धर्म बनाम वोट की सियासत

हरियाणा के गुरुद्वारों और सिख संस्थानों की देखरेख के लिए बनाई गई हरियाणा गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को लेकर उठा विवाद और फिर उससे उपजे तनाव भरे हालात के लिए जिम्मेदार कोई एक पक्ष नहीं है। अगर हम पूरे घटनाक्रम पर नज़र डालें तो इसके लिए जितनी जिम्मेदार कांग्रेस और हरियाणा सरकार है उतना ही दोषी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के साथ-साथ अकाली दल भी है।

धर्म बनाम वोट की सियासत

संजय वोहरा
संपादक, ज़ी पंजाब, हरियाणा, हिमाचल

हरियाणा के गुरुद्वारों और सिख संस्थानों की देखरेख के लिए बनाई गई हरियाणा गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को लेकर उठा विवाद और फिर उससे उपजे तनाव भरे हालात के लिए जिम्मेदार कोई एक पक्ष नहीं है। अगर हम पूरे घटनाक्रम पर नज़र डालें तो इसके लिए जितनी जिम्मेदार कांग्रेस और हरियाणा सरकार है उतना ही दोषी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के साथ-साथ अकाली दल भी है। सबसे पहले हरियाणा की कांग्रेस सरकार पर उंगली उठती है।

हरियाणा शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एचएसजीपीसी) बनाए जाने का मामला बरसों से लटका हुआ था। आखिर इसे बनाने में राज्य सरकार को दल साल का वक्त क्यों लगा। ये भी तब जबकि वहां तभी से एक ही मुख्यमंत्री राज कर रहे हैं। एचएसजीपीसी बनाने पर कोई अड़चन इस दौरान कानूनी तौर पर दिखाई नहीं दी। लेकिन 11 जुलाई को विधानसभा का ख़ास सत्र बुलाकर हरियाणा की गुरुद्वारा कमेटी बनाने का बिल फटाफट लाकर पास कर दिया गया। तब जबकि विधानसभा चुनाव में महज दो तीन महीने बचे हैं।

कांग्रेस की तरफ से दलील दी जा रही है कि एचएसजीपीसी बनाना तो उनके चुनाव घोषणा पत्र में सूबे के सिखों से किया गया वादा है जो वे पूरा कर रहे हैं। यहां सवाल यह उठता है कि क्या दस साल तक सिखों के इस वादे को क्या सरकार भूली रही और इसकी याद तब आई जब चुनाव सिर पर आ गए। ऐसे में क्यों ना माना जाए कि विधानसभा चुनाव में सिखों के वोट बटोरना ही एचएसजीपीसी के गठन का मूल मकसद है।

हरियाणा की शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की वजह से उठे विवाद ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और अकाली दल को कठघरे में ला खड़ा किया है, जो हरियाणा में सियासी रसूख रखता है। हरियाणा से चुने गए एसजीपीसी सदस्यों में से ज्यादातर अकाली पाले के हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि उन सदस्यों ने एचएसजीपीसी के गठन को रोकने के लिए बीते वर्षों के बीच कोई ठोस कदम नहीं उठाया। सवाल ये भी उठता है कि जो पंथक समागम एचएसजीपीसी के गठन के बाद ऐलान किया गया था वैसा कुछ, गठन को रोकने के लिए पहले क्यों नहीं किया गया।

एचएसजीपीसी का विरोध करने वालों की दलील है कि ये सिखों को बांटने की साजिश है और इसके पीछे कांग्रेस का हाथ है। ऐसे में सवाल उठता है कि दिल्ली, महाराष्ट्र और बिहार जैसे राज्यों में जब अलग-अलग गुरुद्वारा कमेटियां हैं तो हरियाणा की अलग कमेटी होने से सिख कैसे बंटेगे? जहां तक गुरुद्वारों का एक जैसा प्रबंध और सिस्टम अपनाए जाने की बात है तो इसी नज़रिए से बनाए गए ऑल इंडिया गुरुद्वारा एक्ट को लागू किए जाने की कोशिशें क्यों नहीं की गईं। ये काम अब तो केन्द्र में एनडीए की सरकार बनने के बाद और भी आसान है क्योंकि खुद अकाली इस सरकार का हिस्सा है। इस पर एचएसजीपीसी के गठन के तरीके को ग़ैर-कानूनी कहा जा रहा है, तब सवाल उठता है कि इस ग़ैर-कानूनी काम के खिलाफ वो पक्ष अदालत का दरवाजा क्यों नहीं खटखटाता जिसे ऐतराज़ है।

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