पर्यावरण दिवस : बढ़ता तापमान, सिकुड़ता जीवन

पर्यावरण की इन चुनौतियों से निपटने और इसके प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए प्रत्येक वर्ष पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। सवाल है कि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसे पर्यावरणीय खतरों से निपटने के लिए क्या वैश्विक स्तर पर गंभीर प्रयास हो रहे हैं।

आलोक कुमार राव
असंतुलन की स्थिति आने पर व्यवस्था बिगड़ जाती है और अव्यवस्था को समय रहते व्यवस्थित न करने पर चीजें नियंत्रण से बाहर निकल जाती हैं। यह सामान्य सी बात है जो हर तरफ लागू होती है। मनुष्य के जीवन चक्र में प्रकृति का अहम हिस्सा है। इस प्रकृति से जुड़कर ही मनुष्य अपने विकास के सोपान पर आगे बढ़ता आया है। इस विकास के क्रम में प्रकृति और पर्यावरण के नैसर्गिक स्वरूप एवं पारिस्थितिकीय को बनाए रखने में मनुष्य की ओर से दिखाई गई उदासीनता का दुष्परिणाम आज सबके सामने है। जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, प्राकृतिक आपदाएं, पारिस्थितिकीय प्रबंधन की चुनौती से कैसे निपटा जाए यह विश्व समुदाय के समक्ष एक बड़ा प्रश्न है।
पर्यावरण की इन चुनौतियों से निपटने और इसके प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए प्रत्येक वर्ष पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। सवाल है कि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसे पर्यावरणीय खतरों से निपटने के लिए क्या वैश्विक स्तर पर गंभीर प्रयास हो रहे हैं। चूंकि, पर्यावरण का मसला किसी खास देश अथवा महाद्वीप से नहीं जुड़ा है और इसे बनाने एवं बिगाड़ने में हर छोटे-बड़े देश की भूमिका है। इसलिए, पर्यावरण की प्रकृति सुरक्षित रखने में सभी को सक्रिय प्रतिबद्धता दिखानी होगी।
बीते वर्षों में ग्लोबल वार्मिंग जिस तेजी से बढ़ा है और जलवायु परिवर्तन के जो खतरे सामने आए हैं, वे चिंतित करने वाले हैं। बीते 10 मई को पृथ्वी के परिवेश में कार्बन डाइआक्साइड का स्तर 400 पीपीएम को पार कर गया। परिवेश में सीओटू का यह स्तर भविष्य में आने वाले गंभीर खतरे का संकेत है। पर्वायरण कार्यकर्ता कार्बनडाइ आक्साइड के इस स्तर को लेकर सचेत हुए हैं लेकिन वैश्विक समुदाय इसे कम करने के लिए कौन से उपाय करता है, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है।

ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन और तामपान में वृद्धि का सबसे अधिक बुरा असर पारिस्थितिकीय तंत्र और जीवन चक्र पर पड़ रहा है। टेक्सास विश्वविद्यालय की प्रोफेसर कैमिली पारमेसान ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जीवों को अपने परिवेश से सामंजस्य बिठाने में मुश्किल हो रही है। परिवेश गर्म होने से पक्षी समय से पहले अंडे दे रहे हैं।
हमें यह भी समझना होगा कि पर्यावरण को बचाए रखने की जिम्मेदारी केवल सरकारों पर नहीं है। पारिस्थितिकीय तंत्र से जुड़े हर व्यक्ति की जिम्मदारी बनती है कि वह अपने परिवेश की प्राकृतिक व्यवस्था एवं क्रम का उल्लंघन न करे। सभी को अपनी जिम्मेदारी इमानदारी से निभानी होगी। घर के पॉलिथीन एवं कचरे के निपटारे में जहां व्यक्ति की भूमिका अहम है तो खनन, वनों की कटाई, प्रदूषण और शहरीकरण में सरकारों को एहतियात बरतने की जरूरत है।
वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण वन्य जीव अपने परिवेश से विस्थापित हुए हैं। कुछ दिनों पहले जलपाइगुड़ी में चार हाथी रेल ट्रैक पर मृत पाए गए। 2003-2012 के दौरान वनों से होकर गुजरने वाली बिजली के तारों के संपर्क में आने से 318 हाथियों की मौत हो चुकी है। कहने का मतलब है कि जंगल, जमीन और जल हर तरफ मनुष्य का अतिक्रमण हुआ है जिससे पारिस्थितिकीय पर प्रतिकूल असर पड़ा है।
आज औद्योगिक विकास की होड़ के चलते दुनिया का औसत तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है। परिवेश में कार्बन डाइआक्साइड का स्तर दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। गत 23 मई को दिल्ली में तापमान 46 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया जो पिछले एक दशक में मई के महीने का सर्वाधिक तापमान था।
कहने का मतलब है कि पर्यवारण के प्रति यदि गंभीरता नहीं दिखाई गई और इसे नजरंदाज करना जारी रखा गया तो आने वाला समय भयावह हो सकता है। समय की जरूरत है कि देश विकसित एवं विकासशील की श्रेणी से ऊपर उठकर पर्यावरणीय खतरे का निदान ढूढ़ें। नहीं तो एक समय ऐसा भी आ सकता है जब हम अपनी गलतियों को सुधारने के लिए प्रतिबद्ध दिखेंगे और प्रकृति अपना विकराल रूप दिखा जाएगी।

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