लैंडफिल साइट्स की तस्वीरें देखकर आप ज़रूर सोचते होंगे कि हमारे घरों के निकला कचरा कैसे पहाड़ बन गया है.
रिसर्च के दौरान उदित को जवाब मिला की कचरे के पहाड़ का रूप देने में कांच की बोतलों की सबसे ज्यादा भूमिका होती है. उन्होंने पाया कि कचरे में इसका भार भी ज्यादा होता है और ये लाखों साल तक डिकम्पोज़ड भी नहीं होती. उदित ने जब अपने घर पर कांच की बोलतों को जमा होते हुए देखा तो सोचा कि आख़िर इसका क्या होगा...क्योंकि अगर ये बोतलें यूं ही लैंडफिल साइट्स में जाती रहीं तो प्लास्टिक की तरह ये भी पर्यावरण के लिए समस्या बन जाएगीं.
उदित सिंघल के सामने कांच की बोतलों को रिसाइकल करने की चुनौती थी. उदित की ये खोज ख़त्म हुई न्यूज़ीलैंड में, .लेकिन एक बच्चे को कांच की बोलतें रिसाइकल करने में इतनी रूचि क्यों है ये न्यूज़ीलैंड की कंपनी समझ नहीं पा रही थी और ये मशीन खरीदना उदित के परिवार के बजट के बाहर की बात थी, तो उदित ने न्यूज़ीलैंड दूतावास से संपर्क किया और दूतावास में मशीन भारत लाने में उनकी पूरी मदद कि.
उदित इस मशीन के ज़रिये कांच की बोतलों को रेत में तब्दील कर देते हैं. उदित ने पहले अपने घर और आस-पास के लोगों से कांच की बोतलें लेकर उन्हें रेत बनाना शुरू किया और अब उन्होंने अपनी एक वेबसाइट तैयार की है जहां लोग ये अपना पता और नंबर दे सकते हैं और उदित वहां से बोतलें लेकर उन्हें रेत में बदल देंगे.
उदित ने कहा, ''आप अपना नाम, नंबर और लोकेशन इस वेबसाइट पर दे दीजिये. मुझे इसका नोटिफिकेशन मिल जाएगा और हम एक या दो दिन में आपसे बोतलें ले लेंगे.
ख़ास बात ये है कि ये रेत नदियों से निकलने वाले रेत से बेहतर है. क्योंकि इसमें सिलिका की मात्रा अधिक है जिससे इसकी पकड़ ज्यादा मज़बूत हो जाती है और इसको सुखने में भी बहुत कम वक़्त लगता है. अगर उदित के क़दम को बढ़ावा मिलता है तो न सिर्फ़ कांच की बोतलें रिसाइकल होंगी बल्कि नदियां भी सुरक्षित हो जाएंगी क्योंकि तब लोग इमारत बनाने के लिए नदियों से निकलने वाले रेत की जगह बोतलों से बने रेत का इस्तेमाल करेंगे.
वहीं, इस मामले पर पर्यावरणविद पंकज सरन का कहना है कि कांच की बोतलें भी उतनी ही बड़ी समस्या हैं जितनी कि प्लास्टिक, इस समस्या का हल ढूंढना बेहद ज़रूरी है.
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