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नई दिल्ली: अब हम आपको ये बताएंगे कि चीन (China) के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) कैसे आजीवन राष्ट्रपति बने रहना चाहते हैं. इसके लिए वहां की कम्युनिस्ट पार्टी (Communist Party) के अधिवेशन में विशेष तैयारियां की जा रही हैं. अगर वो इस अधिवेशन में अपना पसंदीदा राजनैतिक प्रस्ताव पास करा लेगें तो अगले कुछ वर्षों के लिए वो दुनिया के सबसे शक्तिशाली नेता बन जाएंगे.
इस स्थिति में कम से कम चीन में तो शी जिनपिंग को कोई चुनौती नहीं दे पाएगा. ये भारत के लिए चिंता की बात होगी इसलिए हम सरल भाषा में इस पूरी खबर का विश्लेषण करेंगे. सबसे पहले आपको इस अधिवेशन के बारे में बताते हैं.
चीन में 8 नवंबर से शुरू हुआ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया का 19वां अधिवेशन 11 नवम्बर तक चलेगा. ये आयोजन दो वजहों से काफी महत्वपूर्ण है. पहला इसमें चीन के मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग के अधिकार क्षेत्र को और मजबूत किया जाएगा दूसरा इस अधिवेशन में चीन की Communist Party द्वारा एक प्रस्ताव पेश किया गया है, जिसे ऐतिहासिक प्रस्ताव (Historical Resolution) कहा जा रहा है. हम आपको इस प्रस्ताव के बारे में भी बताएंगे, लेकिन पहले आप ये समझिए कि शी जिनपिंग की शक्तियों का विस्तार दुनिया के लिए चिंताजनक क्यों हैं?
वर्ष 2018 तक चीन में ये कानून था कि वहां कोई भी नेता 10 साल से ज्यादा समय तक राष्ट्रपति नहीं बने रह सकता था. ये कानून डेंग शाओ-पिंग लेकर आए थे, जो साल 1978 से 1989 तक चीन के राष्ट्रपति थे. उनके बाद चीन में जितने भी राष्ट्रपति आए, उन्होंने इस कानून का पालन किया और अपने दूसरे कार्यकाल के बाद राष्ट्रपति का पद छोड़ दिया. लेकिन शी जिनपिंग ने वर्ष 2018 में अपना पहला कार्यकाल पूरा करते ही इस कानून को बदल दिया. और नई प्रस्तावना में ये लिखा गया कि अब अधिकतम 10 साल तक राष्ट्रपति बने रहने की शर्त समाप्त हो गई है.
यानी इस हिसाब से मौजूदा अधिवेशन में सबसे बड़ा मुद्दा यही है कि क्या 68 साल के शी जिनपिंग को चीन का आजीवन राष्ट्रपति घोषित किया जाएगा? क्योंकि वो अगले साल बतौर राष्ट्रपति अपने 10 साल पूरे करने वाले हैं. अगर ऐसा होता है तो इसमें दूसरे देशों के साथ भारत के लिए भी एक संदेश होगा. और वो संदेश ये है कि भारत को अगले कई वर्षों तक चीन के एक ऐसे राष्ट्रपति के साथ डील करना पड़ेगा, जिसकी विस्तारवाद को लेकर आक्रामक नीतियां हैं.
जिनपिंग के कार्यकाल में चीन की ज़मीन वाली भूख तेज़ी से बढ़ी है. और वर्ष 1967 के बाद पहली बार गलवान में पिछले साल हुई हिंसक झड़प भी उसी का एक नतीजा थी. इसलिए आप कह सकते हैं कि अगर शी जिनपिंग को चीन का आजीवन राष्ट्रपति घोषित किया जाता है तो LAC पर सीमा विवाद काफ़ी लम्बे समय तक बना रहेगा. चीन के इतिहास में माओ त्से तुंग Communist Party के अकेले ऐसे नेता हैं, जो 1949 से 1976 यानी अपनी मृत्यु तक चीन के राष्ट्रपति रहे. उन्होंने अपने कार्यकाल में ना सिर्फ चीन की इस पार्टी का भविष्य तय किया बल्कि पूरा देश भी चलाया..
माओ त्से तुंग ने एक बार कहा था कि Power Grows From Barrel Of A Gun. यानी सत्ता बंदूक की नली से निकलती है. अब 70 साल बाद भी चीन की ये शक्तिशारी पार्टी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग माओ त्से तुंग के इसी ध्येय वाक्य पर काम कर रहे हैं. इस समय भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में LAC पर विवाद है. वहीं चीन High Altitude Warfare में तिब्बत के लोगों की भी मदद ले रहा है और सीमा के पास Infrastructure को भी मजबूत कर रहा है. ये सारी गतिविधियां इस बात का संकेत हैं कि शी जिनपिंग आने वाले भविष्य में चीन को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं.
इस अधिवेशन का दूसरा बड़ा मुद्दा है, इसमें पास हुआ एतिहासिक रेस्योलुशन (Historical Resolution) इस प्रस्ताव से ये तय होगा कि इसी साल अपने 100 वर्ष पूरे करने वाली चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (Communist Party) का भविष्य क्या होगा? ये कैसे काम करेगी? इसके क्या उद्देश्य होंगे? और दुनिया में चीन की Communist विचारधारा का विस्तार कहां तक होगा? अब सबसे बड़ी बात ये सबकुछ शी जिनपिंग की इच्छाओ के अनुरूप तय होगा, जिससे चीन के कम्युनिस्ट शासन में तानाशाही और बढ़ जाएगी. सरल शब्दों में कहें तो चीन का मतलब होगा शी जिनपिंग और शी जिनपिंग का मतलब होगा चीन.
चीन के इतिहास में ऐसा पहले भी हो चुका है. पिछले 100 साल में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अभी तक दो बार ऐसे प्रस्ताव लाई है. पहला प्रस्ताव साल 1945 में आया था, जब इस देश में नेशनलिस्ट पार्टी (Nationalist Party) की सरकार थी. इस प्रस्ताव के चार साल बाद ही वर्ष 1949 चीन में कम्युनिस्ट शासन आ गया था. दूसरा प्रस्ताव 1981 में तत्कालीन प्रेसिडेंट डेंग शाओ-पिंग लाए थे. जिन्होंने माओ त्से तुंग की आर्थिक नीतियों को पूरी तरह बदल दिया था. ये उसी दौर की बात है, जब दुनियाभर में मेड इन चाइना (Made in China) का प्रभाव बढ़ा.
कुल मिला कर कहें तो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (Communist Party) के इतिहास में इस तरह के प्रस्ताव बहुत महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि ये ना सिर्फ चीन को ऐतिहासिक रूप से प्रभावित करते हैं बल्कि बाकी देशों पर भी इसका असर छोड़ते हैं.
पहली ताकत है- चीन की अर्थव्यवस्था
और दूसरी ताकत है- राष्ट्रवाद
लेकिन इसमें जब अर्थव्यवस्था का ताकत कमजोर पड़ने लगती है तो चीन सत्ता पर नियंत्रण के लिए आक्रामक राष्ट्रवाद को अपनाता है. और इस बार भी वो ऐसा ही कर रहा है. Communist Party की प्रस्तावना बदल कर शी जिनपिंग चीन को नकली राष्ट्रवाद की तरफ ले जाना चाहते हैं ताकि चीन में उनके विद्रोह की तमाम सम्भावनाओं को ख़त्म किया जा सके. लेकिन सच ये है कि चीन का राष्ट्रवाद की भावना और उसकी अर्थव्यवस्था दोनों ही अन्दर से खोखली है, जिसे आप कुछ आंकड़ों से समझ सकते हैं.
इंटरनेट की स्वतंत्रता के मामले में चीन के पास 100 में से केवल 10 नम्बर हैं. यानी इंटरनेट के इस्तेमाल के मामले में चीन में लोगों के पास आज़ादी नहीं है.
Human Development Index में चीन 85वें स्थान पर है.
चीन हर साल एक करोड़ 25 लाख Kiloton कार्बन उत्सर्जन वातावरण में छोड़ता है.
चीन में पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा लोगों को मौत की सज़ा सुनाई जाती है.
चीन में मीडिया को कोई स्वतंत्रता नहीं है. वहां मीडिया भी सरकार का है.
दुनिया की दूसरे सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद चीन की 50 प्रतिशत आबादी को राष्ट्रीय आय का सिर्फ़ 14.4 प्रतिशत हिस्सा ही मिलता है. जिससे वहां आर्थिक असमानता भी बढ़ती जा रही है.
हालांकि इस सबके बावजूद चीन का पूरा ध्यान विस्तारवाद पर है. अमेरिका के रक्षा विभाग की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक़ चीन ने हिमालय क्षेत्र में Fiber Optic Cable बिछा दी है, ताकि वो अपने सैनिकों के बीच संचार व्यवस्था को बेहतर कर सके. इसके अलावा चीन भारत के साथ दूसरे देशों के साथ भी सीमा पर सैनिकों की तैनाती बढ़ रहा है. इस समय 10 से ज्यादा देशों के साथ चीन का सीमा विवाद है. और वो South China Sea पर भी अपना दावा करता है. ये वो सारी बातें हैं, जो दुनिया को अस्थिरता की तरफ़ ले जा सकती हैं. चीन के कोरोना वायरस ने दुनिया को सामाजिक और आर्थिक रूप से कैसे नुकसान पहुंचाया, ये सब हम पहले ही देख चुके हैं.
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