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बीजिंग: अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया (US, UK & Australia) के त्रिपक्षीय रक्षा गठबंधन ऑकस (Aukus) से चीन (China) बौखला गया है. बीजिंग ने इसे गैर-जिम्मेदाराना कदम करार देते हुए कहा है कि ऑकस से क्षेत्र में केवल तनाव बढ़ेगा. दरअसल, इस गठबंधन के तहत अमेरिका न्यूक्लियर पन्नडुबी बनाने में ऑस्ट्रेलिया की मदद करेगा. ये कवायद दक्षिण चीन सागर (South China Sea) में चीन की बढ़ती दादागिरी को कम करने के लिए है. इसी बात से ड्रैगन को मिर्ची लगी हुई है.
हमारी सहयोगी वेबसाइट WION में छपी खबर के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) ने बुधवार को अमेरिका-ब्रिटेन-ऑस्ट्रेलिया (US, UK & Australia) के इस नए रक्षा गठबंधन की घोषणा की थी. तभी से चीन बौखलाया हुआ है. चीन का कहना है कि तीनों देशों का ये कदम गैर-जिम्मेदाराना है और शीत युद्ध की मानसिकता को दर्शाता है.
वहीं, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन (Scott Morrison) ने चीन की आपत्ति को खारिज करते हुए शुक्रवार को कहा कि जिस तरह चीन को अपनी रक्षा व्यवस्था के संबंध में फैसले लेने का हक है उसी तरह दूसरे देश भी अपने हितों के अनुसार निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं. उन्होंने कहा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में हालात तेजी से बदल रहे हैं और उन्हें ध्यान में रखते हुए ऑकस का गठन किया गया है.
स्कॉट मॉरिसन ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया को चीन की परमाणु पनडुब्बी क्षमता और बढ़ते सैन्य निवेश के बारे में जानकारी है. उन्होंने अप्रत्यक्ष तौर पर चीन को चेतावनी देते हुए कहा, ‘हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं अंतरराष्ट्रीय जल और आकाश हमेशा वही रहें जो वे हैं. कानून का शासन इन सभी स्थानों पर समान रूप से लागू होता है’. बता दें कि चीन विस्तारवादी आदतों के चलते दूसरे देशों की सीमाओं में घुसकर उनके इलाकों को अपना बताता आया है.
ऑकस के तहत अमेरिका और ब्रिटेन की मदद से ऑस्ट्रेलिया परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों का एक बेड़ा बनाएगा, जिसका मकसद हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता को बढ़ावा देना है. चीन अच्छे से समझता है कि तीनों देशों की ये पहल उसके लिए भविष्य में खतरा उत्पन्न कर सकती है. इसलिए वो बयानों के जरिए दबाव बनाना चाहता है. बीजिंग का कहना है कि वो इस समझौते पर करीबी नजर रखेगा. इससे क्षेत्रीय स्थिरता काफी कमजोर होगी और हथियारों की होड़ बढ़ेगी.
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