एंगस 1939 में स्कॉटलैंड के टेपोर्ट में पैदा हुए. 27 साल की उम्र तक वह अपने पिता की मछली-चिप्स की दुकान पर काम करते थे. लेकिन उनका वजन इतना बढ़ गया कि उन्हें स्वास्थ्य समस्याएं होने लगीं. जून 1965 में उन्होंने स्कॉटलैंड के डंडी रॉयल इन्फर्मरी में खुद को भर्ती कराया. शुरू में यह छोटा उपवास था, लेकिन एंगस ने इसे 382 दिन तक बढ़ा दिया.
एंगस को उपवास के दौरान ठोस भोजन खाने की इजाजत नहीं थी. वह केवल विटामिन, इलेक्ट्रोलाइट्स, थोड़ा यीस्ट, ब्लैक कॉफी, चाय और सोडा वाटर लेते थे. उनकी कैलोरी लगभग शून्य थी. हर महीने वह करीब 22 पाउंड (10 किलो) वजन घटाते थे. डॉक्टर उनकी निगरानी करते थे. वह अस्पताल से आ-जा सकते थे, लेकिन खाने का सख्त नियम था.
उपवास के कारण एंगस को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी. वह अपने पिता की दुकान पर नहीं जा सकते थे, क्योंकि वहां खाने का लालच था. फिर भी, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. 11 जुलाई 1966 को 382 दिन बाद उन्होंने 180 पाउंड (82 किलो) का लक्ष्य हासिल किया. उपवास तोड़ने के लिए उन्होंने एक उबला अंडा और ब्रेड-बटर खाया. उन्होंने कहा, “मुझे अच्छा लगा, लेकिन पेट भरा-भरा लग रहा है.”
एंगस की कहानी दुनिया भर में वायरल हो गई. अमेरिका तक के अखबारों ने इसे छापा. डंडी यूनिवर्सिटी ने उनके उपवास पर स्टडी किया. उनकी कहानी 1973 में एक मेडिकल जर्नल में छपी. लेकिन कुछ लोग उनके तरीके पर सवाल उठाते थे. उनका मानना था कि इतना लंबा उपवास सेहत के लिए ठीक नहीं. उस समय ऐसे उपवास से पांच लोगों की मौत की खबरें भी थीं. इसलिए बिना किसी डॉक्टर के सलाह से लंबा उपवास नहीं करना चाहिए, वरना स्वास्थ्य समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है.
एंगस का 382 दिन का उपवास आज भी रिकॉर्ड है. इसे 1971 में गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया. बाद में गिनीज ने उपवास से जुड़े रिकॉर्ड्स को बंद कर दिया, क्योंकि यह खतरनाक हो सकता है. एंगस ने बाद में सामान्य जीवन जिया, दो बेटों को पाला और 1990 में उनकी मृत्यु हो गई.
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