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'राजनीति की सुषमा', सबसे कम उम्र में बनीं मंत्री

हरियाणा के अंबाला से राजनीतिक सफर शुरू करने वाली सुषमा स्वराज का बुधवार देर रात निधन हो गया है. दिल्ली के मुख्यमंत्री से लेकर मध्यप्रदेश के विदिशा की सांसद रह चुकी सुषमा स्वराज का राजनीतिक सफर काफी खास रहा है.

आपातकाल में शुरू की थी राजनीति की शुरुआत

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आपातकाल में शुरू की थी राजनीति की शुरुआत

सुषमा स्वराज ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत आपातकाल के दौरान की थी. भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से जब 1975 से 1977 तक आपातकाल की घोषणा की गई, उसी के कुछ दिनों बाद सुषमा ने राजनीति में कदम रखा. हालांकि वह पूरी तरह से राजनीति में तब आईं जब 1977 में वह हरियाणा से विधायक चुनी गईं. 

सबसे कम उम्र में बनीं मंत्री

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सबसे कम उम्र में बनीं मंत्री

हरियाणा से विधायक चुने जाने के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री चौधरी देवी लाल ने उन्हें श्रम मंत्री का कार्यभार सौंपा और सुषमा सबसे कम उम्र में मंत्री बनने का रिकॉर्ड अपने नाम कर पाईं. 

सबसे कम उम्र में बनीं प्रदेश अध्यक्ष

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सबसे कम उम्र में बनीं प्रदेश अध्यक्ष

हरियाणा की राजनीति में सक्रिय होने के दौरान सुषमा स्वराज को बीजेपी ने प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया. उनके नाम हरियाणा भाजपा की सबसे कम उम्र की अध्यक्ष बनने का रिकॉर्ड भी है.

1990 में संसद पहुंचीं

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1990 में संसद पहुंचीं

हरियाणा की राजनीति में सक्रियता दिखाने के बाद सुषमा स्वराज ने केंद्रीय राजनीति में कदम रखा और 1990 में हुए चुनावों में जीतकर सांसद बनीं और पहली बार संसद पहुंची. 1996 में जब अटल बिहारी वाजपेयी मुख्यमंत्री बनें तो उन्होंने सुषमा स्वराज को केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय का कार्यभार सौंपा, हालांकि सरकार 13 दिनों में गिर गई और सुषमा को इस्तीफा देना पड़ा. 

 

सोनिया के खिलाफ लड़ा था चुनाव

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सोनिया के खिलाफ लड़ा था चुनाव

केंद्रीय राजनीति में लंबा समय तय करने के बाद बीजेपी ने सुषमा को कांग्रेस की कद्दावर नेता सोनिया गांधी के खिलाफ मैदान में उतारा. 1999 में हुए लोकसभा चुनावों में सुषमा स्वराज बेल्लारी से सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ी, लेकिन जीत नहीं पाई. हार के बावजूद सुषमा स्वराज का आत्मविश्वास कम नहीं हुआ. कुछ ही वक्त के बाद बीजेपी ने सुषमा को राज्यसभा का सांसद बनाया. राज्यसभा में कार्यभार सांभलने के दौरान ही एक बार फिर 2000 में अटल बिहारी बाजपेयी केंद्र की सत्ता में लौट और उन्हें दोबारा सूचना प्रसारण मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया. 

2009 में थी प्रधानमंत्री पद की दावेदार

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2009 में थी प्रधानमंत्री पद की दावेदार

2004 में भाजपा की सरकर चली गई लेकिन इस दौरान सुषमा स्वराज का कद राष्ट्रीय नेताओं में काफी बढ़ चुका था. 2009 के चुनाव में वह भाजपा की प्रधानमंत्री पद की दावेदार बनीं. लेकिन कांग्रेस के दोबारा सत्ता में आने से वह नेता प्रतिपक्ष बनीं. 2014 तक नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद 2014 में जब एनडीए की सरकार पूर्ण बहुमत के साथ आई तो सुषमा स्वराज विदेश मंत्री बनीं. बतौर विदेश मंत्री उन्होंने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन ऐसे किया कि उन्हें अब तक का सबसे सफल विदेश मंत्री माना जाता है.

 

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