Mughal History: भारत के इतिहास में मुगल साम्राज्य की कहानी कई रंगों में लिखी गई है. किसी ने इसे विदेशी आक्रमण का दौर कहा, तो किसी ने इसे भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग बताया. बाबर की तलवार से शुरू हुआ यह सिलसिला औरंगजेब तक चला. इन्हीं बादशाहों में एक नाम ऐसा भी था, जिसने न सिर्फ मुगल वंश को ऊंचाइयों तक पहुंचाया बल्कि 13 साल की उम्र में तख्त पर बैठकर इतिहास रच दिया. वो थे जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर, जिन्हें इतिहासकार ‘अकबर-ए-आजम’ कहते हैं.
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14 फरवरी 1556 का दिन भारत के इतिहास में खास बन गया, जब पंजाब के कलानौर में सिर्फ 13 साल का अकबर मुगल बादशाह बना. यह वह दौर था जब मुगल साम्राज्य अस्तित्व के संकट में था. हुमायूं की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार को लेकर असमंजस था. लेकिन बैरम खां की मदद से अकबर को गद्दी पर बैठाया गया. इतिहासकार अब्राहम एराली लिखते हैं, "अकबर का साम्राज्य उस समय दिल्ली और आगरा तक सीमित था, चारों ओर दुश्मन थे, लेकिन उसने इस छोटे साम्राज्य को भारत की सबसे बड़ी ताकत में बदल दिया."
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अकबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 को अमरकोट (अब पाकिस्तान का उमरकोट) में हुआ. यह वह समय था जब उसके पिता हुमायूं शेरशाह सूरी से पराजित होकर भाग रहे थे. तब हिंदू राजा राणा प्रसाद ने उन्हें शरण दी. इसी राजमहल में अकबर का जन्म हुआ. इतिहासकार इरा मुखोती अपनी किताब Akbar: The Great Mughal में लिखते हैं, "हुमायूं ने बेटे के जन्म पर कस्तूरी की पुड़िया तोड़कर कहा . ‘इस बच्चे की ख्याति एक दिन पूरी दुनिया में फैलेगी, जैसे इस कस्तूरी की खुशबू’."
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हुमायूं ने 1555 में दिल्ली वापस जीती, लेकिन अगले ही साल 27 जनवरी 1556 को सीढ़ियों से गिरकर उनकी मौत हो गई. उस वक्त अकबर काबुल में था. सेनापति बैरम खां ने अकबर को कलानौर बुलाकर 14 फरवरी को बादशाह बनाया. इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ लिखते हैं, "बैरम खां ने न केवल अकबर को गद्दी पर बैठाया, बल्कि उसके लिए साम्राज्य को बचाने की लड़ाई भी लड़ी." इसी दौरान हिंदू राजा हेमू मुगल सत्ता को चुनौती दे रहे थे.
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अकबर के शासन का पहला बड़ा इम्तिहान था पानीपत की दूसरी लड़ाई (5 नवंबर 1556). हेमू ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया था और 50,000 सैनिकों के साथ मुगलों से भिड़े. अकबर की ओर से बैरम खां ने कमान संभाली. ‘अकबरनामा’ में लिखा है, "जब हेमू की सेना जीत रही थी, तभी एक तीर उसकी आंख में लगा और उसकी फौज बिखर गई." इस जीत ने 13 वर्षीय अकबर को दिल्ली और आगरा का बादशाह बना दिया.
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शुरुआती चार सालों तक अकबर के नाम पर शासन बैरम खां ने किया. लेकिन 1560 में, 18 साल की उम्र में अकबर ने खुद सत्ता संभाली. उन्होंने बैरम खां को विदा किया और महम अनगा व आदम खां जैसे दरबारियों को किनारे किया. इसके बाद उन्होंने साम्राज्य को गुजरात, बंगाल, कश्मीर और दक्षिण तक फैलाया. इतिहासकार इरफान हबीब लिखते हैं, "अकबर ने सुलह-ए-कुल यानी ‘सभी धर्मों के साथ शांति’ की नीति अपनाई और जजिया कर खत्म किया."
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अकबर न केवल विजेता थे, बल्कि कला, संगीत और धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक भी थे. उन्होंने फतेहपुर सीकरी में ‘इबादतखाना’ बनवाया, जहां हर धर्म के विद्वान बहस करते थे. उन्होंने दीन-ए-इलाही की अवधारणा दी, जो सभी धर्मों की अच्छाइयों का मेल थी. अकबर के दरबार में नौ रत्न थे. बीरबल, तानसेन, और मान सिंह उनमें प्रमुख थे. 27 अक्टूबर 1605 को आगरा में उनका निधन हुआ. इतिहासकार स्मिथ लिखते हैं, “अकबर की मौत से भारत ने एक ऐसा शासक खोया, जिसने धर्म और जाति की दीवारें तोड़ दीं.” नोट – मुगल बादशाह अकबर से जुड़ी यह जानकारी विभिन्न इतिहासकारों और इतिहास की किताबों के हवाले से बताई गई है. Zee News Hindi किसी भी तथ्य की सत्तता की पुष्टि नहीं करता है.
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