MP: यहां लगता है गधों का ऐतिहासिक मेला, हजारों नहीं लाखों में होती है बिक्री
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MP: यहां लगता है गधों का ऐतिहासिक मेला, हजारों नहीं लाखों में होती है बिक्री

दीपावली के दूसरे दिन चित्रकूट में गधों का ​मेला लगता है, जो औरंगजेब के जमाने से लगता चला आ रहा है. यहां दूर-दूर से गधों के व्यापारी गधे-खच्चर लेकर आते हैं. 

MP: यहां लगता है गधों का ऐतिहासिक मेला, हजारों नहीं लाखों में होती है बिक्री

नई दिल्लीः आपने ​मेले तो बहुत देखे और सुने होंगे, लेकिन गधों का मेला शायद ही कहीं देखा हो. जी हां, धार्मिक नगरी चित्रकूट (Chitrakoot) में गधों का ऐतिहासिक ​मेला लगता है. दीपावली के दूसरे दिन चित्रकूट में गधों का ​मेला लगता है, जो औरंगजेब के जमाने से लगता चला आ रहा है. यहां दूर-दूर से गधों के व्यापारी गधे-खच्चर लेकर आते हैं. यहां गधों-खच्चरों की बोली लगती है, लेकिन अब इस ऐतिहासिक मेले की लगातार अनदेखी किए जाने से जानवरों का यह मेला सिमटता जा रहा है.

​आज धार्मिक नगरी चित्रकूट में पशुधन की धूम है. जी हां हम बात कर रहे हैं, दीपावली के दूसरे दिन लगने वाले गधा बाजार की. जहां पर हजारों की संख्या में गधों और खच्चरो का मेला लगाता है. जिसकी बाकायदा नगर पंचायत व्यवस्था करता है. मेले में  देश के कोने कोने से गधा व्यापारी अपने पशुओं के साथ आते हैं. इस ​मेले​की परम्परा मुगल बादशाह औरंगजेब ने शुरू की थी. मूर्ति भंजक औरंगाजेब ने चित्रकूट के इसी मेले से अपनी सेना के बेड़े में गधों और खच्चरों को शामिल किया था. इसलिए इस​मेले का ऐतिहसिक महत्व भी है.

 

धार्मिक नगरी चित्रकूट मे ​दीपावली में लगने वाले गधा बाजार में आने वाले व्यापारियों को कभी घाटा तो कभी मुनाफा लगता है और ये बाजार पर निर्भर होता है. व्यापारियों की मानें तो गधों की यहा पर अच्छी खासी कीमत मिलती है ​और चित्रकूट का ​मेला सबसे अच्छा माना जाता है. चित्रकूट नगर पंचायत द्वारा हर साल दीपावली के मौके पर गधा मेले का आयोजन मंदाकिनी नदी के किनारे पडे मैदान मे किया जाता है. जिसकी एवज में गधा व्यापारियों से बकायदा ​राजस्व वसूला जाता है.

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धर्म नगरी चित्रकूट की मंदाकिनी नदी के तट पर लगने वाले ऐतिहासिक गधा मेले में कम होती गधा व्यापारियों की संख्या से अब इस मेले का अस्तित्व खतरे मे दिखाई दे रहा है. अगर गधा मेले की अनदेखी इसी तरह से की जाती रही तो यहा गधा मेला खत्म होने मे बहुत देर नहीं लगेगी.

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