नई दिल्ली. मोदी सरकार ने जितनी जोरशोर से नागरिकता क़ानून को संसद में पास कराया और राष्ट्रपति से समर्थन भी प्राप्त कर लिया उसे अधिक जोरशोर से भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में उसका विरोध शुरू हो गया.
असम और त्रिपुरा में इस क़ानून के विरोध का ये आलम है कि सुरक्षा बलों को आंदोलन रोकने के लिए पूरा जोर लगाना पद रहा है.
सुरक्षा बलों के फ्लैग मार्च के साथ साथ कई स्थानों पर आंदोलनकारियों से झड़प की खबरें भी आ रही हैं कहीं कहीं तो बलों को गोलियां भी चलानी पड़ी हैं. कहने का मतलब है कि दोनों राज्यों में और ख़ास कर असम में स्थिति बहुत तनावपूर्ण है.
अब तक 5 राज्यों ने किया इनकार
इस दौरान तीन राज्यों से इस बिल को नकारने के समाचार भी आ गए हैं. ममता बनर्जी ने पहले ही कह दिया था कि वे नागरिकता क़ानून और एनआरसी दोनों को ही बंगाल में लागू नहीं होने देंगी.
इसके बाद बिल के पास होते ही केरल के मुख्यमंत्री ने भी इसे अपने राज्य में लागू न करने का फैसला कर लिया और फिर तुरंत पंजाब से भी यही खबर आई और मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने भी इसको लागू करने से इंकार कर दिया है.
इसके बाद आज छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने भी साफ़ कर दिया है कि वे ये क़ानून अपने प्रदेशों में लागू नहीं करेंगे.
सिर्फ गैर-भाजपाई राज्य सरकारें स्वीकार नहीं कर रही हैं ये कानून
अहम बात ये है कि जो राज्य सरकारें बिल को लागू न करने का फैसला सुना रही हैं वे इस कानून का नहीं, भाजपा-नीत केन्द्र सरकार के विरोध में ऐसा कर रही हैं.
सभी पाँचों गैरभाजपाई सरकार-नीत राज्य हैं जो इस क़ानून का विरोध यह कह कर कर रहे हैं कि यह एक धार्मिक आधार पर बना क़ानून है जो देश की गैर-साम्प्रदायिक छवि के विरुद्ध तैयार किया गया है.
अब आगे विकल्प क्या है?
नागरिकता क़ानून के विरोध में राजनीतिक दल या केंद्र-विरोधी राज्य सरकारें कुछ भी तर्क दें किन्तु अब समस्या ये है कि इन राज्यों में नागरिकता क़ानून कैसे लागू होगा. लेकिन इसके पहले ये प्रश्न भी उठता है कि क्या इन राज्यों को ऐसा करने का अधिकार है?
तो इसका जवाब ये है कि ऐसा करने का संवैधानिक अधिकार देश के किसी राज्य को नहीं है, ऐसे में विकल्प अब केन्द्र द्वारा संवैधानिक दबाव डाल कर ही इन राज्यों में ये कानून लागू कराने का शेष बचता है.
क्यों नहीं कर सकती कोई राज्य सरकार देश के किसी कानून को लागू करने से इनकार?
वास्तविक स्थिति यही है कि देश की संसद द्वारा पास किया गया क़ानून जो कि राष्ट्रपति की स्वीकृति के साथ बना है सारे देश में समानरूप से लागू होता है. इस मामले में केंद्र ने अपना मत स्पष्ट कर दिया है कि देश के प्रत्येक राज्य को इसे लागू करना ही होगा.
केंद्र सरकार के सूत्रों का कहना है कि राज्य सरकारों को नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 को लागू करने से इनकार करने का अधिकार नहीं है क्योंकि यह कानून संविधान की सातवीं अनुसूची की केंद्रीय सूची के तहत बनाया गया है.
Govt sources on five states which have said that they will not implement #CitizenshipAmendmentAct: Issue of citizenship comes under the union list by 7th schedule of the Constitution. Such amendment is applicable to all states. pic.twitter.com/yxMTVjHseI
— ANI (@ANI) December 13, 2019
संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार केंद्रीय सूची के विषयों के अंतर्गत बने क़ानून को अपनाने से कोई भी राज्य इंकार नहीं कर सकता.