चीन में प्राचीन समय में ‘लिंगची’ नाम की सजा दी जाती थी, जिसे ‘हजार जख्मों की मौत’ कहते थे. अपराधी के शरीर को चाकू से धीरे-धीरे छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता था. यह प्रक्रिया इतनी धीमी होती थी कि व्यक्ति को घंटों तक असहनीय दर्द सहना पड़ता था. इसका मकसद सिर्फ मारना नहीं, बल्कि अधिकतम पीड़ा देना और दूसरों को डराना था.
प्राचीन ग्रीस में एक खोखला ब्रॉन्ज बुल बनाया गया था, जिसे ‘ब्रेजन बुल’ कहते थे. अपराधी को इस कांस्य के बैल के अंदर बंद कर दिया जाता था और नीचे आग जलाई जाती थी. जैसे-जैसे धातु गर्म होती, व्यक्ति अंदर जिंदा जल जाता. बैल इस तरह बनाया गया था कि पीड़ित की चीखें बैल की गर्जना जैसी सुनाई देतीं, जो दर्शकों को और डराती थीं. इस सजा का नाम सुनकर ही लोग अपराध करने से डरते थे.
प्राचीन फारस में एक भयानक सजा थी. अपराधी के शरीर पर दूध और शहद लगाकर उसे दो लकड़ी की नावों के बीच बांध दिया जाता था. इससे मक्खियां, चींटियां और अन्य कीड़े आकर्षित होते थे. ये कीड़े धीरे-धीरे व्यक्ति को जिंदा खाने लगते थे, जिससे मौत कई दिनों या हफ्तों तक हो सकती थी. यह सजा असहनीय दर्द देती थी.
कई देशों में व्यभिचार या धार्मिक अपराधों के लिए पथराव की सजा दी जाती थी. अपराधी को खुले मैदान में रखा जाता और लोग उस पर तब तक पत्थर फेंकते, जब तक उसकी मौत न हो जाए. यह क्रूर सजा सार्वजनिक रूप से दी जाती थी ताकि लोगों में डर पैदा हो. दुख की बात है कि आज भी दुनिया के कुछ हिस्सों में पथराव की सजा दी जाती है.
मध्ययुगीन यूरोप में चूहों से सजा देने का एक डरावना तरीका था. अपराधी के पेट पर एक धातु के बर्तन में जिंदा चूहा रखा जाता था और बर्तन को ऊपर से गर्म किया जाता था. डर के मारे चूहा व्यक्ति के शरीर में घुसने की कोशिश करता, जिससे भयानक दर्द और मौत होती थी. यह सजा मानसिक और शारीरिक दोनों तरह की यातना देती थी.
आज की सजा
आज के समय में मानवाधिकार बहुत महत्वपूर्ण हैं. संयुक्त राष्ट्र और कई देश ऐसी अमानवीय सजाओं को गैरकानूनी मानते हैं. आधुनिक कानूनी व्यवस्था में मृत्युदंड, आजीवन कारावास या जुर्माना जैसी सजाएं दी जाती हैं. लेकिन कुछ देशों में अभी भी कोड़े मारना, अंग-विच्छेद या पथराव जैसी सजाएं दी जाती हैं. अंतरराष्ट्रीय आलोचना के बावजूद ये देश अपने कानूनों या धार्मिक नियमों के तहत ऐसी सजाएँ जारी रखते हैं.
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