विश्वास नहीं होना चाहिए और हार से हताश नहीं होना चाहिए । प्रश्न ये कि आज परिस्थितियां कैसी रहीं। आज आप कल्पना कीजिए। यूपीए 3 बन जाती औऱ इनको बुलाया जाता नवाज शरीफ को तो पूरा संघ परिवार सड़कों पर रहता कि हमारे सैनिकों का कटा हुआ सिर भेजने वाले पाकिस्तान उस पाकिस्तान के सबसे बड़े अधिकारी को बुलाकर शहीदों का अपमान किया है। बिरयानी खिलाई जा रही है अब संघ भी चुप है। राम माधव जी का भी कोई बयान नहीं आया। वाइको  ने पहले विरोध किया तो उनका विरोध प्रतीकात्मक रह गया। जयललिता जी जो अपने विचारों के लिए खूंखार हैं। उनका राजनीति का खूंखारपन भी थोड़ा नरम हो गया। वो बोल कर चुप हो गई। एक उबाल आया फिर जैसे मोदी जी की संप्रभुता की सत्ता का जो छींट पड़ा। वो उबाल दबकर रह गया और लंका के भी राष्ट्रपति आए। मियां शरीफ भी पाकिस्तान से आए और सबके गले मिले। वही जो सामान्य परिस्थितियों में ऊहापोह होत और तरह-तरह की भ्रांतियां होती। संघ परिवार भी संभवत करता। निश्चित करता वो सब लोग वाह-वाह करने लगे। ये क्या डिप्लोमेसी है। मैं आपको बताऊं ,जो काम मोदी जी कर रहे हैं। वो काम एक दशक पहले मेरे जैसा छोटा व्यक्ति कर चुका है। हमने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को अपने विशेष वायुयान से किसी शपथ ग्रहण समारोह में नहीं। अपने भोज में बुलाया था लखनऊ में। हमने कहा आप हमारे मित्र हैं। कौन मानेगा। आप लखनऊ आइए और किसी से मत मिलिए। प्रधानमंत्री से नहीं मिलिए सिर्फ मेरा भोज कीजिए और 10 बार कहिए कि अमर सिंह हमारे मित्र हैं और इससे ज्यादा आप कुछ कर भी नहीं सकते और उन्होंने 10 बार यही किया। वो वहां गए...किसी उद्योगपति से नहीं मिले...किसी नेता से नहीं मिले...अपने जहाज से अमेरिका से आए...और 10 बार कहा कि अमर सिंह हमारे मित्र है कहे... और चले गए...वैसा मैंने क्यों किया...ठीक उसी काम के लिए किया..जो मोदी जी कर रहे हैं। मोदी जी ने तमाम पड़ोसी देशों के लोगों को बुलाया शपथ ग्रहण समारोह में। ये बताने के लिए। अरे यारो जरा पहचानो कहां से आया। मैं हूं कौन। मैं हूं इस उपमहाद्वीप का नया उभरा डॉन। उन्होंने ये बताने के लिए किया और वो हमने 10 साल पहले किया। अब वो सारे उद्योगपतियों की भीड़ बाइब्रेंट गुजरात में। एक साल में वो करते थे जो लोग वहां जाते थे। वो तमाम लोग हर महीने। चाहे वो कुमार बिड़ला हों, नंदन नीलकर्णी  हों, सुब्रत राय सहारा हों, अंबानी हो सब के सब वहां आते थे। अपने जहाज से आते थे, काम करते थे। हर महीने बाइब्रेंट उत्तर प्रदेश होता था। साढ़े 3 साल की वो सरकार जो दल-बदलूओं के दम पर बनाई गई हो। ऐसा कहा जाता था। उस सरकार में साढ़े 3 साल में 18 नई चीनी मिलें लगीं और शरद पवार जैसा व्यक्ति उसने सदन के पटल पर खड़े होकर कहा कि चीनी उत्पादन के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र को पीछे छोड़ चुका है।


वासिंद्र मिश्र: अमर सिंह जी अभी आप से बात हो रही थी..आपने एक बहुत अच्छी बात कही कि नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व में तीन बड़े नेताओं की अच्छे हिस्से है उनमे दिखाए देते हैं...एक साथ..इन तीन नेताओं के ऐसे पक्ष भी है  आप इनसे जुड़े रहे है आप जानते है... अटलजी की थ्योरी सबकों एक साथ लेकर चलना, किसी के खिलाफ राग द्वेष से कार्रवाई मत करो, प्रमोद महाजन का मैनेजमेंट चाहे वो कारपोरेट लॉबी हो या पार्टी के वर्कर हो आडवाणी जी की दृढ़ता,  जो तय कर दिया वो करना है चाहे इसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े ...नरेंद्र मोदी जी की अभी तक जो कार्यशैली प्रधानमंत्री के रुप में देखने को मिल रही है क्या आप को लगता है कि वो सारी चीजों का संतुलन बनाकर चल रहे है...


अमर सिंह: पूरे कैंपेन में नरेंद्र जी की.....मां बेटे की सरकार...शहजादे या यूपी में बाप-बेटे की सरकार इसके अतिरिक्त मुझे कोई बात बुरी नहीं लगी ...जो व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री हो रहा हो, ये उसकी गरिमा स्तर के अनुकूल नहीं है मैं नहीं समझता कि राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी का कोई मुकाबला है...मैं नहीं  समझता कि सोनिया गांधी की पात्रता  ये है कि उनके बारे में ऐसे शब्द कहे जाए..राहुल गांधी के साथ मेरे कटु अनुभव रहे है लेकिन सोनिया गांधी के लिए मेरे मन में आदर का भाव है.... वो सत्ता से चली गई इसलिए मैं क्यों बदलूं क्योंकि उनकी अच्छाई जो मैंने देखी है उस अच्छाई को मैं क्यों भूल जाऊं.    


उस अच्छाई की चर्चा मैं क्यों न करूं। हो सकता है कि सोनिया जी  ऐसी परिस्थियों में घिरी हों। ऐसे लोग  उनके आस-पास हों कि उनके व्यक्तित्व की अच्छाई का पूरा तथ्य छनकर मेरे पास न पहुंचे। मैं नरेंद्र भाई के लिए भी ये कहना चाहूंगा। मैंने सोनिया गांधी से स्वयं कहा कि मेरे नरेंद्र मोदी से अच्छे संबंध हैं।  और मुझे आश्चर्य हुआ कि किरण मजूमदार शाह, जो कि बायोटेक की मालिक हैं और बहुत बड़ी प्रतिष्ठा वाली महिला हैं। सुखद आश्चर्य हुआ उन्होंने भोजन पर बुलाया और  उन्होंने कहा कि मैं नरेंद्र मोदी जी से मिली  और उन्होंने कहा कि विपक्ष में बहुत से लोग हमारे मित्र हैं और अमर सिंह जी भी हमारे मित्र हैं। मेरी अनुपस्थिति में किरण मजूमदार जी से नरेंद्र मोदी ने कैपेंन के दौरान ये बात कही और ये बड़ी बात है। इधर मैंने उन्हें कभी संपर्क नहीं किया। चुनाव जीतने के बाद एक बार मैंने फोन किया था, तो देहरादून में सुबह उनका जवाब आ गया, मेरी दो मिनट बात हुई और मैंने उन्हें बधाई दी, और बात वहां खत्म हो गई, लेकिन नरेंद्र मोदी  जी के अंदर ये गुण था, संभवत: अभी भी होगा, अगर आप उन्हें फोन करिए और वो आपको जानते हैं, तो आपको जवाब ज़रूर देंगे।  राहुल गांधी जी में ये गुण हैं कि आप उन्हें सौ फोन करें, वो जवाब नहीं देंगे, उनके यहां, कौशल किशोर और कनिष्का भी जवाब नहीं देगी। मैं उदाहरण दूं, जयप्रदा जी ने फोन किया और मिलने का समय मिला, उनको उत्तर मिला आप सांसद हैं, संसद की लॉबी में मिल लीजिएगा। दो-दो साल तक मिलने का समय नहीं है तो ये जो डिसकनेक्ट है, और मैं समझता हूं इस डिसकनेक्ट के कारण, राहुल गांधी जी को मैं बुरा नहीं कह रहा, अगर मैं सोनिया गांधी जी का सम्मान करता हूं, और उन्हें आदर करता हूं तो मैं उनके पुत्र को बुरा कैसे कहंगा..ये व्यवहारिक रूप से भी प्रासांगिक नहीं है, लेकिन राहुल गांधी जी के डिसकनेक्ट की बात उन्हें  बुरी लग रही है..तो मैं बहुत क्षमा चाहता हूं, लेकिन राहुल गांधी जी का डिसकनेक्ट टोटल था जिसके कारण मुझे ये लगता है कि..जैसे उन्होंने एक भाषण में कहा अमेठी, रायबरेली में..जब मैं छोटा था, तो बूढ़ी दादी से मिलता था तो मुझे टॉफी मिलती थी..उन्हें उनके आस-पास के लोगों ने ये भी नहीं बताया कि वहां पर गांव में पानी के साथ टॉफी नहीं देता कोई..गुड़ देता है..जिसे भेली कहते हैं या चीनी देता है..और पानी सामान्य रूप से हमारे उत्तर प्रदेश के गांव में  पानी मांगने पर चीनी या गुण या भेली दी जाती है...अगर वो भेली और गुड़ हमको दादी देती थी कहते तो कनेक्ट होता ...लेकिन भेली और गुड़ की जगह उन्होंने टॉफी कह दिया ..वो डिसकनेक्ट  हो गया..तो ये जो डिसकनेक्ट है...नरेंद्र मोदी जी कनेक्ट कर रहे थे, राहुल गांधी जी का डिसकनेक्ट रहा..तो ये समान स्तर की लड़ाई नहीं रही..अगर कोई भी व्यक्ति और जो .कांग्रेस के भाई दिग्विजय सिंह जी जो प्रहार करते थे..और सबसे ज्यादा मजा तो, जाने अनजाने भाई नरेश अग्रवाल ने कर दिया...मणिशंकर अय्यर तो झूठ-मूठ में बदनाम हैं..चाय वाला बयान सबसे पहले भाई नरेश अग्रवाल ने दिया था... सबसे पहले समाजवादी पार्टी ने दिया . नरेश अग्रवाल ने वो बयान हिंदी में दिया और मणिशंकर अय्यर ने अंग्रेजी में रुपांतरण कर दिया...नरेंद्र मोदी ने इसका भी लाभ उठाया...मोदी जी ने हर विषमता का लाभ उठाया...उन्होंने पत्थर को भी नहीं छोड़ा...संसद की सीढ़ी को प्रणाम करके, उसका भी लाभ उठाया..आडवाणीजी ने जो बयान दिया कि नरेंद्र मोदी का उपकार है नरेंद्र मोदी ने जिस तरह चश्मा उतराकर रोते हुए कहा कि, ना आडवाणी जी ना ,उपकार तो संघ के उन संघियों का है ..जनसंघ के दिए जिन्होंने जलाए आप ऐसे बुजुर्ग हैं जिनके कंघे पर खड़ा है नरेंद्र मोदी । उन्होंने आडवाणी को भी वो हिंदी व्याकरण में कहते है ना लक्षणा व्यंजना तो उन्होंने व्यंजना में आडवाणी जी की ऐसी की तैसी करके रख दी । हर स्थिति का और हर विवाद का अपने लिए बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया ..अपने तर्क से अपने व्यक्तित्व से, अपनी वाणी की प्रखरता से ..ये मैं किसी बुराई से नहीं कर रहा हूं ये उनकी गुणवत्ता है 17 फीसदी दाम बढ़ाने से पहले उन्होंने कहा कि कड़वा घूंट दूंगा. उस दिन के लिए आप नफरत कर सकते है नाराज हो सकते है जब इस कड़वे घूट का मीठा नतीजा आएगा आप प्रसन्नता करने लगेंगे प्यार करने लगेंगे...कड़वा घूट दूंगा उसके लिए उन्होंने तैयार किया...ये सब विसंगतियां कांग्रेस के प्रबंधन में निश्चित रुप से रही है कोई वक्ता बोलता भी था तो ऐसे बोलता था जैसे जो जितना गाली देगा नरेंद्र मोदी को उसके नंबर उतने बढ़ जाएंगे ...कई लोगों ने मेरी तारीफ की मैं नरेंद्र मोदी की तारीफ कर रहा हूं.... बड़ा आश्चर्य होता है कि मैंने कांग्रेस से टिकट भी  नहीं मांगा, मैने जया प्रदा जी के लिए टिकट मांगा. सोनिया जी से कहा और राहुल जी से ईमेल के जरिए कहा. जयाप्रदा जी को टिकट मिल गया मैंने रामपुर से नहीं मांगा क्योंकि वहां नूरबानों थी और मेरी स्वयं बात हुई थी हेमामालिनी की बेटी की शादी में नरेंद्र भाई से .....मैने कहा नरेंद्र भाई में आपका आदर करता हूं प्यार करता हूं लेकिन आपका और मेरा वैचारिक डीएनए नहीं मिलता ...मुंह पर कहा था उनके ...समाजवादी पार्टी में रामगोपाल जी ने सदाचार से जिस तरह निकाला था वहां मैं नहीं जाना चाहता था तो अपने लिए नहीं, जयाप्रदा जी ने साथ दिया था इसलिए मुरादाबाद मांगा उन लोगों ने दिया इसके लिए मैं ऋृणी हूं लेकिन मैं एक बात बताऊ रहस्योद्घाटन कर रहा हूं. नोएडा में कुछ टीवी चैनलों में देखा कि मैं नोएडा से चुनाव लड़ रहा हूं भंवर जितेंद्र सिंह मेरे पास आए और कहने लगे कि दो मिनट में बताइए कि जयाप्रदा मुरादाबाद से लडेंगी की नहीं लड़ेंगी और अपने लिए भी बताइए..आप जरा दागी है इसलिए हमने निर्णय लिया है कि आप निर्दलीय लड़ेगे और कांग्रेस अपना प्रत्याशी नहीं देगी विधि की विडंबना देखिए जिसको उन्होंने टिकट दिया उन्होंने इनसे फंड भी लिया और टिकट भी लिया और बीजेपी में भाग गया. ये विधि का विधान है मैनें उनसे कहा कि मुझे आपका टिकट नहीं चाहिए....मैं चुनाव जीतने के लिए नहीं लड़ा, चुनाव मैं इसलिए लड़ा ताकि मैं लड़ के उन्हें बता सकूं और इनके सहयोगी दल से लड़ के बता सकूं कि मैं विवादित नहीं  हूं , इनके सीटिंग कैबिनेट मंत्री से ज्यादा मत मुझे मिले , नाम लेकर हम किसी को अपमानित नहीं करना चाहता लेकिन इसके कद्दावर मंत्री चिदंबरम जैसे बड़े मंत्री के बेटे को सिर्फ 5 हजार वोट मिले उससे कई अधिक वोट मुझे मिला तो मैने सिर्फ भंवर जितेंद्र सिंह जो राहुल गांधी के सलाहकार थे उनको संदेश देने के लिए, अमर सिंह जीते या हारे। मैं जेल भी हो आया 2000 किलोमीटर की पदयात्रा भी कर आया चुनाव लड़के हार भी गया ।नरेंद्र मोदी, मुलायम सिंह और अरुण जेटली किसी ने मुझे विवादित नहीं बताया और आक्रमण नहीं किया ।


वासिंद्र मिश्र:  अमर सिंह जी अभी बात हो रही थी आप बता रहे थे..किस तरह से राहुल गांधी के जो सलाहकार लोग थे..इन्होंने कांग्रेस पार्टी को अपने ..हम कह सकते हैं कि नासमझी के चलते या पॉलीटिकली इम्च्योरिटी के चलते बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाया .. आप दोनों पीढ़ी के लोगों से कनेक्ट रखते हैं..तमाम ऐसे नेता है जो इस समय  राज्यों के मुख्यमंत्री हैं उनके पिता लोग आपके मित्र रहे हैं...केंद्र में मंत्री रहे हैं.....आपको क्या कमी दिख रही है, ये जो नई पीढ़ी है उस तरह से डिलीवर क्यों  नहीं कर पा रही है...सिवाय  नवीन पटनायक को छोड़कर, ये जो जितने लोगों को पुत्र मोह के चलते कहें...या एक्सीडेंटली बड़ी-बडी जिम्मेदारियां दी हैं..सभी दलों में वो ज्यादतर सुपर फ्लॉप रहे हैं....इसका क्या कारण हैं...
अमर सिंह:  देखिए इसका उत्तर आपको बादल साहब देंगे..जिन्होंने डिप्टी चीफ मिनिस्टर तो बना दिया सुखवीर जी को ..लेकिन चीफ मिनिस्टर नहीं बनाया...इसका उत्तर आपको देवीलाल जी से भी मिलेगा..उनके  रणजीत भाई भी लड़के थे और ओमप्रकाश भी...लेकिन विरासत अपनी उन्होंने ओमप्रकाश जी को दी...रणजीत भाई को नहीं दी..देखिए  राजनीति और सिनेमा इन दोनों का संबंध जनता से है..दुल्हन वही, जो पिया मन भाए...नेता वही जो जनता मन भाये...स्टार वही जो दर्शक मन भाये, अब अमिताभ बच्चन का बेटा होने के नाते अभीषेक बच्चन को अवसर तो मिल सकता है..बीस-बीस फिल्मे  मिल सकती हैं...लेकिन फिर भी...शाहरुख खान, अभीषेक मेरे बेटे की तरह है...शाहरुख खान से तो हमारा विवाद भी है...


वासिंद्र मिश्र:- विवाद भी तो उन्हीं के चलते हुआ था..


अमर सिंह:- अब जाने दीजिए...जो दिल्ली के एक सामान्य परिवार से निकला हो..जिसको कोई संरक्षण नहीं हो..जो टीवी सीरियल से शुरू किया हो..बड़े संघर्ष से शुरू किया हो...वो बड़ा आदमी बन जाए...आमिर खान  जिसके पिता ताहिर हुसैन ....वो बड़ा आदमी बन जाए और उसका भाई कुछ न बने...सगा भाई कुछ न बने या सलमान खान के परिवार में भी सिवाय उनके पिताजी के वो बड़े आदमी हैं..सलीम साहब और कोई भाई , भाई जान न बन सके....ये सिर्फ  प्रारब्ध  का मामला नहीं है... प्रारब्ध आपको अवसर दे सकती है..मंच दे सकती है...उस अवसर और मंच का आप कितना सदपयोग कर सकते हैं वो आपकी गुणवत्ता पर निर्भर करता है...मुलायम सिंह जी का मैं आभारी हूं.. क्योंकि उन्होंने मंच दिया..लेकिन मंच उन्होने किसको नहीं दिया...मंच उन्होंने अखिलेश को दिया..मंच उन्होंने रामगोपाल यादव को दिया...मंच उन्होंने आजम खान साहब को दिया..मंच उन्होने सब को दिया...हां ये मैं कहूंगा उनके मंच का सदपयोग शिवपाल यादव ..जिनके बारे में तरह-तरह की बाते होती थी आज सबसे अच्छा काम वो ही कर रहे हैं...उनका विभाग कर रहा है...हो सकता है मेरा ये बोलना लोगों को अच्छा भी न लगे..
वासिंद्र मिश्र:-हां उनका भी नुकसान हो जाए



अमर सिंह: नुकसान मुझे नहीं पता...अब जैसे मैंने कहा अजय राय और मुख्तार अंसारी के मिलने से 50 लाख वोट और बढ़ जाएगा मोदी का.. लेकिन मैं ये मोदी जी के पक्ष की बात नहीं कर रहा हूं..एक राजनीतिक विश्लेषक के हैसियत से बिल्कुल न्यूट्रल होकर मैंने अपना  ऑब्जर्वेशन किया..और अगर मोदी जी के पास और भारतीय जनता पार्टी के पास जाना ही था ..तो क्या मुझे दिख नहीं रहा था कि मोदी जी की लहर और हवा चल रही है...और अभी थोड़ा-थोड़ा मेरे ह्दय में थोड़ी मृदुलता आ रही थी मोदी जी के प्रति... तो रमजान में जिस तरह से जबर्दस्ती रोटी खिलाकर , रोजा तुड़वाया गया ..एक बार मैं फिर सहम और ठहरता गया..हमने  उस कैंप देखा है, जहां  छोटे बच्चो को हिटलर ने बुलाकर, जिनके चर्बी का साबुन और हड्डी से सिपाही के यूनीफॉर्म के  लिए बटन बनाया...ये पोलेंड और बर्लिन के बीच है.. हम और मुलायम सिंह जी एक साथ उस कैंप को देखने गए .... पोलेंड से, उसके बाद ओस्वीच के कैंप के बाद...हम जर्मनी के उस विश्वविद्यालय में गए  थे जहां लोहिया जी पढ़ते थे...उनके मन में बड़ी ललक थी कि लोहिया जी किस कक्षा में पढ़ते थे चलके देखा जाए..और जब हम पोलैंड से बाई कार निकल थे हमे याद है... ओस्वीच के  कैंप जिस पटरी से यहूदी..इसलिए लोगों को बुलाया जाता था. कि वो नस्ल के यहूदी थे..हमने सिंड्रेस लिस्ट नहीं देखी.. हमने उस कैंप में बच्चों के छोटे-छोटे जूते देखे.. ये जो नस्लवाद है कोई करे.. भारत के प्रधानमंत्री का चाहे कोई सहयोगी हो चाहे वो शिव सेना हो.. या कोई हो उसके बाद ये बयान उद्धव भाई का कि रमजान के महीने में मुसलमान बलात्कार नहीं करते हैं.. ठीक दूसरे दिन उसके खबर आई कि कर्नाटक में एक हिंदू पंडित ने हिंदू लड़की के साथ बलात्कार किया... सिर्फ इसलिए कि इस तरह के बयान से बदला ले लेंगे... अब इस तरह की लड़ाई में सिर्फ मुस्लमानों ने साथ दिया है.... ये अतिवाद है...चाहे ये समाजवादी पार्टी का हो. चाहे ये अतिवाद भारतीय जनता पार्टी का हो..अतिवाद से सिर्फ मतों का ध्रुवीकरण हो सकता है... लेकिन देश का जो स्थायित्व है, अनेकता में एकता की संस्कृति है... हम कहा ले जाएंगे देश को..क्या हम देश को गाजा और इजरायल बनाएगे..क्या हम एक वर्ग को  इतने पीछे भेजे देंगे कि वो विक्षिप्त  होकर उपद्रव करने लगे ..देश सामंजस्य और समता से चलता है.. ये आज मैं कह रहा हूं... आज मुझे चंद्रशेखर जैसे नेता की कमी खल रही है .. चंद्रशेखर जी ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद चंद बड़े नताओं में एक थे जिन्होंने कहा कि काश इंदिरा जी ने सिखों का इतिहास पढ़ा होता... लेकिन कुछ भी हो जाता अमृतसर गुरुद्वारा पर किया गया हमला बहुत घातक सिद्ध होता.. ये हुआ...इंदिरा जी का पुराना अंगरक्षक और विश्वसनीय ने उनकी हत्या कर दी..ये चंद्रशेखर जी कि दूरदृष्टि का अध्ययन था..और उन्होंने मुझसे कहा कि... सिखों का इतिहास पढ़े न बव्वा.. पढ़ लेता त पता लगत कि सिख कैसन बाने...तो आज भी मुझे उनकी वाणी गूंजती है...तो चंद्रशेखर जैसे नेता की कमी खलती है...जो कि सदन में ...भले वो बहुत ज्यादा सांसदों की संख्या न हो...जब..इंदिरा जी के जमाने में बहुत जब बड़ा सिंडेकट था.. बड़े नेताओं का था कांग्रेस में ...तो उसके विरोध में चंद चार लोगों ने आवाज उठाई थी...बैंक के निजीकरण के खिलाफ या राजशाही को खत्म करने के समर्थन में...चंद्रशेखऱ जी, रामधन जी,  कृष्णकांत जी औऱ मोहन धारिया...चार ही थे...तो क्रांति करने के लिए एक दो लोगों की ही जरूरत होती है...जिस तरह से देश को चलाने के लिए भीड़ की जरूरत नहीं है...आज अरुण जेटली, नरेन्द्र मोदी औऱ अमित शाह चला रहे हैं...


वासिंद्र मिश्र :-एक और... इस समय दौर चल रहा है किताब लिखने का...औऱ आपके बारे में भी खबरें आ रही है कि आप अपनी ऑटोबायोग्राफी लिख रहे हैं...


अमर सिंह: - हां मैं लिखूंगा
 
वासिंद्र मिश्र: - और उस ऑटोबायोग्राफी के तीन पार्ट हैं... औद्योगिक घरानों से आप के रिश्ते, कॉरपोरेट वर्ल्ड से... बॉलीवुड से आपके रिश्ते... औऱ आम जनता औऱ पॉलटिशयन से आपके रिश्ते


अमर सिंह: - जी हां बिल्कुल, तीन खंड तो होंगे ही


वासिंद्र मिश्र: - तीन खंड तो होंगे ही...तो कब तक वो जनता को मिल सकता है पढ़ने के लिए...आप की वो ऑटोबॉयोग्राफी


अमर सिंह: - देखिए उस ऑटोबॉयोग्राफी में...ऑटोबायोग्राफी की एक मर्यादा होनी चाहिए...मेरे, मुलायम सिंह के विरोध हुए है... लेकिन मेरे-मुलायम सिंह के बीच में ऐसी कई चीजें है...जो न बोला था, जो न बोला है, जो न बोलूंगा...अगर कभी बात होगी तो उन्हीं से होगी...उसी तरह से मेरा मानना है कि आदरणीय नटवर सिंह जी को...जो  कई पीढ़ियों से गांधी परिवार के निकट रहे...कई चीजें जो परिवार के निकटता के दौरान उनको पता चलीं या बताया गया...नेहरु जी के साथ काम किया ...इन्दिरा जी के साथ काम किया...राजीव जी के साथ काम किया...वो उन्हें छोड़ देना चाहिए...और ऐसा इसलिए मैं कह रहा हूं कि इसी घर में रोमांसिंग विथ लाइफ नाम की पुस्तक लिखी थी देवानंद साहब ने...और उसकी पांडुलिप लेकर आए थे...और उसका चश्मदीद गवाह भी उनके साथ मोहन नाम का एक व्यक्ति है... जो हरदम साथ रहता था वह है...


वासिंद्र मिश्र: - उनका पीए है


अमर सिंह: - पीए या सखा जो भी कहिए


वासिंद्र मिश्र: - हां मोहन चूड़ा मणि नाम है


अमर सिंह: - मोहन चूड़ी वाला...तो उस पांडुलिप को मैने पढ़ा...बहुत सुंदर किताब थी...और है बल्कि...उसमें मैने देव साहब को कहा कि... कई घटनाएं...कई आपकी महिला मित्रों का जिक्र...इससे निकल जाना अच्छा है... जीनत के बारे में, सुरैया जी के बारे में...जो महिलाएं आपके जीवन की अप्रतिम अंग थीं...जिसके बारे में जनता को भी पता है...उसका वर्णन नहीं करना ये बेइमानी होगी...लेकिन वो सरेराह चलते चलते मुझे कोई मिल गया था...इस तरह का जिक्र न करें तो अच्छा है कि वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन...उसे खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा...तो इसलिए कोई जरूरत नहीं है... तो देव साहब ने मेरी बात मानी...उन्होंने गुरुदत्त के बारे में...राज खोसला के बारे में...और भी कई लोगों के बारे में...विस्तार से कई बातें लिखी थी...
केएन सिंह जो बीते हुए जमाने के खलनायक थे...उन्होंने कहा नहीं तुम्हारी बात में दम है...हमने कहा कि आप अपने बारे में जो चाहे लिख दें...क्योंकि अपने बारे में अपनी आलोचना लिख दें अपनी बुराई लिख दें...और उन्होंने एक प्रसंग लिखा...अगर आप वो किताब पढ़ें कि रेल के डिब्बे में उन्होंने क्या क्या किया ... स्वयं...कर्म, दुष्कर्म, सत्कर्म सब लिखा उन्होंने...हमने कहा कि आप अपने बारे में...जैसे गांधी जी ने एक्सपेरीमेंट विथ द ट्रुथ में अपने बारे में लिखा है..माई एक्सपेरीमेंट विथ द ट्रुथ...मैने देव साहब को भी यही बात कहा कि ...और मैने...मुझे खुशी इस बात की है कि देव साहब की किताब का विमोचन मैने हर जगह कराया...लंदन तक...लंदन, बैंगलौर, कलकत्ता, मुंबई...उनका आशीर्वाद मुझे मिला...और मैं उनका बड़ा भारी फैन था...तो जो मैंने देव साहब को कहा वो अपने ऊपर भी पालित करुंगा...मैं सभी घटनाओं को जिक्र जरूर करुंगा लेकिन विस्तार से...उसको कहते हैं न कि भई...आप छू कर छोड़ दीजिए...आप उसको एक...जितना लोगों को पता है उसका अगर जिक्र नहीं करेंगे तो ये बेइमानी होगी...लेकिन उसके अंदर की बात...तो उसको जिसको आप कह सकते हैं कि एक्सरे विजन भी नहीं...एमआरआई विजन आप दे दें...ताकि आप एकदम पियरसिली... आप दे दें...गोरी डिटेल्स...तो मैं समझता हूं कि... या तो आपको मौलाना आजाद होना चाहिए...अगर उस तरह की मैं किताब लिखूंगा कि तो मैं लिखूंगा कि मरणोपरांत...दस वर्ष बाद...बीस वर्ष बाद...जब तक की ये संबध... ये चरित्र ही न रहें...और अंत में जीवनकाल में लिखूंगा...औऱ तमाम पात्र जो जीवित हैं...अगर वो भी जीवित हैं...तो उनका मन दुखाने का कोई अधिकार मुझे नहीं है...


वासिंद्र मिश्र: - तो ये नटवर सिंह जी ने क्यों किया... वो तो आपके भी करीबी रहे हैं आपके पास आते रहे हैं...जब गर्दिश मे थे तो ज्यादा आपके पास आते थे


अमर सिंह: - नहीं नहीं... नटवर सिंह जी... ऐसा व्यक्ति कभी गर्दिश में नहीं रहता...जिसके पास विचार हों...जिसके पास कलम हो...और जिसके पास उस विचार औऱ कलम को छापने के लिए पब्लिशर हों...और इंटरव्यू लेने के लिए आप जैसे प्रखर चैनल और पत्रकार...वो गर्दिश में क्या रहेगा...जो जब भी बोले...जहां से बोले खबर है...
तो नटवर सिंह जी को तो इतने बड़े आर्शीवाद के बाद ये अवसर मिला...मुझे तो ...मैं तो एक सामान्य मध्य परिवार का व्यक्ति हूं...तो मुझे भी ईश्वर ने मौका दिया कि मैं जब भी बोलूं, जहां भी बोलूं ... जो बोलूं...खबर बना ही देते हैं


वासिंद्र मिश्र:- नहीं....मोटिव समझ में नहीं आ रहा है न, टाइमिंग औऱ मोटिव


अमर सिंह: - मोटिव, देखिए ...निश्चित रुप से उनके अंदर का गुस्सा...गुस्सा मैं भी हूं..मुझे थोड़े अच्छा लगा जब भंवर जितेन्द्र सिंह ने आकर कहा कि आप दागी हैं...जिसके लिए चोरी की वही कहे चोर...और तब...अमित शाह को तो किसी ने नहीं कहा कि इशरत जहां फेक एनकाउंटर में तुम विवादित हो


वासिंद्र मिश्र: अभी भी आरोपी हैं


अमर सिंह:  अभी आऱोपी हैं और उन्हें पुरस्कृत करके अध्यक्ष बना दिया गया...लेकिन हमें अदालत से उम्मीद है...हमारे विरोध में कोई केस भी नहीं है... लेकिन मैं इंटरव्यू देकर तो नहीं कह सकता था न कि मैं दागी नहीं हूं...चुनाव लड़ा तो हमें देना पड़ा...कि आपके विरुद्ध कोई मुकदमा लंबित है ....तो मैं तो अपने को निर्दोष सार्वजनिक रुप से बताने के लिए चुनाव लड़ पड़ा...और मैं आपको आज बता दूं...कि माधव सिंह सोलंकी से लेकर...तिथि कृष्णमचारी से लेकर...अमर सिंह तक...हर व्यक्ति जो विवाद में पड़ा उससे पल्ला झाड़ने की कांग्रेस की वृत्ति के कारण ...कांग्रेस के बुरे वक्त में ...कोई कांग्रेस के साथ...बहुत कम लोग खड़े होंगे...मुझे इतने दिनों के इतिहास में अपने साथियों के साथ मजबूती के साथ खड़ा रहने वाले नेताओं में सिर्फ एक नाम याद आता है... कांग्रेस के इतिहास में...संजय गांधी जी का...और कुछ हद तक इंदिरा जी का...और सोनिया जी सहृदय जरूर हैं...लेकिन जिस तरह का स्टैंड इंदिरा जी ले लेती थीं... या जिस तरह का स्टैंड संजय गांधी लेते थे...मुझे याद है कि दासमुंशी साहब को हटाकर उड़ीसा के रामचन्द्र रथ को...उन्होंने आगे लाया था... और बाद में इंदिरा जी उन्हें राज्य मंत्री भी बनाया था...लेकिन अब रामचन्द्र रथ कहां है...दूरबीन से ढूंढना पड़ेगा...गुलाम नबी आजाद जो आज हमारे सदन के नेता हैं...128 साउथ एवन्यू में रामचन्द्र रथ की बरसाती में मैं उनसे मिलता था...ये सत्य कह रहा हूं मैं...और बहुत आदर और प्यार से कह रहा हूं गुलाम भाई से...गुलाम भाई प्रदेश के अध्यक्ष नहीं...रथ साहब के नीचे औऱ गुलाम भाई में ये सहृदयता है कि वो रथ साहब को आज भी वो इज्जत देते हैं...लेकिन सत्य ये है कि वहां से उन्होंने अपनी यात्रा शुरु की थी...ऐसा व्यक्ति आज कांग्रेस में... और उसने कभी कांग्रेस नहीं छोड़ी...राजीव जी की जब सरकार बनी...तो सिर्फ उस सरकार में दो लोग निकाले गये...एक प्रणब मुखर्जी और एक रामचन्द्र रथ...लेकिन इसके बावजूद उस व्यक्ति ने कांग्रेस नहीं छोड़ी और पुन: एक बार नरसिंह राव जी के शासन काल में और अबकी बार संभवत: उनके लड़के को राहुल गांधी ने टिकट दिया था...


वासिंद्र मिश्र: आपके बारे में फिर दुबारा ये चर्चा चल रही है कि मुलायम सिंह जी..हम कहें कि डेसपरेट है...उनको लगता है ये जो मौजूदा संकट है उनके सामने राजनीति का सबसे बड़ा... उसमें अगर कोई संकटमोचक की भूमिका  में रह सकता है तो अमर सिंह रह सकते हैं और वो परिवार के वो तमाम अलग अलग धड़ों के विरोध के बावजूद... वो चाहते हैं कि आप फिर उसी तरह से सक्रिय रहिए.. पार्टी के अंदर ...संगठन के अंदर.. और पार्टी ...जो एक तरह से हम कहें कि हाशिए पर पहुंच गयी है उसको दुबारा आप जिंदा करिए


अमर सिंह: - मैं आपको सच बताऊं... मुलायम सिंह जी के प्रति मेरे मन में दुख है...न तो गुस्सा है, न तो निरादर का भाव है...क्योंकि मैने समाजवादी पार्टी में 14 साल से...तन मन धन से...पार्टी की कम और मुलायम सिंह की सेवा ज्यादा की...जनेश्वर मिश्र जी ...जिनका मंगलवार को बहुत बड़ा समारोह है.... उन्होंने मुझे एक बार पूछा कि क्या तुम समाजवादी हो... मैने कहा कि मिश्र जी बिलकुल नहीं मैं तो मुलायमवादी हूं...तो जनेश्वर जी ने कहा कि तुम्हारी स्पष्टवादिता के लिए तुम्हें साधुवाद...लेकिन ये अच्छी ये बात नहीं...कि तुम समाजवादी नहीं हो और समाजवादी पार्टी के नेता हो...ये प्रासंगिक है...आज जनेश्वर जी का जन्म दिन है ...   


वासिंद्र मिश्र: आप जा भी रहे हैं उस कार्यक्रम में?


अमर सिंह: - मुझे मुलायम सिंह जी ने आमंत्रित किया है...औऱ मेरा मानना है कि जनेश्वर जी के साथ मैने काम किया है और अगर जनेश्वर जी की स्मृति में कोई सार्वजनिक कार्यक्रम हो रहा है ...और मुलायम सिंह जी ने स्वयं आमंत्रित किया है तो मेरा वहां न पहुंचना...न जाना अशिष्टता होगी...इसलिए मैं जा रहा हूं...इसमें कोई राजनीति नहीं है


वासिंद्र मिश्र:- तो इसको ब्रिज के रुप में माना जाय ...कार्यक्रम को...कि वो एक पुल का काम करेगा... आपके और समाजवादी पार्टी के बीच में जो एक खाई बनी हुई थी उसको पाटने में


अमर सिंह: - देखिए हमारे और समाजवादी पार्टी के बीच में कोई ...हमारे और मुलायम सिंह के बीच में खाई है...और हमारे और आजम खान के बीच में भी खाई रही है.. वो खाई इस बात की...वो कहते हैं न कि यशोधरा के मन की पीड़ा...कि सिद्धार्थ चले गए...और हमें कायर जान कर के चले गए...हमारी गोद के...छोटा उनका बच्चा था... तो मैथलीशरण गुप्त जी ने बड़ा अच्छा वर्णन किया है उस स्थिति का...प्रीतम को प्राणों के प्रण में ...हमें भेज देती है रण में...सखियों मुझसे कह के जाते...अगर उन्हें कोई मजबूरी थी...परिवार का दबाव था तो बुला के कह देते ...कि अमर सिंह जी...रामगोपाल का दबाव है...जनेश्वर का दबाव है...मोहन सिंह का दबाव है...रेवती रमण सिंह का दबाव है...अखिलेश का दबाव है...तुम्हारी गलती है या नहीं है...मैं क्या करूं...फंस गया हूं...तो मैं इस्तीफा दे देता...अपनी बीमारी का बहाना कर के... मैं तो जीवन और मृत्यु से लड़ कर आया था...मैं घर बैठ जाता...तो जब मुलायम सिंह जी के प्रति मै, मेरा इतना अंधा मोह था...तो मुझे प्रताड़ित करके...निष्कासित करके...फिर मैने उन्हें कहा कि...राज्यसभा ले लीजिए...सदस्यता ले लीजिए...तो उन्होने कहा कि आप सदस्यता क्यों देंगे...अगर आप दे देंगे तो फिर यहां तो बहुजन समाज पार्टी का व्यक्ति आ जाएगा...हमारी तो क्षमता है नही... तो उसके बाद फिर राज्यसभा के अध्यक्ष को लिखा गया कि हमारी सदस्यता ले ली जाय... तो मात्र उस पीड़ा से हमने सुप्रीम कोर्ट जा कर अपनी और जयाप्रदा जी की सदस्यता की रक्षा की...आज भी मैं राज्यसभा नहीं जाता...आप रिकॉर्ड देख लीजिए... राज्यसभा में मैं..राज्यसभा के.. मोह था अमिताभ बच्चन की तरह... तो मैं संबंधो का निर्वहन न करके राज्यसभा में जैसे वो ...उस तरह से जाती है जैसे पाठशाला में बालक जाता है...और बढ़ चढ़ कर के हिस्सा लेती है...मेरे लिए राज्यसभा के मायने औऱ उसकी सदस्यता के मायने भावनाओं से बढ़ कर नहीं है...वो जो हमारी वो भावना ...जब मैं स्वयं आपको दे रहा था त्यागपत्र आपने नहीं लिया औऱ मुझे निकालने के लिए पत्र लिख दिया... तो आपके निकाले नहीं निकलूंगा ...तो इसीलिए मैं सुप्रीम कोर्ट गया....तो उसके स्टे से...जो कि भारत के घोषित संविधान के प्रतिकूल एक स्टे हमको विशेष परिस्थितियों में...मुझे और जयाप्रदा जी को दिया है...सामान्यता अध्य़क्ष के कहने से सदस्यता चली जाती है...वो एक नजीर है...तो वो स्टे मैने इसलिए लिया...मैने राज्यसभा के मोह में नहीं लिया... जो व्यक्ति आपको सर्वस्व देने के लिए अपनी आहूति देने के लिए तैयार है या  कल्याण सिंह का आरोप ही लगाना था...तो मैं पत्रकार वार्ता देकर के कह देता औऱ आज मैं स्पष्ट कह रहा हूं कल्याण सिंह के घर मुझे जाना है मुझे पता भी नहीं था...मुलायम सिंह ने जी कहा कि गाड़ी में बैठिए एक जगह चलना है और वहां मैं गया तो देखा कि कल्याण सिंह जी का घर है... और कल्याण सिंह जी मिले मैने उनके चरण छुए..और बिना ये देखे चरण छुए कि पत्रकार भी हैं...बाद में हमारे ऊपर आजम खान साहब ने, सबने कमेंट किया कि ये तो चरण छूते हैं कल्याण सिंह के...आज भी कल्याण सिंह जी मिलेंगे तो मैं चरण छुउंगा... हमारे उनके वैचारिक मतभेद हों लेकिन मैं उनका आदर कैसे छोड़ दूं...हमसे बड़े हैं....भले वे सांसद न हों, मुख्यमंत्री न हों, मंत्री न हों... कल वो राज्यपाल हो जांय...परसों कुछ भी हो जांय...लेकिन कल्याण सिंह जी से जो मेरे व्यक्तिगत संबंध हैं...और राजनीतिक मतभेद है उनके विचारधारा से ...दोनों अपनी-अपनी जगह हैं....और उस समय भी मैने मुलायम सिंह जी को कहा था कि आप नदी के दो धारे हैं ...साथ चलते तो दिख सकते हैं लेकिन मिल नहीं सकते है...एक मस्जिद तोड़ने के लिए और एक मस्जिद बचाने के लिए जानी जाने वाली विचारधारा है... ये दोनों दिखायी देंगे साथ चलते हुए...लेकिन कभी मिल नहीं सकते और वही हुआ...दोनों का अलग होना पड़ा...मुलायम सिंह को भी नुकसान हुआ और आदरणीय कल्याण सिंह जी को भी


 
वासिंद्र मिश्र:- अमर सिंह जी एक बहुत ही जज्बाती सवाल है...मैं चाहता नहीं हूं कि आपके पुराने इमोशंस को मैं हर्ट करूं ... लेकिन... चूंकि चर्चा छिड़ गयी और बहुत जज्बाती बातें हो रही हैं तो  ... क्या कारण रहा कि आपके तमाम ऐसे मित्र जो बॉलीवुड के थे, इंडस्ट्री के थे...जो कि दिन रात आपके दरवाजे पर खड़े रहते थे...सॉरी टु यूज सच वर्ड...लेकिन जब उनको लगा कि आपकी पॉलिटिकल रिलेवेंस कम हो रही या आपका स्वास्थ्य खराब हो रहा है...या आपका वो लोग जिस तरीके से इस्तेमाल करते थे...अपने व्यवासायिक कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए...वो अब उतना आपकी उपयोगिता नहीं रही तो वे सारे लोग छोड़ कर चले गये जो कि सार्वजनिक मंचो से...कोई आपको कहता था कि अमर सिंह मेरे बड़े भाई हैं...कोई कहता था कि मेरे छोटे भाई हैं... ये सारे-सारे रिश्ते क्या सिर्फ और सिर्फ व्यवसायिक थे या  जब उस समय कही जाती थी बातें तब तो लगता था कि कितना इमोशंस है, सेंटीमेंट्स हैं औऱ हम आप जिस इलाके से आते हैं वहां पूरी  जिंदगी आदमी इमोशंस और सेंटीमेंट्स के दम पर ही जिंदा रहता है..आपको कैसा लगता है अब वे लोग जब आपके साथ नहीं है..या फिर आपसे मिलने की कोशिश करते हैं   


अमर सिंह: - मुझे पहले तो बहुत बुरा लगता था..और मैं सब लोगों से क्षमा चाहता हूं..अगर मैने इनके बारे में कुछ कहा...ये सब अच्छे लोग हैं...इन्होंने अपना चाल चेहरा चरित्र दिखाया और जीवन की विषमता की छलनी में छन गए...क्योंकि अगर ये विषमता नहीं आती...आपको आज मैं बताऊं कि मैने जो अपनी विल की थी...उसमें मैने अपने मरने के बाद.. अपने बच्चों और अपनी पत्नी, अपनी विधवा पत्नी की देखभाल का जिम्मा अनिल अंबानी, अशोक चतुर्वेदी और अमिताभ बच्चन के नाम में लिखी थी...और तीनों ही...मृत्यु की बात तो जाने दीजिए हमारी गिरफ्तारी के बाद जमानत में भी नहीं दिखाई दिए...फोन करने पर अनिल अम्बानी हमारा फोन नहीं लेते थे...और जब ईडी के एक जांच में पकड़े गए तो उन्होंने प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी को कह दिया कि क्लिंटन को जो पैसा भेजा गया था ये वही है...तो टी के नाएर हमसे पूछने लगे कि क्या ये सच है, मैं चुपचाप हंसने लगा...तो जीवन में बड़ा अनुभव हुआ है ...अशोक चतुर्वेदी का एक व्यक्ति आया अस्पताल में और आकर कहने लगा कि जेल से अस्पताल हम आपको भिजवाये हैं...अमिताभ बच्चन जी का सवाल है जहां तक बहुत भद्र व्यक्ति हैं...पोलिटकली करेक्ट व्यक्ति हैं...उन्होने सारे घटनाक्रमों के बावजूद चुप की शालीनता ऱखी और एकाध बार उन्होंने सार्वजनिक रुप से कहा कि अगर अमर सिंह जी नहीं होते तो सदी का ये महानायक मुंबई में टैक्सी चला रहा होता...लेकिन मैं समझता हूं कि कमजोर व्यक्ति हैं...उनके चरित्र में ये कमजोरी है...आचरण से कमजोर हैं वो... उनके ऊपर भी अगर विषम परिस्थिति आती थी तो हतास हो जाते थे... लेकिन कष्ट तो हुआ...लेकिन इस कष्ट औऱ विषमता ने ये बताया कि जीवन का असली सत्य अर्थ है...सत्ता भी नहीं है...अगर मेरे पास वकीलों को पैसा देने के लिए फीस नहीं होती...अगर मेरे पास इतनी क्षमता नहीं होती ...कि मैं कानूनी लड़ाई मैं अपने दम पर लड़ लेता...तो जिस कांग्रेस को..का उद्धार करने के लिए मैने कानूनी लड़ाई लड़ी उस कांग्रेस की एआईसीसी ने मुझे  एक रुपया एक पैसा नहीं दिया...जिस अनिल अंबानी के लिए संघर्ष करते हुए मैने मुकेश अंबानी की दुश्मनी लेते हुए कई जांचे अपने ऊपर लदवायीं उस अनिल अम्बानी ने हमारे कानूनी खर्च का एक पाई नहीं दिया...बल्कि हमारा फोन लेना भी बंद कर दिया...तो मुझे मालुम था कि आप ये प्रश्न पूछेंगे...


वासिंद्र मिश्र:- मेरा मन नहीं था कि आपको इमोशनली हर्ट करूं


अमर सिंह: - भूतकाल व्याकुल करे या भविष्य भरमाये... वर्तमान में जो जिए तो जीना आ जाए ...भूतकाल व्याकुल करता है...कि मैने ये किया..अनिल अम्बानी के लिए इतनी लड़ाई लड़ी अनायास मुकेश अंबानी से...देखो अनिल अंबानी ने मेरा फोन नहीं लिया...भूतकाल व्याकुल करे...मैने अमिताभ बच्चन के दुर्दिन में ये किया और अमिताभ बच्चन का लड़का मुसीबत में था तो अदालत से छुड़ा के लाया अभिषेक को और वो हमारे घर तक नहीं पहुंचे...बल्कि जमानत के बाद एक कार्यक्रम में आये थे दिल्ली में तो अस्पताल औपचारिकता का निर्वहन करने आ गये...भूतकाल व्याकुल करे...या भविष्य भरमाए...नवंबर में मेरा राज्यसभा खत्म होगा... अब मैं कहां से लूं ...सोनिया गांधी ने तो कांग्रेस में प्रविष्टि भी नहीं दी राज्यसभा कहां से देंगी...मुलायम सिंह से मेरा झगड़ा है...तो भूतकाल व्याकुल करे या भविष्य भरमाये...वर्तमान में जो जिए तो जीना आ जाए...मेरा वर्तमान ये है कि अभी मैं सांसद हूं...राज्यसभा का ...सुप्रीम कोर्ट की कृपा से... नवंबर में मैं नहीं रहूंगा...एक एकड़ का घर है...इससे बड़ा घर बनवा रहा हूं...अपने बच्चों के लिए...वहां चला जाऊंगा...बिना बिलंब के...बिना सीपीडब्ल्यूडी के नोटिस के...ताकि हमारे बच्चों को एहसास न हो कि हम एक बड़े घर से छोटे घर मे गये हैं...अब मुझे उनके सुख के लिए...उनकी परवरिश के लिए जीना है क्योंकि मुझे इस बात का ज्ञान हमारे इन तथाकथित मित्रों ने , बड़े भाइयों ने, छोटे भाइयों ने पार्टी के लोगों ने दिया है कि सुख के सब साथी दुख में न कोय...मेरे राम तेरा नाम...दूजा न कोय


वासिंद्र मिश्र:- बहुत बहुत धन्यवाद