नई दिल्ली: सरकारी आंकड़े ही सरकार के दावों की थोड़ी खिलाफत कर रहे हैं. सरकार ने कहा कि घटनाएं कम हुई हैं, लेकिन 5 अगस्त से पहले की तस्वीर और उसके बाद जम्मू कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटे जाने के बाद के हालातों की तस्वीर में कुछ खास बदलाव नहीं आया है. सरकारी आंकड़े के मुताबिक हर महीने औसतन 50 पत्थरबाजी की घटनाएं दर्ज की जाती थीं, जबकि 5 अगस्त के बाद से आौसतन 55 घटनाएं प्रति महीने दर्ज की जा रही हैं.
आंकड़े बयान कर रहें हैं कुछ और ही कहानी
सदन में मंगलवार को केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने राजस्थान MP के लिखित प्रश्न का जवाब दिया. उन्होंने कहा कि घाटी में 5 अगस्त से लेकर 15 नवंबर तक 190 घटनाओं में 765 लोगो की गिरफ्तारी हुई है. वहीं 1 जनवरी से 4 अगस्त तक कुल 361 केस दर्ज किए गए थे. देखा जाए तो महीने के हिसाब से यह ज्यादा हो जाएगा. लेकिन फिर भी केंद्रीय मंत्री ने घाटी में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए सरकार के प्रयासों को सदन के सामने रखते हुए तारीफ की.
राज्यमंत्री ने गिनाए सरकार ने कितना कुछ किया
केंद्रीय राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने सरकारी पक्ष को रखते हुए कहा कि घाटी में पत्थरबाजी की घटनाओं को रोकने के लिए बहुआयामी काम किए जा रहे हैं. आंकड़ों के विपरीत बहुत हद तक पत्थरबाजों, समस्या पैदा करने वाले लोगों और उग्रवादियों पर पाबंदी कसी गई है. भीड़् की मानसिकता को प्रभावित करने वाले अलगाववादियों की पहचान कर बचाव के लिए पहले से जरुरी कदम उठाए गए हैं. इसी के तहत बचाव करते हुए पहले ही अलगाववादियों को पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत या डिटेन किया गया है. डिटेन करने का मतलब पहले ही गिरफ्तार कर लेना या हाउस अरेस्ट कर लेना.
वीडियो देखें: कश्मीर में मोदी सरकार की सफल 'बंकर नीति'
हुर्रियत नेता से लेकर मुख्यमंत्री तक किए गए गिरफ्तार
मालूम हो कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने जाने के बाद से ही घाटी में सैन्य बलों की तैनाती कर दी गई थी, ताकि किसी तरह की अप्रिय घटना से बचा जा सके. इसके अलावा तकरीबन 400 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था जो किसी राजनीतिक पार्टी तो किसी संगठन से जुड़े हुए लोगा थे. हुरियत नेताओं पर भी खास पाबंदी लगाई गई थी. जम्मू कश्मीर के पुराने मुख्यमंत्रियों, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती तक को हाउस अरेस्ट में रखा गया था. इन सभी को भारतीय संविधान के अंतर्गत CrpC के तहत गिरफ्तार किया गया था.
हालांकि, इतने सारे प्रयासों के बावजूद घाटी में हर महीने घटने वाली घटनाओं में कमी आने के बजाए थोड़ा ही सही पर ग्राफ ऊपर गया है. ऐसे में सरकार को इस मुद्दे पर और गंभीर होने होगा.