4 Day workweek regime: काम के घंटों का प्रोडक्टिविटी से कोई संबंध है? ये बहस का विषय है. डॉक्टर्स का मानना है कि काम के घंटे बढ़ाने से सेहत को नुकसान पहुंचता है. भारत में काम के घंटे बढ़ाने का ज्ञान देकर अरबपति बिजनेस टाइकून ट्रोल हो चुके हैं. नेटिजंस ऐसी हस्तियों को इंसानों को रोबोट नहीं बल्कि इंसान समझने और भगवान से डरने की सलाह दे चुके हैं. इस बीच खुशहाल देशों की तर्ज पर जापान ने अपनी वर्कफोर्स के लिए चार दिन के वर्क रिजीम यानी हफ्ते में तीन वीकली ऑफ की शुरुआत की है. कई देशों में ये मॉडल कितना कामयाब रहा, आइए जानते हैं.
(सांकेतिक तस्वीरें साभार: सोशल मीडिया)
दुनिया में कई देश हैं, जहां किसी चीज की मारामारी और इंसानों की भेड़चाल नहीं है. हर इंसान की जिंदगी अनमोल है. भेदभाव नहीं है. सबके लिए बराबर अवसर हैं. वहां लोग किसी के प्रोडक्ट नहीं बल्कि खुद में कामयाब हस्ती हैं. ऐसे देशों में हफ्ते में चार दिन का काम होता है और 3 दिन का वीकली ऑफ होता है. दुनिया के खुशहाल देशों में तो काम के घंटे भी कम हैं, फिर भी लोगों की प्रोडक्टिविटी और वर्क क्वालिटी विकसित देशों से बेहतर है.
पूरी दुनिया में तीन दिन के स्थायी वीकेंड का आइडिया लंबे समय से कर्मचारियों और मजदूरों के लिए एक सपना रहा है. हालांकि धीरे-धीरे यह सपना एक वास्तविकता बन रहा है. चूंकि समय के साथ कार्य संस्कृति में बदलाव जारी है, खासकर कोरोना महामारी के बाद, दुनिया के कई देशों में चार दिन के कार्य सप्ताह के लिए गंभीरता से विचार किया जा रहा है. हजारों नई-पुरानी कंपनियां और उनका मैनेजमेंट और कर्मचारी इस बात पर पुनर्विचार कर रहे हैं कि काम की गुणवत्ता और उत्पादकता के बरकरार रखते हुए कैसे कर्मचारियों की हेल्थ और पर्सनल लाइफ बैलेंस बरकरार रहे. हेल्दी वर्क कल्चर किस तरह होना चाहिए. ऐसी सोच वाले देशों में लोग सम्मान से अपनी लाइफ जीते हैं. वहां खुशहाली दर ज्यादा है. इस एलीट क्लब में जापान ने एंट्री लेते हुए अपने कर्मचारियों के लिए हर हफ्ते तीन साप्ताहिक अवकाश देने की व्यवस्था लागू की है.
जापान से पहले डेनमार्क, बेल्जियम, जर्मनी, आइसलैंड में से कल्चर शुरू हो चुका है. डेनमार्क में औपचारिक रूप से चार दिन के वर्क वीक की शुरुआत नहीं हुई है, लेकिन औसत कार्य सप्ताह के हिसाब से यहां पहले से ही लोग हफ्ते में मात्र 37 घंटे काम करते हैं. डेनमार्क में लोगों की पर्सनल जिंदगी को बहुत महत्व दिया जाता है. यहां का वर्क कल्चर आरामदायक और संतुलित है. 2020 में बने एक कानून के तहत डेनमार्क के लोग पांच सप्ताह तक के समवर्ती भुगतान वाली छुट्टियों का भी आनंद उठाते हैं. इससे कर्मचारियों की वर्क और लाइफ दोनों बैंलेस रहती है. डेनमार्क की सरकार मानती है कि काम के घंटे कम करने और लचीली अवकाश प्रणाली रखने से खुशहाली बढ़ने के साथ प्रोडक्टिविटी में इजाफा होता है.
यह अनोखा 4-दिवसीय वर्क वीक '100-80-100' मॉडल पर चलता है. इसमें कर्मचारियों /श्रमिकों को उनका 100% वेतन, 80% समय (वर्किंग आवर्स का समायोजन) और काम के आउटपुट यानी गुणवत्ता को 100% से जोड़ कर देखा जाता है. इस कल्चर की अगुवाई '4 डे वीक ग्लोबल' नामक ग्रुप कर रहा है. जिसने 2023 के अंत में जर्मनी में एक बड़े अभियान के रूप में शुरुआत की थी. धीरे-धीरे स्पेन, पुर्तगाल और यूके जैसी देशों के कुछ हिस्सों में कई कंपनियां और फैक्ट्रियों में इस आइडिये पर विचार हो रहा है. यहां तक कि दुनिया के कुछ सबसे खुशहाल देश जैसे आइसलैंड, डेनमार्क और नीदरलैंड भी इस बदलाव की बयार बह रही है. ये आंदोलन न केवल कर्मचारियों का तनाव और उनके काम के घंटे घटाता है, बल्कि उनकी मेंटल हेल्थ यानी मानसिक स्वास्थ्य में भी सुधार लाता है. लोगों को अपनी जॉब में सैटिस्फेक्शन बढ़ाने में मददगार होता है. कई मामलों में, उत्पादन को भी बढ़ाता है. इस अभियान के सकारात्मक और अच्छे परिणाम मिल रहे हैं. कुछ जगहों पर इस चार दिवसीय कार्य सप्ताह को भविष्य में पायलट प्रोजेक्ट के बजाए 100% इसी मोड पर लागू करना है.
जापान ने अप्रैल 2025 से सरकारी कर्मचारियों के वर्क लाइफ बैंलेंस को बेहतर बनाने के लिए चार दिवसीय कार्य सप्ताह की शुरुआत की है. इसके साथ यहां नई चाइल्डकेयर लीव पॉलिसी लागू की गई है, जिसका फायदा कामकाजी माता-पिता को मिलेगा. इस नीति के तहत उन्हें कुछ दिन अपनी शिफ्ट में दो घंटे कम करने की छूट मिलती है, जिससे उन्हें बच्चों को संभालने में आसानी होगी. ऐसा इसलिए क्योंकि महिलाओं को करियर और परिवार के बीच किसी एक का चयन करने के लिए मजबूर न होना पड़े. दरअसल जापान जनसंख्या घटने से परेशान है. यहां फर्टिलिटी रेट केवल 1.2% है और टोक्यो में तो ये और भी कम 0.99% है. जापानी महिलाएं पुरुषों की तुलना में 5 गुना अधिक घरेलू काम संभालती हैं. चार दिवसीय कार्य सप्ताह से पुरुषों घर पर पत्नी की जिम्मेदारियां बंटाने में सक्षम होंगे.
जर्मनी में 2023-24 के चार डे वीक के परीक्षण में 41 कंपनियां शामिल हुईं और उत्साहजनक नतीजे सामने आए. उनमें करीब 73% ने नए कल्चर को जारी रखने का फैसला किया है. जर्मनी में हमेशा से प्रोडक्टिविटी और क्वालिटी पर जोर दिया गया है. यहां हफ्ते में औसतन 34 घंटे काम करना होता है. जर्मनी के एक्सपीरियंस से पता चलता है कि काम के घंटों को कम करने का मतलब काम को कम करना नहीं है, बल्कि कम समय में अधिक समझदारी और एक्स्ट्रा प्रयासों के साथ 100% आउटपुट देना है. इससे न सिर्फ कंपनियों का प्रोडक्शन और प्रोडक्टिविटी बढ़ी, बल्कि कर्मचारियों की खुशियां भी बढ़ गईं, अब वो दोगुने जोश से काम कर रहे हैं.
बेल्जियम में 2022 में संसद में कानून पास करके चार दिन के कार्य सप्ताह को लागू किया था. ऐसा करने वाला बेल्जियम पहला यूरोपीय देश बन गया. वहां के कर्मचारी बिना वेतन कटौती के अपने 40 घंटे के सप्ताह को चार दिनों में बदल सकते हैं. शिफ्ट के घंटे पूरे होने के बाद वहां काम नहीं दिया जा सकता, अगर दिया भी जाता है तो कर्मचारी उसकी अनदेखी कर सकते हैं.
आइसलैंड ने 2015 और 2019 के बीच कई परीक्षण करने के साथ इस वर्क मॉडल की शुरुआत की. यहां साबित हुआ कि काम के घंटे कम करने से आप अपनी कंपनी को बेहतर उत्पादकता की ओर ले जा सकते हैं. सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों ने बिना अपनी सैलरी में कटौती कराए काम के घंटे 40 से घटाकर 35-36 घंटे प्रति सप्ताह कर दिए थे. 2022 तक यहां के आधे से ज़्यादा कर्मचारी इस मोड पर जा चुके थे. इस फैसले से कर्मचारियों की सेहत में सुधार आया और अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिली. 4.1% की स्वस्थ जीडीपी की वृद्धि बरकरार रही. इससे पता चलता है कि खुशहाल कर्मचारी ही मजबूत अर्थव्यवस्थाओं को आगे बढ़ा सकते हैं.
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