भारत-पाक में चर्चा का विषय बने रूह अफ़ज़ा की शुरुआत आखिर कैसे हुई? पूरा पढ़ें...
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भारत-पाक में चर्चा का विषय बने रूह अफ़ज़ा की शुरुआत आखिर कैसे हुई? पूरा पढ़ें...

दरअसल, रूह अफजा एक विशिष्ट यूनानी नुस्खा है, जोकि कई तरह के तत्वों से बनाया गया है. 

रूह अफ़ज़ा का फाइल फोटो...

नई दिल्‍ली : रमजान 2019 के मौके पर शीतल पेय रूह अफ़ज़ा की भारी मांग के बीच इसकी भारतीय बाजार में भारी कमी देखी जा रही है. इसके मद्देनजर पाकिस्‍तान के हमदर्द दवाखाना ने रूह अफजा की भारत में आपूर्ति करने की पेशकश की है. कंपनी ने यह प्रस्ताव पवित्र मुस्लिम महीने रमजान के दौरान गर्मी में ताजगी लाने वाले इस शरबत की कमी की मीडिया रिपोर्ट के बाद दिया है. इसके चलते रूह अफ़ज़ा का नाम एक बार फिर लोगों की जुबां पर चढ़ गया है और इसकी हर ओर चर्चा होने लगी है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर रूह अफ़ज़ा की शुरुआत कहां से हुई.

बताया जाता है कि साल 1906 में यूनानी हर्बल चिकित्सक हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने पुरानी दिल्ली में अपने क्लिनिक की स्थापना की. इसके अगले ही साल उन्होंने पुरानी दिल्ली में लाल कुआं में अपने केंद्र से रूह अफजा को इजाद कर इसकी शुरुआत की. गर्मी में शरीर को ठंडक देने वाले इस शीतल पेय पदार्थ की बाजार में काफी मांग हो चली और यह काफी चर्चित भी हो गया.

आखिर वाघा बॉर्डर से ही क्‍यों रूह-अफजा भारत भेजना चाहता है पाकिस्‍तान?

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बताया जाता है कि 1947 में भारत के विभाजन के बाद हकीम मजीद के बड़े बेटे भारत रह गए और उनका छोटा बेटा पाकिस्तान चला गया. यहां कराची में दो कमरों में एक अलग हमदर्द की शुरुआत हुई और वहां भी इसका उत्‍पादन शुरू किया गया, जिसके बाद यह पाकिस्‍तान में भी काफी अधिक चर्चित हो चला. इसके बाद वर्ष 1948 से हमदर्द कंपनी भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में उत्पाद का उत्पादन कर रही है. 

दरअसल, रूह अफजा एक विशिष्ट यूनानी नुस्खा है, जोकि कई तरह के तत्वों से बनाया गया है. यह भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में चलने वाली गर्म हवाओं यानि लू से लोगों को बचाता भी है. आमतौर पर रमजान के महीने में इफ्तार के दौरान इसकी ज्‍यादा खपत होती है और इस दौरान यह काफी डिमांड में भी रहता है. 

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