एक स्टडी के मुताबिक भारत के किशोर दुनियाभर में 7वें सबसे सक्रिय माने गए हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से 146 देशों में 11 से 17 साल के 16 लाख लड़के-लड़कियों के बीच की गई स्टडी में यह सामने आया है.
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नई दिल्लीः विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि हम अपने किशोरों को एक मेहनकश जिंदगी देने के बजाय आलसी बनाते जा रहे हैं. इस लिहाज से संगठन ने निराशा जताई है कि तकनीक के युग में बच्चे शारीरिक श्रम से दूर हो रहे हैं और आलसी होते जा रहे हैं. WHO ने स्वास्थ्य के लिहाज से खतरे की घंटी माना है और चेतावनी दी है कि सभी देशों और खासकर दुनियाभर के अभिभावकों को इस विषय पर सचेत हो जाना चाहिए. समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह हर देश का संकट होगा. शारीरिक निष्क्रियता से किशोरों का वर्तमान और भविष्य खतरे में आ जाता है.
किस आधार पर जताई गई है संकट की आशंका
विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिए लैंसेट जर्नल ने एक स्टडी की है. स्टडी का आधार था कि किस देश के किशोर कितने सक्रिय हैं. स्टडी के मुख्य अध्ययनकर्ता डॉ. रेजिना गुटहोल्ड का कहना है कि जब हमने इस व्यापक तौर पर देखा तो चौंकाने और परेशान करने वाले आंकड़े सामने आए. उनका कहना है कि किशोरों में अगर शारीरिक गतिविधियां कम होती गईं तो भविष्य में कई नई चुनौतियां खड़ी हो जाएंगी. शारीरिक निष्क्रियता के कारण किशोरों का वर्तमान और भविष्य का स्वास्थ्य खतरे में आता जा रहा है. इसके लिए सभी देशों को तत्काल नई नीतियां बनानी होंगी. उन्होंने इसे लेकर लड़कियों पर खास ध्यान देने की जरूरत बताई. कहा कि कई देशों में लड़कियों की खेल-कूद की गतिविधियां कम हैं. ड़कियों में शारीरिक श्रम को बढ़ाने के लिए नए विकल्प तलाशने होंगे.
किस देश की कैसी है स्थिति, भारत के किशोर सातवें नंबर पर
स्टडी के आधार पर दावा किया गया है कि दुनिया में सबसे आलसी किशोर दक्षिण कोरिया के हैं, जबकि बांग्लादेश के किशोर शारीरिक रूप से सबसे ज्यादा सक्रिय रहते हैं. इन दोनों के बीच भारत के किशोर दुनियाभर में 7वें सबसे सक्रिय माने गए हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से 146 देशों में 11 से 17 साल के 16 लाख लड़के-लड़कियों के बीच की गई स्टडी में यह सामने आया है. पता चला कि दक्षिण कोरिया में सिर्फ 7 फीसदी किशोर दिनभर में एक घंटे ही शारीरिक गतिविधियां करते हैं.
भारत के 73.9 फीसदी किशोर दिनभर में एक घंटे से ज्यादा समय तक शारीरिक रूप से सक्रिय रहते हैं. इस दौरान वह कसरत, योग, साइकिलिंग, रस्सीकूद और खेलकूद की अन्य गतिविधियों में व्यस्त रहते हैं. स्टडी में यह भी कहा गया है कि बांग्लादेश और भारत में क्रिकेट जैसे खेलों के जरिए फिटनेस को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. शारीरिक सक्रियता के मामले में चौथे स्थान पर रहने वाले अमेरिकी किशोरों को आइसहॉकी, सॉकर, बास्केटबॉल और बेसबॉल जैसे खेलों में ज्यादा भागीदारी की सलाह दी गई है.
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लेकिन बांग्लादेश और भारत की लड़कियां पीछे
रिपोर्ट के आधार पर लड़कियों की सक्रियता में कमी आंकी गई है. लेकिन इसके पीछे इन दोनों देशों (भारत-बांग्लादेश) की पारंपरिक संस्कृति का भी थोड़ा असर है. दूसरी तरफ यह भी कहा गया है कि दोनों देशों में लड़कियां घरेलू कामों में जरूरत के मुताबिक श्रम कर लेती हैं.
अध्ययन में शारीरिक निष्क्रियता का कारण आधुनिक जीवन शैली और इंटरनेट पर किशोरों की बढ़ती सक्रियता को माना गया है. हालांकि शहर कल्चर बढ़ने से भारत में लड़कियां भी खेलकूद को अपने जीवन का हिस्सा बनाने लगी हैं. स्कूलों में भी खेलकूद की प्रतिस्पर्धाओं को लड़कों की प्रतियोगिता के बराबर तवज्जो दी जा रही है.
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भारत ने इस भविष्य के इस संकट को पहले ही समझ लिया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने किशोरों की सक्रियता घटने को लेकर जिस संकट की ओर इशारा किया है और नीतियां बनाने की बात कही हैं. केंद्र सरकार इसके लिए पहले से सक्रिया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते खेल दिवस के मौके पर देशभर में फिट इंडिया अभियान शुरू करने की बात कही. इसके अलावा योग दिवस के जरिये भी किशोरों-युवाओं के साथ सभी वर्गों की सक्रियता की बात की जा रही है. इसके अलावा केंद्र सरकार की ओर से शुरू किए गए खेलो इंडिया कार्यक्रम के तहत भी इस मुद्दे पर ध्यान दिया जा रहा है.