रक्षा मंत्री की इस टिप्पणी से पाकिस्तान में एक प्रकार का 'मानसिक परमाणु विस्फोट' हो गया और वहां के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने Tweet करके, दुनिया को अहसास दिलाना चाहा, कि भारत के परमाणु हथियार सुरक्षित नहीं हैं और नरेंद्र मोदी की सरकार उसका ग़लत इस्तेमाल कर सकती है.
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जम्मू-कश्मीर 2 लाख 22 हज़ार 236 वर्ग किलोमीटर में फैला है. इसमें से आधा यानी करीब 1 लाख 20 हज़ार वर्ग किलोमीटर का इलाका पाकिस्तान और चीन के कब्ज़े में है. जबकि बाकी का हिस्सा भारत के नियंत्रण में है. हम अक्सर कश्मीर के मामले में पंडित नेहरू की भूलों की चर्चा करते हैं. लेकिन कश्मीर को समस्या बनाने में महाराजा हरि सिंह का Role भी कम नहीं था. महाराजा हरि सिंह अपने राजसी वैभव में डूबे हुए व्यक्ति थे. उन्हें शिकार करने का काफी शौक था. वो किसी भी समस्या में उलझना नहीं चाहते थे.
हरि सिंह की महात्वाकांक्षा को उस वक्त आघात लगा... जब 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान के कबाइली हमलावरों ने पाकिस्तानी सरकार की मदद से कश्मीर पर हमला कर दिया. इनके साथ पाकिस्तान की सेना भी थी. अपनी प्रजा पर हो रहे अत्याचारों को देखकर हरि सिंह मजबूर हो गए और उन्होंने भारत से सैन्य मदद मांगी और पाकिस्तान समर्थित हमलावरों से मुकाबले के लिए भारतीय सेना, कश्मीर भेजी गई. इसके बदले में हरि सिंह को विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करना पड़ा.
26 अक्टूबर 1947 को हस्ताक्षर के बाद जम्मू और कश्मीर, भारत का अभिन्न अंग बन गया. 1 जनवरी 1948 को भारत, कश्मीर विवाद का हल ढूंढने के लिए सुरक्षा परिषद में चला गया. 1 जनवरी 1949 को दोनों देशों के बीच सीज़फायर लाइन अस्तित्व में आई. यानी इस दौरान 16 महीनों तक दोनों देशों के बीच युद्ध चलता रहा. लेकिन तब तक पाकिस्तान कश्मीर के एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर चुका था. जिसे आज Pak Occupied कश्मीर यानी PoK के नाम से जाना जाता है.
वर्षों पहले जब भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को अपनी सीमा से खदेड़ दिया था. उस वक्त उनके पास मौका था, कि वो पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में घुसकर आखिरी प्रहार कर सकते थे. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. पाकिस्तानी घुसपैठिए जम्मू-कश्मीर के लेह, श्रीनगर और बड़गाम तक आ गए थे. लेकिन भारतीय सेना ने 16 महीनों के युद्ध के बाद उन्हें पीछे धकेल दिया. और जिस इलाके तक भारतीय सेना जा पहुंची थी, वही इलाका आज भारत और पाकिस्तान के बीच Line Of Control है.
इसीलिए ये मांग उठ रही है, कि अब भारत को पाकिस्तान के कब्ज़े वाला कश्मीर भी चाहिए. क्योंकि उस पर पाकिस्तान का नहीं, भारत का हक है. भारत की 2019 वाली इसी आक्रामक नीति से पाकिस्तान चिंतित है. हालांकि, उसकी परेशानी की एक दूसरी वजह भी है. और वो है, परमाणु हथियारों के इस्तेमाल को लेकर भारत की 'No First Use' वाली नीति में बदलाव के संकेत. जिसका ज़िक्र पिछले हफ्ते रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने किया था. उन्होंने कहा था, कि आज तक No First Use ही भारत की नीति रही है। लेकिन भविष्य में क्या होगा, वो परिस्थितियों पर निर्भर करता है.
रक्षा मंत्री की इस टिप्पणी से पाकिस्तान में एक प्रकार का 'मानसिक परमाणु विस्फोट' हो गया और वहां के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने Tweet करके, दुनिया को अहसास दिलाना चाहा, कि भारत के परमाणु हथियार सुरक्षित नहीं हैं और नरेंद्र मोदी की सरकार उसका ग़लत इस्तेमाल कर सकती है.
इमरान ख़ान के मुंह से ऐसी बातें अच्छी नहीं लगतीं. हमें अच्छा लगता, अगर ऐसी टिप्पणी करने से पहले वो अपने देश का इतिहास देख लेते. कुछ दिनों पहले ही इमरान ख़ान ने खुद स्वीकार किया था, कि उनकी धरती पर अभी भी 30 से 40 हज़ार आतंकवादी मौजूद हैं. यानी जिस देश के खुद के परमाणु हथियार, कभी भी और किसी भी वक्त आतंकवादियों के नियंत्रण में आ सकते हैं, वो हमें ये नहीं बता सकता, कि परमाणु हथियार कैसे रखने हैं या उनकी सुरक्षा कैसे करनी है? आज हम इमरान ख़ान को हिज्बुल से लेकर लश्कर तक, पाकिस्तान में कितने वैश्विक आतंकी संगठन मौजूद हैं, इसका भी ब्यौरा देने चाहते हैं.
एक अध्ययन के मुताबिक, पाकिस्तान में पैदा हुए आतंकवादी संगठनों की संख्या 12 है. जबकि दूसरे देशों से आकर पाकिस्तान की ज़मीन पर पलने वाले संगठनों की संख्या 32 है. इनमें जैश-ए-मोहम्म्द, लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिदीन, अल कायदा, हक्कानी नेटवर्क, तहरीक-ए-तालिबान, हरकत-उल-मुजाहिदीन, तालिबान, लश्कर-ए-झांगवी जैसे संगठन शामिल हैं.
सुरक्षा परिषद की लिस्ट में प्रतिबंधित आतंकवादियों और आतंकवादी संगठनों की संख्या के मामले में इराक और अफगानिस्तान के बाद पाकिस्तान का स्थान आता है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने जिन पाकिस्तानी नागरिकों को आतंकवादी घोषित कर रखा है, उनकी संख्या 146 हो गई है. इस सूची में हाफिज़ सईद और मसूद अज़हर जैसे आतंकवादी हैं.
और ये सिर्फ दो नाम नहीं हैं. सुरक्षा परिषद के मुताबिक, कम से कम 34 आतंकवादी ऐसे हैं, जो पाकिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करते हैं. इसमें दाऊद इब्राहिम और ज़की-उर-रहमान लखवी जैसे आतंकी भी शामिल हैं.
भारत का तो नहीं पता, लेकिन पाकिस्तान को अभी से सावधान हो जाना चाहिए. इससे पहले की उसके परमाणु हथियारों पर आतंकवादी संगठन अपना कब्ज़ा कर लें. वैसे ये हथियार कितने टिकाऊ हैं, कहना मुश्किल है. क्योंकि, वो चोरी के सामान से बनाए गए हैं.
मई 1998 में भारत के परमाणु परीक्षण के 10 दिनों के बाद पाकिस्तान ने चोरी के सामान को इकट्ठा करके बनाए गए परमाणु बम का परीक्षण किया. पाकिस्तान के वैज्ञानिक और खुफिया एजेंसी ISI के जासूस रह चुके अब्दुल कादिर खान ने 1998 के बाद Netherlands से चुराई गई तकनीक को नॉर्थ कोरिया, लीबिया और इराक जैसे देशों को बेचना शुरू कर दिया.
अल कायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी संगठन भी कादिर खान के ज़रिए परमाणु बम बनाने की तकनीक हासिल करने की कोशिश करते रहे हैं. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भारत के परमाणु हथियारों को विश्व के लिए ख़तरा बता रहे हैं. लेकिन खुद अपनी धरती पर मौजूद आतंकवादियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहे. शायद इसलिए, क्योंकि वो अपने सेना प्रमुख को नाराज़ नहीं करना चाहते. मेरे हाथ में इस वक्त इमरान ख़ान द्वारा लिखी गई चिट्ठी है. ये चिट्ठी उन्होंने आज ही लिखी है. जिसमें आदेश दिया गया है, कि जनरल क़मर जावेद बाजवा अगले तीन वर्षों तक पाकिस्तान के सेना प्रमुख बने रहेंगे.
जम्मू-कश्मीर के नाम पर पाकिस्तान, जेहाद की धमकी तो देता है. लेकिन, वो ये याद नहीं रखता, कि अब जेहाद के नाम पर खून खराबा करने वाले भी पाकिस्तान की नीयत समझ चुके हैं. आगे बढ़ने से पहले आपको Manzoor Pashteen की बात सुननी चाहिए. ये पाकिस्तान में रहने वाले पश्तूनों के हक की आवाज़ उठाते हैं. और बिना किसी खौफ के आरोप लगाते हैं, कि पाकिस्तान की सेना आतंकवाद को बढ़ावा देती है.