Mughal Harem Stories : मुगल साम्राज्य को भारत के सबसे धनी और विशाल साम्राज्य की संज्ञा दी जाती है. खासकर 16वीं और 17वीं शताब्दी में यह साम्राज्य सबसे धनी माना जाता था. लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि इस सबसे धनी साम्राज्य में भी रात को अंधेरे से लड़ने के लिए कोई उचित व्यवस्था नहीं थी. इसी वजह से मुगलों के तमाम समारोह और आयोजन दिन के वक्त आयोजित किए जाते थे.
)
इतने बड़े साम्राज्य के बावजूद मुगल अंधेरे के सामने बेबस थे. रात को मशालें तो जलाई जाती थीं, लेकिन सीमित संख्या में. उनका प्रकाश केवल आसपास तक ही पहुंचता था. इस वजह से महल के कई हिस्से अंधेरे में रहते थे. यही कारण था कि रातें अक्सर साजिशों और गुप्त मुलाकातों का समय बन जाती थीं.
)
इतिहासकार किशोरी शरण लाल ने ‘The Mughal Harem’ में लिखा है कि मुगल काल में सूर्य ही प्रकाश का मुख्य स्रोत था. जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता था तो ‘सूर्यक्रांत’ नामक चमकदार पत्थर की मदद से अग्नि उत्पन्न की जाती थी. इस अग्नि को ‘एजिंगिर’ पात्र में पूरे साल सुरक्षित रखा जाता था और दीपक, मशाल और रसोई में इसी से आग ली जाती थी.
)
अबुल फजल के अनुसार, सूरज डूबने पर सेवक बारह चांदी या सोने के मोमबत्तीदानों में सफेद मोमबत्तियां जलाते थे. वसा-बर्नर और कई बत्ती वाले दीप भी जलाए जाते थे. लेकिन ईंधन का इस्तेमाल सख्ती से सीमित था. चांदनी रातों में तो सिर्फ एक मोमबत्ती ही जलाई जाती थी, ताकि ईंधन बचाया जा सके. यहां तक कि मनोरंजन के कार्यक्रम भी आधे-अंधेरे में होते थे.
)
आधुनिक फिल्मों में मुगल महल रोशनी से जगमगाते दिखते हैं, जबकि हकीकत में वहां अंधेरा ही राज करता था. मशालों, मोमबत्तियों, फानूसों और झूमरों का इस्तेमाल होता था, पर रोशनी मंद रहती थी. वातावरण अक्सर अर्ध-अंधेरा रहता था. अकबर और जहांगीर के दौर में रानी के कक्ष के सामने बड़ी मशाल जलाई जाती थी जो पूरे हरम की एकमात्र स्थायी रोशनी होती थी.
)
औरंगजेब के दौर तक रोशनी की व्यवस्था में थोड़ा सुधार हुआ. हरम और किले में रातभर मशालें जलाई जाने लगीं. निगरानी करने वाले नाजिर हर गतिविधि पर नजर रखते थे. फिर भी जब कमरे बंद होते या पर्दे गिराए जाते तो अंदर घुप्प अंधेरा छा जाता था. इसी सन्नाटे में प्रेमी जोड़े मिलते और अपनी रातें प्रेम की रोशनी में बिताते थे.
)
इतिहासकारों के मुताबिक, मुगल युग की रोशनी उतनी ही दुर्लभ थी, जितनी मूल्यवान. मशाल की लौ सिर्फ प्रकाश नहीं, शाही ठाठ की निशानी थी. इसीलिए हर मोमबत्ती, हर दीपक बड़ी सोच-समझकर जलाया जाता था. शहजादियां और रानियां अक्सर हरम के अंधेरे में सोने के लिए तरस जाती थीं, जबकि बाहर का साम्राज्य वैभव की चमक में डूबा हुआ था.
ट्रेन्डिंग फोटोज़