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जानिए 1857 के विद्रोह से जुड़ी यह अनसुनी कहानी, जब MP के पिंडरा गांव ने रचा था इतिहास

1947 में रघुवंश प्रताप की जागीर थी जो खुद अंग्रेजों के खिलाफ थे. 1857 में बिहार से रणमत सिंह ने क्रांतिकारी कुंवर सिंह और उनके छोटे भाई अमर सिंह को बुलाया. वो अपनी पूरी तैयारी के साथ गांव में आए. 

सतना जिले का भी रहा है योगदान

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सतना जिले का भी रहा है योगदान

1857 में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति में मध्य प्रदेश के सतना जिले का भी खास योगदान है. मैहर नागौद, चित्रकूट, जसो बरौंधा कोठी और पिंडरा के हजारों लोगों ने न केवल अंग्रेजों से मुठभेड़ की बल्कि उन्हें हार का स्वाद भी चखाया. 1857 की क्रांति में तत्कालीन बरौंधा राज्य के पिंडरा का योगदान सर्वाधिक गौरवपूर्ण और रोमांचक है. इस गांव के लोगों की बहादुरी और देशप्रेम लोगों के लिए मिसाल है.

 

इतिहास में नहीं मिली जगह

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इतिहास में नहीं मिली जगह

लेकिन लापरवाही के चलते पिंडरा के करीब 150 शहीदों की शौर्य गाथा इतिहास में आजतक सही जगह नहीं मिली. सतना जिले में पिंडरा गांव की आबादी 1857 में करीब चार हजार थी जो आज बढ़कर करीब 10 हजार हो गई है. 1947 में रघुवंश प्रताप की जागीर थी जो खुद अंग्रेजों के खिलाफ थे. 1857 में बिहार से रणमत सिंह ने क्रांतिकारी कुंवर सिंह और उनके छोटे भाई अमर सिंह को बुलाया. वो अपनी पूरी तैयारी के साथ गांव में आए. इसके बाद पिंडरा गांव के लोगों में जागृति उत्पन्न हुई और गांव मे क्रांतिकारी दल का गठन किया गया. अमर सिंह के नेतृत्व में उन्हें छापामार युध्द का प्रशिक्षण दिया गया. इसके बाद अंग्रेजों से युद्ध किया गया. 

अंग्रेजों ने दी यातना

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अंग्रेजों ने दी यातना

इसमें कई लोग मारे गए तो कुछ को जिंदा पकड़ लिया गया. जिन्हें जिंदा पकड़ा गया उन्हें पेड़ में टांगकर यातना देकर मारा गया. इस घटना के बाद अंग्रेजों की इलाहाबाद और बांदा में अंग्रेजो ने दवाब बनाने के लिए पिंडरा गांव को घेर लिया तभी क्रांतिकारी दल ने पयस्वनी नदी को पार कर अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया जिसमें कई अंग्रेज सैनिक मारे गए.

क्रांतिकारी दलों में फैला आक्रोश

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क्रांतिकारी दलों में फैला आक्रोश

दूसरे दिन अंग्रेज तोप लेकर गांव पर हमला बोला. इस घटना के बाद गांव के क्रांतिकारी दल में आक्रोश फैल गया और उन्होंने छापामार युध्द और तेज कर दिया. इसके बाद अंग्रेजों की सेना ने इलाहाबाद से सेना बुलाकर गांव में भीषण गोलाबारी की. इस गोलीबारी में सैकड़ों स्त्री, पुरुष और बच्चे मारे गए जिनके नाम आज भी कोई नहीं जानते. इस लड़ाई में 135 क्रन्तिकारियों के नाम ही खोजे जा सके हैं.

बहादुरों ने नहीं मानी हार

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बहादुरों ने नहीं मानी हार

इतना ही नहीं कुछ दिनों बाद आंग्रेजो ने गांव में फिर हमला बोला और पूरे गांव को आग के हवाले कर दिया. इसके बाद भी गांव के बहादुरों ने हार नही मानी और 12 अलग अलग मोर्चे में तैनात होकर अंग्रेजों से मुठभेड़ की तैयारी करते रहे आज यही 12 मोर्चे 12 टोले कहलाते हैं. 

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क्रन्तिकारियों के नेता ठाकुर रणमत सिंह, कुंवर सिंह, अमर सिंह जसो होते हुए अजयगढ में अंग्रेजी सेना को परास्त करते हुए नौगांव छावनी को तहस नहस कर दिया. इसके बाद चित्रकूट के रास्ते कोठी वापस लौटने की योजना बना रहे थे तभी अंग्रेजी सेना ने उनका पीछा शुरू किया. ठाकुर रणमत सिंह ने पिंडरा गांव में अपने क्रांतिकारी दल को पयस्वनी नदी के किनारे अंग्रेजी सेना को उलझने और रोकने के लिए बोल रीवा निकल गए.

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इधर अंग्रेजों की सेना के ठीक निशाने पर आते ही क्रांतिकारी दल ने उन पर आक्रमण कर दिया इस लड़ाई में कई अंग्रेज सैनिक मारे गए. इस लड़ाई में 38 क्रांतिकारी शहीदों के नाम ही प्राप्त हो सके है. इस छापामार युद्ध में पराजय से शर्मिंदा होकर जनरल लुगार्ड हीन भावना से ग्रस्त होकर इस्तीफा देकर लंदन भाग गया था. हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में कई ऐसे नाम हैं जिन्हें कोई नहीं जानता लेकिन उनका देश को आजाद कराने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. 

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