Hindi Cinema Director M Sadiq: भारतीय सिनेमा के इतिहास में ऐसे कई अनकहे किस्से दबे हैं, जो बताते हैं कि फिल्मी दुनिया की चकाचौंध के पीछे कितना जोखिम छिपा है. एक फिल्म को बनाने में सिर्फ कलाकारों का योगदान ही नहीं, कैमरे के पीछे डायरेक्टर-प्रोड्यूसर सब कुछ दांव पर लगाकर फिल्म को बनाते हैं, लेकिन कब एक दांव उल्टा पड़े और सक्सेस अर्श से फर्श पर पहुंचा दे ये कोई नहीं जानता. हिंदी सिनेमा के एक दिग्गज निर्देशक के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था.
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हिंदी सिनेमा में ऐसे चुनिंदा ही डायरेक्टर ही रहे, जिन्होंने अपनी फिल्मों से दर्शकों और बड़े पर्दे पर अमिट छाप छोड़ी, जिनकी फिल्मों को दशकों तक याद रख गया या आज भी किया जाता है. एक ऐसे ही निर्देशक 40-50 और 60 के दशक में भी थे,जिन्होंने एक से बढ़कर एक क्लासिक मूवीज बनाई. मगर एक फ्लॉप फिल्म ने उनकी पूरी जिंदगी बदलकर रख दी. इस फिल्म ने उनको ऐसा बर्बाद किया कि वे कर्ज में डूब गए, जिसके लिए उनको अपना घर और सामान तक बेचना पड़ा और आखिरी फिल्म बनाने से पहले वे दुनिया छोड़ गए.
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भारतीय सिनेमा की दुनिया जितनी चमकदार दिखती है, उतनी ही जोखिम भरी भी है. सफलता और असफलता के इसी खेल में कभी ऊंचाई पर पहुंचने वाले कई डायरेक्टरों को फर्श पर भी आना पड़ा. ये कहानी है मशहूर डायरेक्टर एम सादिक (M. Sadiq) की, जिन्होंने अपने दौर में कई शानदार फिल्में दीं. उनके नाम पर कई ब्लॉकबस्टर जुड़ी हैं. लेकिन एक वक्त ऐसा आया जब पाली हिल में रहने वाले इस डायरेक्टर को अपना आलीशान बंगला और फर्नीचर तक बेचना पड़ा. कभी लोगों के बीच पॉपुलर रहे सादिक अचानक कर्ज में डूब गए थे.
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ये वही डायरेक्टर हैं, जिन्होंने गुरु दत्त के साथ ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘चौदहवीं का चांद’ बनाई थी. हाल ही में फिल्ममेकर महेश भट्ट ने अपनी बेटी पूजा भट्ट के साथ बातचीत में एम सादिक के उस मुश्किल वक्त को याद किया. उन्होंने बताया कि उनके घर के सामने एम सादिक का दो मंजिला बंगला था. एक दिन वहां अफरा-तफरी मची हुई थी. एम सादिक बहुत उदास कुर्सी पर बैठे थे, जबकि उनके घर का सारा फर्नीचर बगीचे में नीलामी के लिए रखा जा रहा था. उनकी पूरी संपत्ति जब्त कर ली गई थी, क्योंकि एक फिल्म की असफलता ने उन्हें कर्ज में डुबो दिया था.
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वो फिल्म थी 1963 में आई ‘ताज महल’, जो अपने समय की सबसे बड़ी और मेगाबज फिल्मों में से एक थी. भारी बजट और शानदार सेट होने के बावजूद ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह असफल रही. प्रदीप कुमार, बीना राय, वीना, रहमान, जीवन, जबीन जलील जैसे कलाकार नजर आए थे. महेश भट्ट ने आगे बताया कि जब वे उस घटना को देख रहे थे, उनकी मां ने उन्हें डांटा और कहा कि किसी की परेशानी का तमाशा मत देखो. उनकी मां ने उन्हें सादिक के बेटे महमूद के साथ खेलने को कहा ताकि माहौल थोड़ा नॉर्मल हो सके और उनको भी अच्छा लगे.
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हालांकि, इतना सब होने के बाद भी एम सादिक ने कभी हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने फिर से सिनेमा में वापसी की और ‘चौदहवीं का चांद’ जैसी फिल्म बनाकर अपना सम्मान और पहचान वापस हासिल की. आगे चलकर वे पाकिस्तान शिफ्ट हो गए. उनकी आखिरी फिल्म ‘बहारों फूल बरसाओ’ थी, जो अधूरी रह गई, क्योंकि साल 1971 में उनका निधन हो गया. एम सादिक का सफर बताता है कि सिनेमा में सफलता के साथ असफलता का जोखिम हमेशा बना रहता है, लेकिन आज भी उनकी फिल्मों को खूब पसंद किया जाता है और देखा जाता है.
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