अफ्रीका धीरे-धीरे जियोलॉजिकल बदलाव से गुजर रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह है टेक्टोनिक ताकतें, जो महाद्वीप को भी आहिस्ता-आहिस्ता अलग कर रही हैं. ईस्ट अफ्रीकन रिफ्ट सिस्टम के साथ होने वाली हलचलों के कारण यह प्रोसेस अफ्रीका को दो हिस्सों में बांट रही है. रिसर्चर के मुताबिक, लाखों सालों में एक नए महासागर के निर्माण की वजह से अफ्रीका आखिरकार दो अलग-अलग भूभागों में विभाजित हो सकता है. यह चल रही टेक्टोनिक एक्शन ग्रह के प्राचीन बदलावों को भी दर्शाती है, जो फ्यूचर में अफ्रीकी नजरिए को नया आकार देना जारी रखती है.
चूंकि, कॉन्टिनेंट के दो बड़े हिस्से लगातार अलग होते जा रहे हैं, इसलिए पानी का एक नया स्रोत बन सकता है, जो संभवतः भविष्य में युगांडा और जाम्बिया जैसे देशों को समुद्र तट प्रदान करेगा पूर्वी अफ्रीकी दरार, जो 2005 में इथियोपिया के रेगिस्तान में 35 मील लंबी दरार के रूप में दिखाई दी थी, इस प्रोसेस का पहला संकेत है. जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में छपी भूकंपीय डेटा से पता चलता है कि दरार का निर्माण टेक्टोनिक गतिविधियों की वजह से होता है, जो समुद्री दरार क्षेत्रों में होने वाली एक्टिविटीज के समान है. यह दरार तीन टेक्टोनिक प्लेटों की सीमा को चिह्नित करती है, जिनमेंअफ्रीकी न्युबियन, अफ्रीकी सोमाली और अरब प्लेटें हैं, जो धीरे-धीरे एक-दूसरे से दूर हो रही हैं.
लीड्स यूनिवर्सिटी में डॉक्टरेट के स्टूडेंट क्रिस्टोफर मूर ने कहा, 'यह पृथ्वी पर एकमात्र जगह है, जहां आप देख सकते हैं कि कैसे एक कॉन्टिनेंटल रिफ्ट एक महासागरीय दरार में डेवलेप होती है.' इसी तरह की टेक्टोनिक हलचलें लाल सागर और अदन की खाड़ी के निर्माण के लिए जिम्मेदार हैं, जो पूर्वी अफ्रीका को पश्चिमी एशिया से अलग करती हैं.
अफ्रीका के दो कॉन्टिनेंट में बंटने की प्रक्रिया जियोलॉजिकल घटना के कारण है, जिसे महाद्वीपीय दरार के रूप में जाना जाता है. यह प्रोसेस पूर्वी अफ्रीकी दरार प्रणाली (EARS) के साथ हो रही है, जो एक टेक्टोनिक प्लेट सीमा है. जहां अफ्रीकी प्लेट को अलग किया जा रहा है. पूर्वी अफ्रीकी दरार महाद्वीप को बांट रही है, जिसमें न्युबियन और सोमालियाई जैसी टेक्टोनिक प्लेटें अलग हो रही हैं. 5-10 मिलियन सालों में यह एक नया महासागर बनाएगा. और पूर्वी अफ्रीका के भूगोल और ट्रेड रूट को नया रूप देगा, और मौके और चुनौतियां दोनों पेश करेगा.
भौगोलिक परिवर्तन ( Geographical Changes): सोमालिया, केन्या और तंजानिया जैसे नए टेरिटरिज अफ्रीका से अलग हो जाएंगे. एक नए ओसियन का निर्माण होगा यानी नव निर्मित स्थान में छठा महासागर बनेगा. यह सीमाओं को फिर से डिफाइन करेगा, जिसके चलते युगांडा और जाम्बिया जैसे देशों को तटरेखाएं ( coastlines ) मिल सकती हैं.
कोस्टल एरिया तक पहुंचने के लिए और लैंडलोक्ड नेशन्स से इंटरनेशनल बिजनेस को बढ़ावा मिल सकता है. साथ ही, नए शिपिंग रूट ग्लोबल कॉमर्स को बदल देंगे. तटीय शहरों को बढ़ते समुद्री स्तर और बुनियादी ढांचे में बदलाव के अनुकूल होने की जरूरत होगी.
भूमि अस्थिरता और तटीय परिवर्तनों की वजह से माइग्रेशन. राष्ट्रों द्वारा रणनीतिक तटीय क्षेत्रों को प्राप्त करने या खोने के कारण जियोपॉलिटिकल बदलाव. सरकारों को आपदा प्रबंधन और बुनियादी ढांचे के डवेलेप के लिए तैयार रहना चाहिए.
प्लेट टेक्टोनिक्स के आने और अलग-अलग टकरावों से पहले, पैंजिया एक सुपरकॉन्टिनेंट था. आइए पैंजिया, इसके निर्माण और जियोग्राफी और पैंजिया को तोड़ने में टेक्टोनिक की क्या संबंध है इसके बारे में जानते हैं.
डेवोनियन काल (419.2 से 358.9 मिलियन साल पहले) तक पैंजिया के भूभागों को एकत्रित करने की प्रक्रिया अच्छी तरह से चल रही थी, जब लॉरेंटिया (उत्तरी अमेरिका का स्थिर आंतरिक भाग) और बाल्टिका (पूर्वी यूरोप का स्थिर आंतरिक भाग) के क्रेटन छोटे माइक्रोक कॉन्टिनेंट्स से टकराकर यूरामेरिका ( Euramerica ) का निर्माण कर रहे थे. पर्मियन काल (298.9 से 252.2 मिलियन वर्ष पूर्व) की शुरुआत तक, गोंडवाना (दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, भारत और अन्य जैसे आधुनिक महाद्वीपों का अग्रदूत) की उत्तरी तटरेखा यूरेमेरिका के दक्षिणी भाग से जुड़ गई. जब प्रारंभिक पर्मियन के दौरान साइबेरिया के अंगारन क्रेटन इस भूभाग में विलीन हो गए, तो पैंजिया का निर्माण पूरा हो गया.
पैंजिया पर वेगेनर की शुरुआती परिकल्पना ने 1960 के दशक में प्लेट टेक्टोनिक्स के सिद्धांत के डेवलेप के लिए किया गया था. वेगेनर ने दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के समुद्र तटों के बीच समानताएं देखीं, यह सुझाव देते हुए कि ये महाद्वीप कभी एक ही भूभाग का हिस्सा थे जो धीरे-धीरे अलग हो गए. हालांकि, 1930 के दशक में भूविज्ञानी अलेक्जेंडर एल डू टॉइट ने दो सुपरकॉन्टिनेंट के मौजूदगी का प्रस्ताव देकर वेगेनर के काम का विस्तार किया. उत्तर में लॉरेशिया और दक्षिण में गोंडवाना.
अफ्रीकी दरार सिस्टम्स मुख्य रूप से पूर्वी अफ्रीकी दरार प्रणाली (EARS) अपसारी प्लेट सीमाओं से जुड़ी टेक्टोनिक प्रक्रियाओं के कारण बनती हैं. इस क्षेत्र में पृथ्वी के स्थलमंडल ( lithosphere ) की गति महाद्वीप की स्थलाकृति ( topography ) और भूवैज्ञानिक विशेषताओं को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
टेक्टोनिक प्लेट, जिसे लिथोस्फेरिक प्लेट के रूप में भी जाना जाता है. यह ठोस चट्टान का एक विशाल आकार का स्लैब है, जो आमतौर पर कॉन्टिनेंटल और ओसियंनिक लिथोस्फीयर दोनों से बना होता है. इन प्लेटों का आकार काफी अलग-अलग हो सकता है, जो सैकड़ों से लेकर हज़ारों किलोमीटर तक हो सकता है. सबसे बड़ी प्लेटों के उदाहरणों में प्रशांत और अंटार्कटिक प्लेट शामिल हैं. प्लेटों की मोटाई भी काफी भिन्न होती है, यंग ओसियनिक लिथोस्फीयर के लिए 15 किमी से कम से लेकर एनसियंट कॉन्टिनेंटल लिथोस्फीयर के लिए 200 किमी या उससे ज्यादा, जैसे कि उत्तर और दक्षिण अमेरिका के आंतरिक क्षेत्र.
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