सुरों के सुरीले सरताज किशोर कुमार

सुरों का सुरीला जादूगर जिसके सुरों का जादू आज भी बोलता है। गायिकी के नए आयामों को पिरोने वाला ऐसा गायक जिसकी गायिकी के सुरीले सुर अब भी लोगों के दिलोदिमाग में गूंजते है, गुदगुदाते है।

संजीव कुमार दुबे
किशोर कुमार के जन्मदिन 4 अगस्त पर
सुरों का ऐसा जादूगर जिसके सुरों का जादू आज भी बोलता है। गायिकी के नए आयामों को पिरोने वाला ऐसा गायक जिसकी गायिकी के सुरीले सुर अब भी लोगों के दिलोदिमाग में गूंजते है, गुदगुदाते है। सुरीले सुरों के सुर कुछ ऐसे कि लगता है कि गायिकी का हर हुनर बस इसमें सिमट के चला आया हो।
हरफनमौला गायक किशोर कुमार के बारे में यह कहा जाता है कि वह गाते नहीं गुदगुदाते थे। हर गीत को उसके मूड के हिसाब से गाते थे। अगर गीत में जीने की बात है, जिंदगी की बात है तो गीत में उस हिसाब से अपने गायिकी के अंदाज के जरिए जान डाल देते थे। गीत अगर गमगीन यानी गम से भरा है तो वह ऐसा गाते थे जिससे लगता था कि किशोर वह गीत गमजदा होकर गा रहे है। ऐसा लगता जैसे सुरों के प्रवाह में गम का समंदर उबल पड़ा हो।
गीत इतना छूनेवाला कि कोई सुने तो रो पड़े। किशोर के साथ जिन लोगों ने भी काम किया है वह उनके बारे में यह बताते हैं कि कई गाने की रिकॉर्डिंग के दौरान किशोर गाते-गाते इस कदर भाव-विभोर हो जाते थे जो लोग भी रिकॉर्डिंग रूम में होते थे वह भी रो पड़ते थे।
किशोर के बारे में एक बात जो बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्हें शास्त्रीय संगीत की जानकारी नहीं थी लेकिन फिर भी वह महान गायक बने जो हमेशा शीर्ष पर बना रहा। हैरानी होती है कि जिस गायक को शास्त्रीय संगीत की एबीसीडी की जानकारी नहीं हो और उसने हर सुर, हर राग, हर मूड,संगीत की जरूरी हरकतों के गानों को इस संजीदगी से गाया कि उन गानों का जादू अबतक लोगों के सर चढ़कर बोलता है, उसकी मस्ती मिजाज में खूब घुलती है।
किशोर के बारे में नामचीन संगीतकार राहुल देव बर्मन और उनके पिता सचिन देव बर्मन का मानना था कि वह किसी भी गीत को गले से नहीं दिल से गाते थे और उसमें गीत के असल मूड को इतना झंकृत कर देते थे (जान डाल देते थे) कि वह गीत जीवंत हो उठता था। देश के जो भी महान संगीतकार हुए, उनके मुताबिक किसी भी गीत को गाना इतना अहम नहीं है। बल्कि गीत के मूड को भांपकर उसके मुताबिक संगीत के साथ वैसा भाव उत्पन्न (जेनरेट) करना होता है। और यह काम गले से नहीं बल्कि दिल से होता है जिसके लिए दिमाग की जरूरत ना के बराबर होती है। किशोर गीत के मूड को पकड़कर वैसा ही सहज भाव उत्पन्न करते जिससे गीत जीवंत हो उठता।
किशोर अपने जीवन में जिस गायक से सबसे ज्यादा प्रभावित थे वह कुंदन लाल सहगल थे। कुंदन लाल सहगल के बारे में यह कहा जाता है कि उन्हें एक योगी ने गाने की कला नाभि से सिखाई थी। किशोर ने शुरूआत में उनकी गायिकी की नकल करने शुरूआत की। लेकिन आरडी और कुछ लोगों ने उन्हें समझाया कि ऐसा करके वह अपनी अलग पहचान नहीं बना पाएंगे। अगर कुछ अलग करना है तो उन्हें गायिकी की अलग अपनी शैली अपनानी होगी । किशोर ने यह बात बहुत जल्दी समझ ली और सुरों के सुरीले किशोर ने अपनी गीतों में गायिकी की ऐसी मिठास घोली कि जल्दी ही उन्होंने पूरी दुनिया को दीवाना बना डाला।
सबसे बड़ी बात तो यह रही कि किशोर ने उस वक्त मे गायिकी में अपना शानदार मकाम बनाया जब मुकेश और रफी का जलवा था। फिल्मों के ज्यादातर गीत इन्हीं दोनों गायकों को मिलते। लेकिन किशोर ने अपने हरफनमौला गायिकी से इन दोनों गायकों का भी दिल जीत लिया था। एक दौर वह भी आया जब किशोर लोकप्रियता के लिहाज से इन दोनों गायकों को छोड़कर काफी आगे निकल गए थे।
किशोर का गाया एक गीत ...हम बेवफा हर्गिज ना थे पर हम वफा कर ना सकें या फिर जब दर्द नहीं था सीने में तब खाक मजा था जीने में अबके शायद हम भी रोए सावन के महीने में । आपने इन गानों को सुना होगा तो आप महसूस करेंगे कि फिल्म में जब ये गाने फिल्माए गए है और किशोर के गाने की मैचिंग का तालमेल जबरदस्त है। मैं शायद बदनाम...को किशोर ने जिस संजीदगी से गाया है उससे ऐसा लगता है कि बस अब दुनिया खत्म होनेवाली है और वह जीवन को अलविदा कहने वाले हैं।
फिल्म को समझने और उसकी बारीकियों को समझने वाले लोग यह बताते है कि तीन फिल्म अभिनेताओं को सफलता के पायदान तक पहुंचाने में किशोर कुमार का जबदरदस्त योगदान है। यह कमाल किशोर ने सिर्फ अपने गायिकी के हुनर की बदौलत किया। यानी किशोर ने इन अभिनेताओं की फिल्मों के लिए जो गीत गाए वो इनके हिट ही नहीं बल्कि सुपर डुपर हिट बनाने में मददगार रहा। इन तीनों अभिनेताओं में से दो लोगों ने सार्वजनिक रूप से इस बात को माना भी था। पहले आप इन तीन अभिनेताओं के नाम सुनिए। इनमें से दो हमारे बीच नहीं है यानी देवानंद और राजेश खन्ना । तीसरे अभिनेता सदी के महानायक कहलाते हैं अमिताभ बच्चन।
किशोर ने देवानंद, राजेश खन्ना और अमिताभ के लिए कई फिल्मों में गाने गाए। किशोर की गायिकी का जादू ऐसा था कि सब पर उनका गाया गीत फिट होता था, लगता जैसे कलाकार वो गीत खुद गा रहा हो। फिल्म में भी लगता कि गाना किशोर नहीं ये अभिनेता गा रहे हैं। दरअसल यह बड़ी खूबी है कि एक गायक अगर किसी अभिनेता के लिए आवाज देता है तो वह फिल्म में इस तरह से लगता है कि वही गा रहा है। जब गायक मुकेश का निधन हो गया था तो राजकपूर काफी रोए थे। उन्होंने कहा कि मेरी आवाज चली गई। राजकपूर ने जिन फिल्मों का निर्माण किया उसमें से ज्यादातर गाने उनके लिए मुकेश ने ही गाए थे।
राजेश खन्ना और देवानंद ने इस बात को हमेशा माना कि किशोर के गाये गीत उनके फिल्मों के लिए जादू का काम करते हैं। जो भी गीत किशोर गाते उसमें गायिकी का ऐसा जान फूंकते कि गीत के साथ वह फिल्म को हिट कराने में भी अहम भूमिका निभाती थी। राजेश खन्ना,आरडी बर्मन और किशोर कुमार की तिकड़ी बॉलीवुड की शानदार तिकड़ी मानी जाती है। आरडी यानी राहुल देव बर्मन जिन धुनों की रचना करते, किशोर जिन गीतों को आवाज देते और राजेश खन्ना का उस गीत पर उस अमुक फिल्म में अभिनय इसका तालमेल इतना बेजोड़ था कि सबकुछ निखर उठता था। अराधना फिल्म का गीत मेरे सपनों की रानी कब आएगी या फिर फिल्म अमर प्रेम का वह गीत- चिंगारी कोई भड़के जब सावन उसे बुझाए। किशोर ने राजेश के लिए जिन फिल्मों में गाना गाया वह फिल्म कामयाबी के नए सोपान को चढ़ता और सुपर डुपर हिट होता रहा।
किशोर कुमार ने हर मूड के गाने गाए। वह हरफनमौला थे यानी गायिकी का अंदाज कुछ ऐसा था कि हर गाने को ऐसा गाते कि गाना फिल्म की जान बन जाता था।
किशोर के व्यक्तित्व के कई राज लोगों के लिए अबूझ पहेली बने रहे। उनसे जुड़े कुछ लोग उनके बारे में कहते थे वह पागल है, शराब पीते है और रात में सोने से पहले उन्हें पैसे गिनने की आदत है। लेकिन उनसे जुड़े कुछ लोग इन बातों को खारिज करते है और कहते है कि अगर वह पागल होते तो इतने महान गायक नहीं होते और इतनी संवेदनशील फिल्में भी नहीं बनाई होती।
किशोर दा सुरों के सरताज थे जादूगर थे लेकिन उनके लिए शायद ही कोई ऐसा शब्द हो जो उन्हें संपूर्ण रूप से परिभाषित कर सकें। किशोर कुमार को जानना है, थोड़ा समझना है तो उनके बारे में यह पंक्तियां पढ़ लीजिए जो उन्होंने किसी से कही थी।
"मुझे अपने कमरे में ज्यादा कुछ नहीं चाहिए। बस चारों तरफ कुछ फीट गहरा पानी हो और सोफे की जगह छोटी-छोटी संतुलित नावें, जिसे हम चप्पू से चला कर इधर-उधर ले जा सकें। चाय रखने के लिए ऊपर से टेबुल को धीरे धीरे नीचे किया जा सके ताकि हम मज़े में वहां से कप उठा चाय की चुस्कियां ले सकें।"

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