अल्झाइमर को न टालें, हो सकती है भूलने की आदत
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अल्झाइमर को न टालें, हो सकती है भूलने की आदत

छोटी छोटी बातों को भूलना आम तौर पर बहुत ही सामान्य बात होती है और कई बार इसका कारण व्यस्तता या लापरवाही होता है। लेकिन भूलने का संबंध अल्झाइमर से भी होता है इसलिए इसे टालना उचित नहीं होगा।

नई दिल्ली : छोटी छोटी बातों को भूलना आम तौर पर बहुत ही सामान्य बात होती है और कई बार इसका कारण व्यस्तता या लापरवाही होता है। लेकिन भूलने का संबंध अल्झाइमर से भी होता है इसलिए इसे टालना उचित नहीं होगा।
विम्हंस हॉस्पिटल में वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. संजय पटनायक ने कहा कि अगर अपनों का नाम, फोन डायल करने का तरीका भूल जाएं या अपने घर के अंदर एक कमरे से दूसरे कमरे में जाने का रास्ता आपको याद न रहे, तो इसे मामूली तौर पर न लें। यह बीमारी याद्दाश्त में कमी नहीं बल्कि अल्झाइमर हो सकती है, जिसके लिए किसी मनोचिकित्सक से संपर्क करना जरूरी है।
अल्झाइमर के लक्षणों के बारे में बॉम्बे अस्पताल की पूर्व मनोचिकित्सक डॉ. अनु हांडा ने बताया कि इसके मरीज दिनचर्या से जुड़ी बातों को ही भूल जाते हैं। उन्हें अचानक याद नहीं आता कि उन्होंने नाश्ता किया या नहीं, उन्होंने स्नान किया या नहीं, किसी का नंबर फोन पर डायल करना है तो कैसे करें, अपने घर की दूसरी मंजिल पर कैसे जाएं और अपने बच्चों या अपने साथी का नाम क्या है।
डॉ. टंडन के मुताबिक ‘अल्झाइमर क्यों होता है इसका वास्तविक कारण अब तक पता नहीं चल पाया है लेकिन अनुसंधान जारी है और शायद जल्द ही कुछ पता चल जाए। दूरदराज के पिछड़े इलाकों में इस बीमारी के बारे में जानकारी नहीं होने के कारण लोग भूलने की समस्या को गंभीरता से नहीं लेते। जबकि यह बीमारी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक आकलन के मुताबिक दुनिया भर में लगभग एक करोड़ 80 लाख लोग अल्जािइमर्स से पीड़ित हैं।
डॉ. टंडन बताते हैं कि इस बीमारी के मरीज पर लगातार ध्यान देना पड़ता है। वह शुरू में छोटी छोटी बातें भूलते हैं लेकिन बाद में उन्हें खुद से जुड़े जरूरी काम भी याद नहीं रहते। दवाइयों से ऐसे मरीजों के इलाज में मदद मिलती है। लेकिन इसे पूरी तरह ठीक करना अब तक तो संभव नहीं हुआ है। डा. अनु के मुताबिक, कभी मरीज को बाद में यह सोच कर खुद पर हंसी आ सकती है कि वह फोन का नंबर डायल करना कैसे भूल गया। लेकिन ऐसे लक्षण सामने आने पर मरीज को फौरन मनोचिकित्सक के पास जाना चाहिए।
क्या याद्दाश्त कम होना और अल्झाइमर एक ही सिक्के के दो पहलू हैं? इसके जवाब में डा. टंडन ने कहा कि याद्दाश्त कम होने से कहीं ज्यादा खतरनाक है अल्झाइमर। सोचिये कि इसके किसी मरीज को अगर रास्ते में अचानक महसूस हो कि घर कहां है, पता नहीं, तब उस पर क्या बीतेगी। अल्झाइमर में दिमाग के तंतुओं का आपस में संपर्क कम हो जाता है। बहुत से लोग अल्झाइमर को भी याद्दाश्त कम होना मान लेते हैं, पर यह समस्या बिल्कुल अलग है। संजय लीला भंसाली की ‘ब्लैक’ फिल्म में अमिताभ बच्चन ने एक ऐसे शिक्षक की भूमिका निभाई थी, जिसे बाद में अल्झाइमर हो जाता है और वह सबको भूल जाता है। (एजेंसी)

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