सावधान: इस रोड के बाद खत्म हो जाती है दुनिया, गलती से भी चले गए अकेले तो..
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सावधान: इस रोड के बाद खत्म हो जाती है दुनिया, गलती से भी चले गए अकेले तो..

E-69 को दुनिया का सबसे आखिरी सड़क (Last Road on Earth) माना जाता है. इस सड़क के आगे अन्य कोई सड़क नहीं है. इसके आगे बर्फ ही बर्फ और समुद्र ही समुद्र दिखाई देता है.

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Last Road of the Earth: हम सभी के दिमाग में कभी न कभी यह बात जरूर आई होगी कि दुनिया का सबसे अंतिम छोर (Last Point of the World) क्या है? यानि दुनिया कहां खत्म होती है? हालांकि इस सवाल का जवाब आपको शायद ही मिल पाया होगा. तो चलिए आज हम आपको दुनिया के सबसे आखिरी सड़क (World Last Road) के बारे में बताने जा रहे हैं. माना जाता है कि इस सड़क के बाद दुनिया खत्म हो जाती है.

  1. सड़क की लंबाई है 14 किलोमीटर के करीब
  2. यहां अकेले खो जाने का बना रहता है खतरा
  3. यहां 6 महीने तक होती है रात ही रात
  4.  

E-69 सड़क को दुनिया का सबसे आखिरी सड़क माना जाता है. यह दुनिया का सबसे अंतिम छोर भी माना जाता है. बता दें कि पृथ्वी का सबसे सुदूर बिंदु उत्तरी ध्रुव (North Pole Mystery) है. यहीं पर पृथ्वी की धुरी (Axis of Earth) घूमती है. यहां नॉर्वे (Norway) देश पड़ता है. यहां से आगे जाने वाली सड़क को ही दुनिया की सबसे आखिरी सड़क कहा जाता है. इस सड़क के आगे अन्य कोई सड़क नहीं है. इसके आगे बर्फ ही बर्फ और समुद्र ही समुद्र दिखाई देता है.

इस सड़क पर अकेले जाना पूरी तरह से प्रतिबंधित

ई-69 की लंबाई 14 किलोमीटर के करीब है. आपको बता दें कि इस हाइवे पर अकेले पैदल जाना या अकेले गाड़ी चलाना पूरी तरह से प्रतिबंधित है. इस सड़क पर जाने के लिए आपको कई लोगों को साथ लाना पड़ेगा. इसके बाद ही इस सड़क पर आपको जाने की अनुमति मिलेगी. दरअसल, कई किलोमीटर तक चारों तरफ बर्फ की मोटी चादर बिछी होने की वजह से यहां खो जाने का खतरा बना रहता है. इसलिए किसी भी इंसान को इस सड़क पर अकेले नहीं जाने दिया जाता.

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छह महीने तक लगातार दिखाई नहीं देता सूरज

यह सड़क उत्तरी ध्रुव के पास है. इस वजह से सर्दियों के मौसम में यहां रात ही रात होती है. वहीं गर्मियों के मौसम में यहां सूरज कभी डूबता नहीं है. कभी-कभी तो यहां छह महीने तक लगातार सूरज दिखाई नहीं देता है और रात ही रात होती है. यहां पर सर्दियों में तापमान माइनस 43 डिग्री तक पहुंच जाता है. जबकि गर्मियों में यहां का तापमान जीरो डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है. इतना ठंडा होने और दिन-रात में इतना अंतर होने के बाद भी लोग यहां रहते हैं.

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यहां आकर लोगों को होता है अलग दुनिया का अहसास

यहां पर पहले सिर्फ मछली का कारोबार होता था. हालांकि साल 1930 के बाद इस जगह का विकास होने लगा और साल 1934 में यहां सैलानियों का स्वागत किया जाने लगा. इससे यहां के लोगों को कमाई का एक अलग जरिया मिल गया. यहां अब तमाम तरह के रेस्टोरेंट और होटल बन गए हैं. वर्तमान समय में दुनियाभर से लोग यहां घूमने आते हैं. यहां आकर लोगों को एक अलग दुनिया का अहसास होता है. इस जगह पर आकर डूबता सूरज और पोलर लाइट्स देखना बहुत रोमांचक होता है. 

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